इमरान खान के सबसे खास लोगों में गिने जाने वाले फवाद चौधरी ने भी बुधवार को पार्टी से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने 9 मई को हुई हिंसा की आलोचना करते हुए ट्विटर पर लिखा, ‘मैंने राजनीति से ब्रेक लेने का फैसला लिया है इसलिए मैं पार्टी में अपने पद से इस्तीफा देता हूं और इमरान खान से अलग हो रहा हूं।’ उनसे पहले पार्टी की वरिष्ठ नेता और उपाध्यक्ष शिरीन मजारी ने भी इसी आधार पर पीटीआई से इस्तीफा दे दिया था। मजारी को हाल ही में कई बार गिरफ्तार किया जा चुका है। उन्होंने स्वास्थ्य और पारिवारिक कारणों का हवाला देते हुए पूरी तरह राजनीति छोड़ने का ऐलान किया है।
किसी ने छोड़ा साथ तो कोई गया जेल
पार्टी छोड़ने का यह सिलसिला पिछले हफ्ते महमूद बाकी मौलवी के साथ शुरू हुआ था। हालांकि इमरान अपने समर्थकों के हिंसा में शामिल होने के आरोपों को खारिज कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार ने पूरे नेतृत्व को जेल भेज दिया है, यहां तक कि उन्हें भी जो पार्टी का हिस्सा नहीं हैं। बचने का सिर्फ एक ही तरीका है, यह कहना कि ‘मैं पीटीआई छोड़ रहा हूं’… क्या यह कोई मजाक है? पार्टी के वरिष्ठ नेता शाह महमूद कुरैशी और मुसर्रत जमशेद चीमा को मंगलवार को रिहा किए जाने के 24 घंटों के भीतर दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया।
हिंसा का बदला ‘बैन’ से लेंगे शहबाज?
दूसरी ओर पर्दे के पीछे शहबाज सरकार और पाक सेना इमरान खान की पार्टी पर बैन लगाने की तैयारी कर रहे हैं। पाक रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने 9 मई को हुई हिंसा को ‘सुनियोजित’ बताया और कहा कि सरकार पीटीआई को बैन करने पर विचार कर रही है। उनका कहना है कि 9 मई को जो भी हुआ वह ‘स्वाभाविक’ नहीं था। ख्वाजा आसिफ ने बुधवार को कहा कि सरकार सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमलों के लिए पीटीआई पर प्रतिबंध लगा सकती है। यह संभावित प्रतिबंध पहले से सैकड़ों मुकदमों का सामना कर रहे इमरान की मुश्किलें कई गुना बढ़ा देगा।
सुप्रीम कोर्ट के सहारे पीटीआई
पीटीआई के नेता अली जफर को रक्षा मंत्री की इन धमकियों का डर नहीं है। उनका कहना है कि अगर सरकार पीटीआई पर बैन लगाएगी तो सुप्रीम कोर्ट इसे ‘एक दिन के भीतर ही खारिज कर देगा’ क्योंकि ‘एक राजनीतिक पार्टी पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है’। इमरान खान और पाकिस्तानी सेना के संबंध पिछले कुछ साल में ‘दोस्ती’ से ‘दुश्मनी’ में बदल गए हैं। 2018 में इमरान सेना की मदद से ही सत्ता में आए थे। सेना को अपने हितों की सुरक्षा के साथ-साथ रूढ़िवादी और राष्ट्रवादी एजेंडे को पूरा करने के लिए इमरान में एक संभावना नजर आई।
कैसे दुश्मनी में बदल गई दोस्ती?
एक दौर वह था जब विपक्ष में बैठे शहबाज शरीफ और बिलावल भुट्टो जैसे नेता इमरान को ‘सेना की कठपुतली’ कहते थे। लेकिन प्रमुख सैन्य पदों पर नियुक्तों को लेकर इमरान और जनरलों के बीच दरार आ गई जो देखते ही देखते खाई में तब्दील हो गई। अप्रैल 2022 में अविश्वास प्रस्ताव लाकर इमरान को सत्ता से बाहर कर दिया गया। तब से यह अदावत बढ़ती चली गई और 9 मई को जो हुआ वह इसी का परिणाम था। इमरान सेना और आईएसआई पर अपनी हत्या की साजिश रचने का भी आरोप लगा चुके हैं।
इमरान का पलड़ा कमजोर
इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान में कोई भी सरकार सेना के खिलाफ जाकर अपना अस्तित्व नहीं बचा पाई है। ऐसे मुल्क में इमरान सेना को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं। उनके पास भीड़ जुटाने की अद्भुत क्षमता है। लोग उनके एक इशारे पर रैली से लेकर विरोध प्रदर्शनों में दौड़े चले आते हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि सेना के भीतर भी एक धड़ा इमरान का समर्थन करता है। लेकिन फिलहाल वह कई मोर्चों पर कमजोर हैं। भ्रष्टाचार से लेकर आतंकवाद तक के किसी भी केस में अगर उन्हें दोषी पाया गया तो पूरी संभावना है कि वह चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।