ऐप पर पढ़ें
पाकिस्तान में अवैध रूप से रहे विदेशी नागरिकों को निकालने के अभियान के तहत रविवार को करीब 6,500 अफगानों ने तोरखम सीमा के रास्ते देश छोड़ दिया। इन्हें मिलाकर पाकिस्तान छोड़ने वाले अफगान नागरिकों की कुल संख्या 1,70,000 से अधिक हो गई है। सरकार ने अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों को 1 नवंबर तक पाकिस्तान छोड़ने का आदेश दिया था। इसमें कहा गया कि ऐसा न करने पर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इस आदेश के बाद से ही इन नागरिकों की वापसी जारी है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने देश में रह रहे लाखों अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के पाकिस्तान के कदम की आलोचना की है।
दरअसल, अफगानों को वापस भेजना इस्लामाबाद की ओर से काबुल के खिलाफ इस्तेमाल किया जाने वाला राजनीतिक हथियार है। मालूम हो कि अफगानिस्तान की सत्ता पर फिलहाल तालिबान काबिज है। यह वही तालिबान है जिसे पाकिस्तान ने अफगानिस्तान पर कब्जा करने और भारत के खिलाफ रणनीतिक गहराई की खातिर खड़ा किया था। सवाल है कि अब वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? सबसे पहली बात यह है कि पाकिस्तान को मौजूदा तालिबान सरकार के साथ कुछ गंभीर समस्याएं हैं। वो डूरंड रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा के तौर पर मान्यता नहीं देते हैं क्योंकि यह पश्तून समुदाय को विभाजित करती है। मालूम हो कि डूरंड लाइन साल 1893 में सर मोर्टिमर डूरंड नाम के ब्रिटिश अधिकारी की ओर से बनाई गई थी।
TTP ने कैसे बढ़ाईं पाकिस्तान की मुश्किलें
दूसरा बड़ा कारण यह है कि पाकिस्तान को तालिबान के काबुल पर कब्जा करने से कुछ उम्मीदें थीं। उसका मानना था कि तालिबान आतंकवादी समूह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को काबू में रखेगा जो कि पाकिस्तानी सेना के खिलाफ एक्शन लेते रहता है। मगर, ऐसा नहीं हुआ। तालिबान सरकार का तर्क है कि टीटीपी पाकिस्तान में सक्रिय 46 आतंकवादी समूहों में से एक है, ऐसे में यह उनका आंतरिक मामला है। दूसरी ओर, पाकिस्तानी अधिकारियों की ओर से कहा गया कि बलूचिस्तान, खैबर-पख्तूनख्वा, सिंध और पंजाब के कुछ हिस्सों में अफगान शरणार्थी आतंकवादियों के आश्रय स्थल बनने लगे। ये लोग देश में आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार हैं। इस तरह अफगान शरणार्थियों को आतंकवादी करार दिया गया और पाकिस्तान से उन्हें बाहर निकाला जा रहा है।
पाकिस्तान ने क्यों लिया पलटवार का फैसला
अगर TTP की बात करें तो यह पूरी तरह से पाकिस्तान के भीतर ऑपरेट करता है। तालिबान की तरह ये भी पश्तून जातीयता साझा करता है। इसके लड़ाके तोरखम बॉर्डर के पार से काम करते हैं। पाकिस्तानी डीप स्टेट अपने मतलब के लिए विभिन्न समूहों के साथ खेलता रहा, चाहे वह टीटीपी हो या लश्कर-ए-तैयबा। यह लिस्ट और लंबी है। मगर, अब पलटवार होने लगा है। इसे देखते हुए पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई करने का फैसला लिया। यही वजह है कि टीटीपी और अफगान शरणार्थियों के खिलाफ एक्शन लेकर उन्हें दूर रखने की कोशिश है। इस घटनाक्रम की टाइमिंग भी नोट करनी चाहिए। गाजा में अमेरिका इजरायल के साथ खड़ा है। यूक्रेनी सेना के साथ युद्ध में रूस यूक्रेन से उलछा हुआ है। इस तरह दुनिया फिलहाल गाजा की ओर देख रही है। ऐसे में 1.7 मिलियन पश्तून शरणार्थियों की ओर ध्यान नहीं है।