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कश्मीर में आतंकियों ने पहलगाम में हमला करने के बाद जंगलों में पनाह ले ली है. सबसे बड़ी बात है कि आतंकी इन जंगलों में इतनी कड़ाके की ठंड में कैसे सर्वाइव करते हैं.
कश्मीर में आखिर जंगलों में आतंकी कैसे सर्वाइव करते हैं.(Image:PTI)
हाइलाइट्स
- आतंकी पहलगाम हमले के बाद जंगलों में छिपे.
- आतंकी जंगलों में प्राकृतिक आड़ का लाभ उठाते हैं.
- सेना उन्नत तकनीक से आतंकियों का सामना करती है.
नई दिल्ली. कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी में हुआ कायराना आतंकी हमले को अंजाम देने के बाद आतंकी पास के जंगलों की ओर भाग गए. सबसे बड़ा सवाल है कि इतनी कड़ाके की ठंड में आतंकी जंगलों में सर्वाइव कैसे करते हैं. बताया जाता है कि भारतीय सेना से बचने के लिए आतंकी हमेशा पोजिशन लिए रहते हैं. उनका सफाया करने में सेना के सामने कई चैलेंज आते हैं. बहरहाल अब ऐसे कई नए तरीके ईजाद किए गए है जिससे सेना आतंकियों के हमले से बचती है. आतंकी हमेशा घने जंगलों में जाकर बचने की कोशिश करते हैं.
बताया जाता है कि कश्मीर के घने जंगलों में आतंकी अपनी गतिविधियों को अंजाम देने और सुरक्षा बलों से बचने के लिए विशेष रणनीतियों का उपयोग करते हैं. ये जंगल उनके लिए छिपने, प्रशिक्षण और हमले की योजना बनाने का सुरक्षित ठिकाना होते हैं. उनके जिंदा रहने के तरीके जंगलों में मिलने वाली चीजों और लोकल लोगों की मदद पर आधारित होते हैं. सबसे पहले, आतंकी जंगलों की प्राकृतिक आड़ का लाभ उठाते हैं. घने पेड़, पहाड़ी इलाके और गुफाएं उन्हें सुरक्षा बलों की नजरों से बचने में मदद करती हैं. वे अक्सर ऊंचे स्थानों पर अस्थायी शिविर बनाते हैं, जहां से आसपास का इलाका दिखता है, जिससे वे खतरे को पहले ही भांप लेते हैं. रात के समय उनकी गतिविधियां बढ़ जाती हैं, क्योंकि अंधेरा उन्हें अतिरिक्त सुरक्षा देता है.
खाने और पानी की व्यवस्था के लिए आतंकी स्थानीय संसाधनों पर निर्भर रहते हैं. जंगल में उपलब्ध फल, जड़ें और छोटे जानवर उनके भोजन का स्रोत बनते हैं. कई बार वे नदियों या झरनों से पानी लेते हैं. कुछ मामलों में स्थानीय समर्थकों से उन्हें राशन और अन्य जरूरी सामान मिलता है. ये समर्थक चुपके से भोजन, दवाइयां और हथियारों की सप्लाई करते हैं. आतंकी जंगल में जीवित रहने के लिए विशेष प्रशिक्षण लेते हैं. उन्हें जंगल युद्ध, नेविगेशन और बुनियादी चिकित्सा सहायता जैसे कौशल सिखाए जाते हैं. वे मौसम की मार से बचने के लिए तिरपाल, पेड़ों की छाल या प्राकृतिक गुफाओं का उपयोग करते हैं. ठंड से बचने के लिए वे आग जलाते हैं, लेकिन धुएं से बचने के लिए छोटी और नियंत्रित आग का इस्तेमाल करते हैं.
आतंकी संचार के लिए वे रेडियो सेट, सैटेलाइट फोन या कोडेड संदेशों का उपयोग करते हैं ताकि उनकी लोकेशन का पता न लगे. इसके अलावा, वे स्थानीय लोगों को डराकर या लालच देकर सूचनाएं और सहायता हासिल करते हैं. सुरक्षा बलों की तलाशी से बचने के लिए वे बार-बार अपनी जगह बदलते रहते हैं और अपने ठिकानों को अच्छी तरह छिपाते हैं. हालांकि, सुरक्षा बलों की उन्नत तकनीक, जैसे ड्रोन और थर्मल इमेजिंग, ने उनके लिए जंगल में जीवित रहना कठिन कर दिया है. फिर भी, आतंकी अपनी रणनीतियों को बदलते रहते हैं, जिससे कश्मीर के जंगलों में उनकी मौजूदगी एक चुनौती बनी रहती है.