Monday, December 16, 2024
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आप की अदालत: गुलाम नबी आज़ाद ने रजत शर्मा से कहा, ‘एंटनी ‘बेचारा’ रीढ़विहीन आदमी है’


Image Source : INDIA TV
‘आप की अदालत’ में गुलाम नबी आजाद।

नई दिल्ली: डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी के सुप्रीमो गुलाम नबी आज़ाद ने पहली बार इस बात का खुलासा किया है कि सोनिया गांधी ने 2004 में प्रधानमंत्री बनने से क्यों मना कर दिया था, और राहुल को सियासत में पहले लाने के लिए प्रियंका पर प्राथमिकता क्यों दी गई थी।

इंडिया टीवी पर आज रात 10 बजे प्रसारित होने वाले रजत शर्मा के लोकप्रिय शो ‘आप की अदालत‘ में आज़ाद ने राहुल गांधी के बारे में कड़ी भाषा का इस्तेमाल किया, लेकिन सोनिया गांधी और उनकी बेटी प्रियंका के प्रति उनका रुख थोड़ा नरम रहा।

जब रजत शर्मा ने उनसे पूछा कि क्या सोनिया ने प्रधानमंत्री बनने से इसलिए मना कर दिया था क्योंकि वह अल्पसंख्यक समुदाय से थीं, आज़ाद ने बताया: ‘वो न खुद को माइनॉरिटी समझती हैं और न कोई और ही समझता है। उन्होंने मेजॉरिटी से शादी की है लेकिन उनको माइनॉरिटी लिया भी नहीं किसी ने, मेजॉरिटी ही लिया। और वो हिन्दू धर्म को प्रैक्टिस भी करती हैं। लेकिन उनकी फैमली की कोई परेशानी थी (पीएम बनने को लेकर)। मैंने अपनी किताब में लिखा है कि वह जो सुषमा जी ने कहा कि वह अपने बालों का मुंडन करवा कर पूरे देश में घूमेंगी, तो मेरे खयाल से फैमली उससे डर गई कि एक नया विवाद न खड़ा हो जाए, मुश्किल से तो सत्ता मे आए हैं।’

रजत शर्मा: तो आपकी कभी सोनिया जी से बात नहीं हुई इस बारे में?

गुलाम नबी आज़ाद: मालूम है, लेकिन वो फैमली की कुछ चीजे हैं, मैं उन पर नहीं आना चाहता हूं।

रजत शर्मा: मैं क्यों कह रहा हूं कि आपने गुमराह किया। आपने LDF को, समाजवादी पार्टी को, बीएसपी को, इन पार्टियों के नेताओं को कह दिया था कि सोनिया जी प्रधानमंत्री बनने वाली हैं?
गुलाम नबी आज़ाद: हम 3-4 लोग ही थे। मिसेज गांधी, प्रणब दा, अहमद भाई यही लोग थे। तो जब हमने तय किया तो मैं उस मीटिंग से उठ कर चला गया। शाम को दूसरी मीटिंग थी, मैं उसमें गया नहीं। तो हमने अपना विरोध दिखाया, लेकिन उन्होने कहा कि हमारी कुछ पारिवारिक मजबूरियां है, और मैं चुप बैठ गया।

रजत शर्मा: डॉक्टर मनमोहन सिंह को क्यों चुना गया?
गुलाम नबी आज़ाद: शरीफ आदमी थे, पढ़े लिखे थे, बहुत बड़े विद्वान थे,बहुत अच्छे वित्त मंत्री थे। जब वह 5 साल वित्त मंत्री थे तो मैं उस वक्त पर्यटन मंत्री था। हमारी बहुत अच्छी बनती थी। बहुत ईमानदार थे।

रजत शर्मा: आपने कभी नहीं सोचा कि अगर प्रणब मुखर्जी को चुना जाता तो वह देश को बेहतर चला सकते थे?
गुलाम नबी आज़ाद: जिसको हमने चुन लिया था उनकी कम्पैटिबिलिटी तो होनी चाहिए थी कि उनकी किससे ज्यादा बन सकती थी। और वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह की एक छवि बनी थी। जो कुछ भी उपलब्धि हुई, भले ही नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे, लेकिन लोगों को वित्त मंत्री पर विश्वास था। दुनिया के जाने माने इकोनॉमिस्ट थे।

रजत शर्मा: इस बात को बहुत कहा गया कि उनको प्रधानमंत्री इसलिए बनाया गया क्योंकि वह अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं?
गुलाम नबी आज़ाद: असली माइनॉरिटी तो सिख हैं नहीं। असली माइनॉरिटी कौन है ये तो आप भी जानते हैं। 

रजत शर्मा: ए. के. एंटनी जैसे नेता कहते हैं कि हमें हिंदुओं की जरूरत है?
गुलाम नबी आज़ाद: वह रीढ़विहीन आदमी है बेचारा।

रजत शर्मा: जैसे कांग्रेस के प्रवक्ता सुरजेवाला ने कहा कि राहुल गांधी सिर्फ हिंदू नहीं हैं बल्कि जनेऊधारी हिंदू हैं?
गुलाम नबी आज़ाद: और फिर भी प्रो मोदी हम हैं, वो नहीं हैं।

