Friday, March 14, 2025
Google search engine
HomeLife Styleइस कुंड में नहाने से दूर हो जाते हैं चर्म रोग, बना...

इस कुंड में नहाने से दूर हो जाते हैं चर्म रोग, बना है विशाल नदी के बीच में, श्रीगणेश जी ने यहां की थी तपस्या


प्रवीण सिंह तंवर/हरदा.  मध्‍यप्रदेश की जीवनरेखा कहीं जाने वाली जीवनदायिनी मां नर्मदा के सभी तटों घाटों का अपना धार्मिक महत्त्व है, लेकिन मप्र के हरदा और देवास जिले के बीच बहने वाली मां नर्मदा के नेमावर और हंडीया  का धार्मिक महत्त्व ज्यादा है. हरदा जिले के हंडिया के सुप्रसिद्ध रिद्धनाथ घाट के पास मध्यप्रदेश की जीवन दायिनी नर्मदा नदी का नाभि स्थल है. कहा जाता है की जैसे शरीर का मध्य भाग नाभि होता है वैसे ही मां नर्मदा का मध्य भाग नाभिकुंड है, जो हरदा और देवास जिले के मध्य में है. यानी कुल 1321 कि.मी बहने वाली नर्मदा नदी का ब‍िलकुल बीचों-बीच ये नाभ‍िकुंडा बना है. वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो इस स्थान से नर्मदा के उदगम स्थल अमरकंटक और अंतिम पड़ाव खम्बात की खाड़ी की दूरी ब‍िलकुल बराबर है. कहा जाता है कि इस कुंड में नहाने से पुराने से पुराने रोग भी दूर हो जाते हैं.

नाभि कुंड का धार्मिक महत्त्व 
हरदा में स्थित नाभि कुंड का बड़ा महत्त्व है. नर्मदा के इस नाभिकुंड को सकरात्मक ऊर्जा का स्थान कहा जाता है. धार्मिक मान्यता है कि इस स्थान पर मां नर्मदा की स्तुति करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस नाभि कुंड में एक शिवलिंग भी है, जो हजारों साल पुराना है. कहा जाता है इस स्थान पर भगवान श्री गणेश जी ने भी तपस्या की थी. नाभि कुंड के पानी से स्‍नान करने से कई तरह की बीमारियों के ठीक होने की मान्‍यता स्थानीय लोगों में है.

ये कुंंड नर्मदा के बीचों बीच स्‍थ‍ित है.

नाभि कुंड का वैज्ञानिक महत्त्व
मप्र के अमरकंटक से निकलने वाली नर्मदा गुजरात के भरुच की खम्बात की खाड़ी में जाकर मिलती है. 1312 किमी बहने वाली नर्मदा का मध्य भाग नाभिकुंड है. यहां से नर्मदा के उदगम और अंतिम पड़ाव की दूरी बराबर है. ऐसा कहा जाता है की सैकड़ों साल पहले नर्मदा की परिक्रमा के दौरान यह स्थान मध्य भाग होता था और नर्मदा यात्रा की दूरी मापने के लिए नाभिकुंड को केंद्र माना जाता था.

नर्मदा के नाम का अर्थ और महत्त्व
प्राचीन पुराणों के अनुसार नर्मदा के जन्म को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. मान्यता है की तपस्या में लीन भगवान शिव के पसीने की बूंद से नर्मदा का अवतरण माघ शुक्ल की सप्तमी को हुआ था. इसलिए इसी दिन को नर्मदा जन्म माना जाता है और नर्मदा जयंती मनाई जाती है. नर्मदा अकेली ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है. कहा जाता है की भगवान शिव और पार्वती, नर्मदा की महिमा को देख हर्षित हुए थे. इसलिए उन्होंने नर्मदा नाम दिया. नर्म का अर्थ आनंद या हर्ष और दा का अर्थ होता है देने वाली. नर्मदा को रेवा भी कहा जाता है. हरदा के पंडित मुरलीधर व्यास ने न्यूज 18 से चर्चा में कहा की नर्मदा पुराण के अनुसार नर्मदा के पंद्रह नाम हैं. नर्मदा के दक्षिणी तट का बड़ा महत्‍व है. नर्मदा के दक्षिणी तट पर भगवान परशुराम जी ने तपस्या की थी और अपने पिता ऋषि जम्दगनी का पिंडदान किया था. जिसके पिंड आज भी पाषाण रूप में ग्राम तुरनाल में आज भी मौजूद है. नर्मदा के दक्षिणी और उत्तरी तट पर स्थित सिद्धनाथ और रिद्धनाथ मंदिर पांडवकालीन है. जिसकी स्थापना पांडवो ने की थी , साथ ही नर्मदा किनारे बसा नेमावर और हंडिया ऋषियों की तपस्थली रहा है.

dharmik kahani, strange news, abnormal story, unusual story, lifestyle, nabhi kund, nabhi kund mystery, narmada nadi

सैकड़ों लीटर दूध से नर्मदा का पंचामृत अभिषेक किया जायेगा.

हरदा जिले में नर्मदा जयंती पर होंगे विशेष कार्यक्रम
हरदा जिले में नर्मदा जयंती पर विशेष कार्यक्रम आयोजित होंगे. ग्राम हंडिया के रहने वाले अवन्तिका प्रसाद तिवारी ने न्यूज़ 18 से चर्चा में कहा की रिद्धनाथघाट पर जलमंच के द्वारा सैकड़ों लीटर दूध से नर्मदा का पंचामृत अभिषेक किया जायेगा. साथ ही घाट पर कन्या पूजन के बाद भंडारे का आयोजन किया जायेगा. दिनभर धर्मिक कार्यक्रमों के बाद शाम को मां नर्मदा में दीपदान भी किया जायेगा.

Tags: CM Madhya Pradesh, Dharma Aastha, Lifestyle, Narmada, Narmada River



Source link

RELATED ARTICLES
- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments