Monday, July 8, 2024
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इस गांव के किसान जड़ी-बूटी की खेती से हो रहे मालामाल डायबिटीज का है रामबाण


दीपक पाण्डेय/खरगोन.पुराने जमाने में इस्तेमाल होने वाली कई ऐसी जड़ी बूटियां आज भी मौजूद है जो अनेकों बीमारियों को जड़ से खत्म करने में कारगार सिद्ध होती है. उन्हीं में से एक है सफेद मुसली, जो आमतौर पर घने जंगलों में पाई जाती है. यह एक औषधीय जड़ी बूटी है. लेकिन, भारत के कई राज्यों में अब इसकी खेती होने लगी है. पाउडर और कैप्सूल के रूप में इसका सेवन किया जाता है. आज हम आपको बताएंगे की मध्यप्रदेश में कहा और कैसे सफेद मुसली की खेती होती है और उपयोग के लिए किस प्रकार तैयार होती है.

बता दें की सफेद मुसली का नाम सुनते है लोगों के दिमाग में यही खयाल आता है की यह सिर्फ शक्तिवर्धक जड़ी बूटी है, जो सेक्स पावर बढ़ाती है. जबकि सफेद मुसली शारीरिक शक्ति बड़ाने के अलावा कई बीमारियो के लिए रामबाण इलाज है. सर्दियों के मौसम इसका सेवन करने से शरीर की कमजोरी तो दूर होती है, साथ ही गठिया, डायबिटीज, यूटीआई इत्यादि बीमारियों को दूर करने में भी उपयोगी है. सफेद मूसली का उपयोग आयुर्वेदिक, यूनानी और होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति में प्रमुखता से किया जाता है.

90 प्रतिशत किसान करते है खेती
भारत के अन्य राज्यों सहित मध्यप्रदेश के खरगोन जिला मुख्यालय से करीब 21 किलोमीटर दूर ग्राम रायबिड़पुरा में सफेद मुसली की खेती होती है. निमाड़ में इसे धवलाई मुसली भी कहते है. करीब 700 से अधिक घरों की आबादी वाले इस गांव में लगभग 600 किसान परिवार रहते है. करीब 400 एकड़ में 90 प्रतिशत से ज्यादा किसान सफेद मुसली की खेती करते है. इस दिनों अगर आप यहां जाएंगे तो गली-गली में महिलाएं सफेद मुसली की सफाई के जुटी हुई नजर आएंगी.

खेत से निकलने के बाद होती है सफाई

गांव के किसान दिलीप बताते है कि बारिश के मौसम में जून-जुलाई में सफेद मुसली की बुआई की जाती है. मूंगफली की तरह जमीन के अंदर इसकी पैदावार गुच्छे के रूप में होती है. अक्टूबर में फसल पैदा होती है. खेतों से बाहर निकालने के बाद घर लाकर इसके ऊपर की छाल लोहे की जाली की सहायता से निकाली जाती है. 2 से 3 बार साफ पानी से धोया जाने के बाद तेज धूप में सुखाते है. सूखने के बाद इसे पावडर के रूप में इस्तेमाल करते है.

एक क्विंटल पर होता है इतना मुनाफा

गांव की महिला उमा बताती है की मूंगफली की तरह निकलने वाली सफेद मुसली की खेती में लागत कम होती है मुनाफा ज्यादा होता है. हर किसान के यहां आधे से एक एकड़ में एक से दो क्विंटल तक उत्पादन होता है. थोक आवक होने से इंदौर, मुंबई, रतलाम, खरगोन, खंडवा सहित अन्य जिलों और राज्यो से व्यापारी खरीदी करने आते है. 1500 से 2000 रुपए किलो तक बिकती है सुखी सफेद मुसली है. किसानों का कहना है की सुखी सफेद मुसली से दवाई कंपनियां पावडर और कैप्सूल बनाती है. घर पर भी दूध में काजू, बादाम के साथ इसका पावडर मिलाकर पीने से कमजोरी दूर होती है और शरीर में शक्ति बड़ती है.

Tags: Health, Local18, Madhya pradesh news, Success Story



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