Home Life Style अहा! आ गई वो शुभ घड़ी, रामलला की होगी प्राण प्रतिष्ठा, कर लें एक उपाय, नहीं रहेगी धन की कमी

अहा! आ गई वो शुभ घड़ी, रामलला की होगी प्राण प्रतिष्ठा, कर लें एक उपाय, नहीं रहेगी धन की कमी

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अहा! आ गई वो शुभ घड़ी, रामलला की होगी प्राण प्रतिष्ठा, कर लें एक उपाय, नहीं रहेगी धन की कमी

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हाइलाइट्स

22 जनवरी 2024 सोमवार को भगवान श्रीराम के बाल स्वरूप रामलला जी की प्राण प्रतिष्ठा है.
अयोध्या के भव्य राम मंदिर के गर्भ गृह में रामलला विराजमान हो गए हैं.
प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग 07:14 एएम से पूरी रात तक हैं.

अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की वह शुभ घड़ी आ गई है, जिसका वर्षों से इंतजार था. 22 जनवरी 2024 सोमवार को भगवान श्रीराम के बाल स्वरूप रामलला जी की प्राण प्रतिष्ठा है. अयोध्या के भव्य राम मंदिर के गर्भ गृह में रामलला विराजमान हो गए हैं. सोमवार को सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और मृगशिरा नक्षत्र में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है. प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग 07:14 एएम से पूरी रात तक बने हैं. उस दिन आप एक आसान ज्योतिष उपाय कर सकते हैं. उस उपाय को करने से आपको भगवान राम चंद्र जी की कृपा तो प्राप्त होगी ही, माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होंगी.

रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन करें आसान उपाय

काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट का कहना है कि जिस दिन रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है, वह बेहद ही शुभ है. उस दिन पौष पुत्रदा एकादशी का पारण भी है. ऐसे में आप 22 जनवरी को अपने घर पर किसी योग पंडित से श्रीसूक्त, पुरुष सूक्त और कनक धारा स्तोत्र का पाठ कराएं.

यह पाठ कम से कम 108 बार होना चाहिए. ये पाठ 06:22 एएम से 05:17 पीएम के बीच करा लें. शुक्ल यजुर्वेद में कहा गया है कि ये पाठ करने से धन-संपत्ति में वृद्धि करने वाला है. 15 से एक माह के अंदर संतोषजनक धन लाभ हो सकता है.

ये पाठ संस्कृत में दिए गए हैं. आपके लिए यहां पर तीनों पाठ श्रीसूक्त, पुरुष सूक्त और कनक धारा स्तोत्र दिए जा रहे हैं.

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श्री सूक्त पाठ

ओम हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्त्रजाम्,
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।।

तां म आवह जात वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम्,
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।

अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्,
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।

कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं,
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्,
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि।।

आदित्य वर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः,
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।

उपैतु मां दैव सखः, कीर्तिश्च मणिना सह,
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिं वृद्धिं ददातु मे।।

क्षुत्-पिपासाऽमला ज्येष्ठा, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्,
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान् निर्णुद मे गृहात्।।

गन्ध-द्वारां दुराधर्षां, नित्य-पुष्टां करीषिणीम्,
ईश्वरीं सर्व-भूतानां, तामिहोपह्वये श्रियम्।।

मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि,
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।

कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम,
श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम।।

आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे,
निच देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले।।

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं, सुवर्णां हेम-मालिनीम्,
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, पिंगलां पद्म-मालिनीम्,
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।

तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्,
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरूषानहम्।।

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा, जुहुयादाज्यमन्वहम्,
श्रियः पंच-दशर्चं च, श्री-कामः सततं जपेत्।।

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श्री पुरुष सूक्तम्

ॐ सहस्त्रशीर्षा पुरुष:सहस्राक्ष:सहस्रपात्।
स भूमि सर्वत: स्पृत्वाSत्यतिष्ठद्द्शाङ्गुलम् ॥

पुरुषSएवेदं सर्व यद्भूतं यच्च भाव्यम्।
उतामृतत्यस्येशानो यदन्नेनातिरोहति॥

एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः।
पादोSस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि॥

त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुष:पादोSस्येहाभवत्पुनः।
ततो विष्वङ् व्यक्रामत्साशनानशनेSअभि॥

ततो विराडजायत विराजोSअधि पूरुषः।
स जातोSअत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुर:॥

तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत: सम्भृतं पृषदाज्यम्।
पशूंस्न्ताँश्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये॥

तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतSऋचः सामानि जज्ञिरे।
छन्दाँसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत॥

तस्मादश्वाSअजायन्त ये के चोभयादतः।
गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाताSअजावयः॥

तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पूरुषं जातमग्रत:।
तेन देवाSअयजन्त साध्याSऋषयश्च ये॥

यत्पुरुषं व्यदधु: कतिधा व्यकल्पयन्।
मुखं किमस्यासीत् किं बाहू किमूरू पादाSउच्येते॥

ब्राह्मणोSस्य मुखमासीद् बाहू राजन्य: कृत:।
ऊरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भ्या शूद्रोSअजायत॥

चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षो: सूर्यो अजायत।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत॥

नाभ्याSआसीदन्तरिक्ष शीर्ष्णो द्यौः समवर्त्तत।
पद्भ्यां भूमिर्दिश: श्रोत्रात्तथा लोकांर्Sअकल्पयन्॥

यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत।
वसन्तोSस्यासीदाज्यं ग्रीष्मSइध्म: शरद्धवि:॥

सप्तास्यासन् परिधयस्त्रि: सप्त: समिध: कृता:।
देवा यद्यज्ञं तन्वानाSअबध्नन् पुरुषं पशुम्॥

यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमान: सचन्त यत्र पूर्वे साध्या: सन्ति देवा:॥

कनकधारा स्तोत्र

अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।

मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।

बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।

प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।।

दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।

इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।

गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।

श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।

नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।

सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।

यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।

सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।

दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया:।।17।।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।
।।इति श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम्।।

Tags: Astrology, Ayodhya ram mandir, Dharma Aastha, Lord Ram

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