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नित्या नाम था उसका, एक अत्यंत आत्मविश्वासी लड़की लगी थी मुझे वह पहली मुलाकात में. मगर लोग जैसा दिखते हैं वैसे होते नहीं, उनके भीतर कई और लोग होते हैं जिनसे हम कभी मिल नहीं पाते. मुझे यकीन था कि जब नित्या ने मुझसे बात करना चाहा और वह एक मेंटॉर की तलाश में थी, तो वह कुछ ऐसी बात पर मुझसे सुझाव मागेंगी जो आगे बढ़ने के बारे में होगा, करियर, तरक्की, और मैं उसकी पहेली को सुलझा दूंगा. लेकिन दो-तीन बार बातचीत करने के बाद पता चला कि उसके साथ ऐसा कुछ भी नहीं है. वह एक अच्छी-खासी नौकरी कर रही है, एक खुशहाल रिश्ते में है मगर समस्या यह है कि चाहे-अनचाहे उसकी सोच उसे बहुत परेशान करती है. नित्या की परेशानी यह है कि वह बहुत इमोशनल है, जाने क्यों हर बात पर उसका रोना निकल आता है, जाने क्यों उसे ऐसा लगता है कि उसके खुद के एहसास उसके खिलाफ हैं.
नित्या ऐसा सोचने वाली अकेली नहीं है, हम में से कई लोग ऐसे हैं- एहसासों के सताए हुए. ईश्वर ने ऐसा दिल दिया है कि हर एहसास भीतर तक रिसता है, रिसकर जम जाता है, बार-बार उभर कर आता है. इससे पहले कि मैं आपको सोच और एहसास के रिश्ते के बारे में बताऊं, मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि आपकी सोच आपके जेहन में जरा देर ही ठहरती है, और एहसास बहुत देर तक ठहरते हैं आपके भीतर.
अगर सोच बारिश है तो एहसास उस बारिश के बाद की मिट्टी में सनी हुई सोंधी-सी खुशबू या भी नालों की दुर्गंध. एहसास कभी आपके घावों पर लगे मरहम हैं और कभी सबसे गहरा घाव. एहसास बस जल्दी नहीं जाते और ये देर तक रुकने वाले एहसास तय करते हैं कि आप खुश हैं या खुश होने का नाटक कर रहे हैं. हम सब अजीब हैं, बुरे एहसासों को लंबे समय तक रोककर रखना चाहते हैं और अच्छे एहसास को बिता देना चाहते हैं एक रात के साथ, कभी धुएं में उड़ाकर और कभी शोर के हवाले करके. हमें अच्छे एहसास को थाम कर रखना सीखना है. इसी तरह, किसी ने बुरा महसूस कराया तो उसे बुरा इंसान साबित करने की जल्दबाजी हमें रहती है. इसके विपरित हमें कोई अच्छा महसूस कराता है तो उसे शुक्रिया कहना भी भूल जाते हैं. कोई रिश्ता समय के साथ बदल गया तो पूरे रिश्ते का अस्तित्त्व कड़वे एहसासों की दस्तावेज बन गया, सभी बिताए हुए अच्छे पल भूल जाते हैं हम. हमें स्वीकार करना है कि हम अपनी सोच बदल भी लें तो ऐसे एहसास थोड़ी देर तक ठहरने वाले हो जाते हैं.
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रोने के लिए अपने-आप को दोषी मत मानिए, कमजोर मत समझिए. लोग ऐसे भी हैं जो अपनी बात कह नहीं पाते, घुटते रहते हैं, आँसुओं को रोक कर रखते हैं, एहसासों को बांधकर रखते हैं. सत्य बस इतना है कि आप जैसा सोचते हैं वैसा महसूस करना शुरू कर देते हैं और आप जितनी मेहनत एहसासों को काबू करने में कर रहे हैं, उससे कम परिश्रम में आप अपनी सोच को दिशा प्रदान कर सकते हैं. जब आप सोच को बदलिए, एहसासों की बहने दीजिए नीचे कैसे नदी बहती है जैसे गरम रेत.
जब एहसासों के समंदर में उफान आ जाता है, पानी खतरे के निशान के ऊपर आ जाता है तब एक रोज एकदम से आपके लिए एहसास के मायने खत्म होने लगते हैं. आप एहसासों में डूबे हैं मगर आपका मन-मस्तिष्क वंचित है एहसासों से, और फिर सोच हावी होती है आपके ऊपर. यह सोच अगर नकारात्मक होगी तो एक के बाद एक दूसरी सोच की जाल में फँसते जाएंगे. आपके लिए अच्छे-बुरे एहसास के बीच का अंतर समाप्त हो जाएगा और हर सोच आपको एक नई दिशा में खींच कर लेती जाएगी. फिर आप भागते फिरेंगे, यहां-वहां सुकून से परे. अपने एहसासों को स्वीकार कीजिए, उनसे दोस्ती कीजिए और अपने मन के एक कोने में जगह दीजिए उन्हें, मगर साथ-ही-साथ जगह बनाइए नए एहसासों के लिए, नई सोच के लिए.
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आपकी सोच आपके काबू में नहीं है. आप चाहते हैं कि आप खुश रहें, सकारात्मक रहें लेकिन आपकी सोच आपका रास्ता रोक कर खड़ी है, एक नकारात्मक सोच, एक और नकारात्मक सोच और फिर सोच का जाल-ओवर थिंकिंग. मैं समझता हूं इस एहसास को, जैसे मन एक कूदता-फाँदता हुआ बच्चा है, जो न आपके निर्देश सुनता है, न थकता है, लेकिन आप थक जाते हैं. लेकिन मन नहीं सुनेगा आपकी. यह आपको वहां तक लेकर जाएगा जहां से आपको लौटना मुश्किल होगा, आपको ऊंची पहाड़ियों की सैर कराएगा और फिर ऊंचाई पर एकदम से आपका हाथ छोड़ देगा. आपके आस-पास के अपने लोग आपके खिलाफ नजर आएंगे आपको. हर हरकत आपको नए इशारे करेगी और अंधेरा आपकी तरफ ऐसी तेजी से बढ़ेगा जैसे कि आपके सर्वस्व को निगलने आ रहा हो. मैं आपको डरा नहीं रहा बल्कि आपसे बस इतना कहना चाहता हूं कि इस सोच की त्रासदी से छुटकारा, बहुत दूर नहीं है. यह बस एक सोच जितना दूर है- एक मजबूत सोच जो हर आने वाली नई सोच की दिशा बदल सकती है.
पुस्तक: जिंदगी अनलिमिटेड
लेखक: गौरव उपाध्याय
प्रकाशक: पेंगुइन स्वदेश
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Tags: Books, Hindi Literature, Literature
FIRST PUBLISHED : February 20, 2024, 13:02 IST
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