प्रियंका के सियासत में आने पर

इस सवाल पर कि प्रियंका गांधी को पहले सक्रिय राजनीति में आने में इतनी देर क्यों हुई, आजाद ने जवाब दिया, यह परिवार का फैसला था। उन्होंने कहा, ‘अब वो फैमिली का मामला है, अलग मामला है। मैंने किताब में भी नहीं लिखा है कि वह फैमिली का ही फैसला था कि बेटी को नहीं लाना है, सिर्फ बेटे को ही लाना है।’

रजत शर्मा: वह बाद में राजनीति में आईं, लेकिन पीछे ही चलती हैं?
गुलाम नबी आज़ाद: हां, वह जरा लगता है कि एक से किश्ती चल नहीं रही तो चलो दो लोग चलाएं।

रजत शर्मा: लेकिन प्रियंका की खुद हमेशा से इच्छा थी सियासत में आने की?
गुलाम नबी आज़ाद: हां, बिलकुल।

रजत शर्मा: और राहुल की नहीं थी।
गुलाम नबी आज़ाद: एमपी बनने से पहले मुझे कुछ पता नहीं था। प्रियंका का इतना है कि जब राजीव जी प्रधानमंत्री थे और मैं जनरल सेक्रेटरी था, तब कभी-कभी मीटिंग में हमें 2 बज जाते थे डिनर के बगैर, तो वह अंदर जाते थे और बचा हुआ खाना ले आते थे। मैंने कहा, वे सो गए होंगे तो उन्होंने कहा, नहीं, बेटी अभी इंतजार कर रही है। बेटियां हमेशा इंतजार करती हैं, जैसे मेरी बेटी। इसमें कुछ गलत नहीं है…वह रात को 2-2 बजे तक जागती थी और कभी-कभी यह देखती भी थी कि हम इतनी देर तक काम कर रहे हैं। तो, मैंने ये एप्टीट्यूड देखा था उनके अंदर।

रजत शर्मा: अब सुनते हैं कि सोनिया जी का स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं रहता इसलिए वह रायबरेली से चुनाव नहीं लड़ेंगी और प्रियंका वहां से लड़ सकती हैं?
गुलाम नबी आज़ाद: अब ये उनके घर का मामला है। उसमें हमको कुछ नहीं कहना है।

रजत शर्मा: आप तो घर को जानते हैं अच्छी तरह से?
गुलाम नबी आज़ाद: देखिए, हम पॉलिटिकल बात कर रहे हैं। हम घर की बात नहीं कर रहे हैं। अभी हम उनके घर की बात कभी नहीं करेंगे।

रजत शर्मा: घर के उनके एक और मेंबर हैं रॉबर्ट वाड्रा।
गुलाम नबी आज़ाद: नहीं, मैं उसपे बात नहीं करूंगा।

रजत शर्मा: नहीं, उन्होंने यह कहा है कि वह राजनीति में आना चाहते हैं। उन्होंने कहा है कि मैंने पब्लिक के लिए इतना अच्छा काम किया है, मैं आऊंगा तो बहुत अच्छा परफॉर्म करूंगा?
गुलाम नबी आज़ाद: देखिए, लाखों लोग राजनीति में हैं। हमारे इलेक्टेड पंचायती राज में तो 10 से 20 लाख लोग हैं, जिनमें महिलाएं भी शामिल हैं। लाखों लोग ब्लॉक और डिस्ट्रिक्ट लेवल पर हैं, हजारों लोग विधायक हैं। वह भी पॉलिटिक्स ही है।

रजत शर्मा: नहीं, जब परिवार के लोग आते हैं, बड़ी जिम्मेदारी संभालते हैं, तो आपको नहीं लगता कि वे संभाल सकते हैं कांग्रेस पार्टी को?
गुलाम नबी आज़ाद: अब जो है, पहले वह संभाल लें।

जब रजत शर्मा ने आज़ाद से पूछा कि क्या अल्पसंख्यक समुदाय से होने के कारण उन्हें कभी भी कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में नहीं चुना गया, तो आज़ाद ने जवाब दिया: मैंने इतिहास की बात लिखी। आजादी से पहले कांग्रेस के 60-65 सालों के इतिहास में अल्पसंख्यक समुदाय से 12-13 अध्यक्ष रहे लेकिन आजादी के बाद अगले 75 सालों में एक भी नहीं रहा। वे जिसको चाहते, बना सकते थे।

रजत शर्मा: क्यों नही बनाया?
गुलाम नबी आज़ाद: मैंने तो वही बताया न। खाली सेक्युलरिज्म कहने से कुछ नहीं होता। उस पर ऐक्ट भी करना होता है।

रजत शर्मा: आपके हिसाब से कौन पार्टी को लीड कर सकता है, इसको आगे ले जा सकता है?
गुलाम नबी आज़ाद: अब यह लड़ाई तो 6-7 सालों से चल रही है। राहुल गांधी जी को हमने इलेक्ट किया। सोनिया जी चाहती थीं, हमने उन्हें वाइस प्रेसिडेंट बनाया फिर प्रेसिडेंट बनाया। हम भी चाहते थे उन्हें बनाना लेकिन आधे रास्ते से ही इस्तीफा दे दिया। आधे रास्ते पर इस्तीफा किस पर दिया, ये मैं कहूंगा नहीं।’

रजत शर्मा: अब कह दीजिए, जनता है सामने।
गुलाम नबी आज़ाद: नहीं, कुछ चीजें होती हैं, हमें अपनी मर्यादा नहीं छोड़नी चाहिए।

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