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नई दिल्ली. 1994 में IAS जी कृष्णैया की हत्या के मामले में दोषी आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट में आज हलफनामा दायर किया. जिसमें उन्होंने कहा कि जेल से उनकी रिहाई का फैसला मनमाना नहीं कहा जा सकता. ये पूरी वैधानिक प्रकिया का पालन करते हुए सोच समझकर लिया गया फैसला है.ये रिहाई तब संभव हो पाई जब वो इस रिहाई का हक़दार होने के लिए न्यूनतम समय पहले ही जेल में गुजार चुके हैं. इसलिए ये कहना कि सरकार ने उनको फायदा पहुंचाया, गलत है.
इसके अलावा हलफनामा में कहा गया कि रिहाई को चुनौती देने वाली जी कृष्णैया की पत्नी की ओर से दायर याचिका क़ानूनी प्रकिया का दुरूपयोग है. किसी दोषी को रिहाई के फैसले को इस आधार पर नहीं चुनौती दी जा सकती कि उसके चलते पीड़ित के मूल अधिकारों का हनन हुआ है. जेल नियमावली में बदलाव सरकार की कार्यकारी शक्तियों के दायरे में आता है. ये सरकार का विशेषाधिकार है. सरकार की ओर से किसी दोषी के रिहाई के फैसले की न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित है.
हलफनाम में आनंद मोहन ने बताया कि जेल में उनका व्यवहार हमेशा अच्छा रहा. जेल में रहते कोई भी शिकायत उसके व्यवहार को लेकर नहीं की गई. जेल में रहते हुए भी उन्होंने किताबें लिखी है. वो साल 2002 और 2012 दोनो जेल नियमों के मुताबिक रिहाई का अधिकारी है. आनंद मोहन ने कहा है कि उन्होंने 15 साल जेल के अंदर गुजारे. उनका पूरा सक्रिय राजनीतिक जीवन जेल के अंदर बर्बाद हो गया. अब 67 साल की इस उम्र में उनके पास आगे कुछ करने के लिए बचा नहीं है.
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Tags: Supreme Court
FIRST PUBLISHED : August 01, 2023, 14:17 IST
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