पितरों की पूजा के लिए अमावस्या, पूर्णिमा और पितृ पक्ष का समय अच्छा माना जाता है. इस समय में पितर पितृ लोक से धरती पर आते हैं, ताकि संतान से उनको श्राद्ध, तर्पण आदि प्राप्त हो और वे तृप्त हो सकें. हर व्यक्ति को अपने पितरों का श्राद्ध करना चाहिए. श्राद्ध करने से पितर खुश होते हैं और वे अपनी संतान को उन्नति का आशीर्वाद देते हैं. सवाल यह है कि पितृ पक्ष, अमावस्या या पूर्णिमा पर श्राद्ध करते हैं तो वे पितरों को कैसे मिलते हैं? श्राद्ध क्या है और श्राद्ध करने के फायदे क्या हैं? हिंदू धर्म शास्त्रों से इन सवालों का जवाब जानते हैं.
श्राद्ध क्या होता है?
श्रद्धा से ही श्राद्ध शब्द बना है. जो व्यक्ति पितरों के उद्देश्य से विधि विधान से जो कर्म श्रद्धा से करता है, वह श्राद्ध कहलाता है. अपने मरे हुए पूर्वजों के लिए विशेष श्रद्धा से किए जाने वाले कर्म ही श्राद्ध कहे जाते हैं. श्राद्ध कर्म को पितृ यज्ञ भी कहा जाता है. इसका वर्णन पुराणों और धर्म शास्त्रों में मिलता है.
महर्षि पराशर के अनुसार, देश, कान, पात्र में हविष्यादि विधि द्वारा जो कर्म तिल, कुश और मंत्र से श्रद्धापूर्वक किया जाता है, वही श्राद्ध होता है. वहीं ब्रह्म पुराण के अनुसार, देश, काल और पात्र में विधि विधान से श्रद्धा पूर्वक पितरों के उद्देश्य से ब्राह्मणों को दिया जाए, वहीं श्राद्ध होता है.
महर्षि पुलस्त्य के अनुसार, जिस कार्य विशेष में दूध, घी और शहद में अच्छी तरह से पकाए हुए व्यंजन को अपने पितरों के उद्देश्य से ब्राह्मणों को प्रदान किया जाए, उसे ही श्राद्ध कहते हैं.
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श्राद्ध के फायदे क्या हैं?
1. पितरों का श्राद्ध करने से व्यक्ति के पाप मिटते हैं और वह मोक्ष प्राप्त करता है.
2. जो व्यकित अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसकी आयु बढ़ती है.
3. श्राद्ध करने से धन और धान्य में बढ़ोत्तरी होती है.
4. श्राद्ध से व्यक्ति की यश और कीर्ति बढ़ती है.
5. श्राद्ध करने वाले को जीवन में सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं. परलोक में भी सुख मिलता है.
पितरों को कैसे मिलता है श्राद्ध?
व्यक्ति जैसा कर्म करता है, वैसी ही गति उसको मृत्यु के बाद मिलती है. कोई देवता बनता है तो कोई पितर, कोई प्रेत, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई पेड़ तो कोई घास. श्राद्ध में पूर्वजों को पिंड दान किए जाते हैं, ऐसे में देवता, पितर, हाथी, चींटी आदि बने पूर्वज को उस पिंडदान से तृप्ति कैसे मिलती है?
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शास्त्रों के अनुसार, नाम और गोत्र के सहारे विश्वेदेव अग्निष्वात्त आदि दिव्य पितर हव्य-काव्य को पितरों को प्राप्त करा देते हैं. यदि आपके पितर देव योनि में होंगे तो पिंडदान का अन्न उनको अृमत के रूप में मिलता है, मनुष्य रूप में आए पूर्वज को अन्न के रूप में, पशु योनि में आए पूर्वज को घास रूप में, नाग योनि में आए पूर्वज को हवा के रूप में, यक्ष योनि के पूर्वज को पान के रूप में, अन्य योनियों में गए पूर्वजों को भी पिंडदान का अंश मिल जाता है. जीव किसी भी योनि में पहुंचा हो श्रद्धा पूर्वक की गई श्राद्ध की वस्तु तृप्ति रूप में उसे मिल ही जाती है.