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हाइलाइट्स
अंडरट्रायल कैदियों के टखने में जीपीएस डिवाइस फिट किया जाएगा
सिस्टम कैदी भागने की कोशिश करने की स्थिति में पुलिस को भेजेगा अलर्ट
देश के ज्यादातर जेलों में क्षमता से अधिक कैदी इस समय है कैद
भारत में अधिकांश जेल, क्षमता से अधिक कैदी होने की समस्या का सामना कर रहे हैं. देश की कई जेलों में तो क्षमता के डेढ़-दो गुना तक कैदियों को अमानवीय माहौल में ‘ठूंसकर’ रखा गया है. ऐसे स्थिति में अहम पहल करते हुए ओडिशा के जेल विभाग (Odisha prison department) ने जेलों में भीड़ कम करने के लिए गैर जघन्य आरोपों (non-heinous charges) का सामना कर रहे विचाराधीन कैदियों (Undertrial prisoners) को उनके टखनों में GPS (Global Positioning System) लगाकर घर में ही कैद करने का प्रस्ताव रखा है. इससे जेलों में कैदियों की संख्या न सिर्फ कम रखने में मदद मिलेगी बल्कि जेल कैदियों पर सरकार के खर्च को भी कम किया जा सकेगा.
राज्य के जेल महानिदेशक डॉ. मनोज छावड़ा ने बताया कि जेल विभाग ने ट्रैकिंग डिवाइस लगाने के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा है. विभाग ने हाल ही में गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति के समक्ष विचाराधीन कैदियों के लिए Ankle tracking system का प्रजेंटेशन भी दिया गया था. इस सिस्टम के अंतर्गत अंडर ट्रायल कैदियों के टखने में GPS डिवाइस लगाया जाना है. बता दें, ओडिशा की 87 जेलों में इस समय 20,000 से ज्यादा कैदी हैं.
सवाल: यह डिवाइस किस तरह से काम करेगा, क्या है अनुमानित लागत?
जवाब: जेल महानिदेशक के अनुसार, यह जीपीएस प्रणाली Tamper proof होगी और इसके साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जा सकेगी. इस टेक्नोलॉजी के जरिये मामूली दर्जे के अपराधों में शामिल सामान्य (हिंसा न करने वाले) विचाराधीन कैदियों को जेल भेजे बगैर उनके घर में ही कैद रखना संभव होगा. नामित क्षेत्र (Designated area) से कैदी के भागने की कोशिश करने की स्थिति में यह सिस्टम पुलिस को अलर्ट कर देगा. इसकी अनुमानित लागत ₹10,000 से ₹15,000 के बीच है.
सवाल: जीपीएस डिवाइस प्रणाली को किसलिए लाने की योजना है?
जवाब : इससे जेलों में कैदियों की संख्या को कम करने में मदद मिलगी. साथ ही देश के जेलों के रखरखाव में सरकार के खर्च को भी कम किया जा सकेगा. ऐसा माना जाता है कि जेल का माहौल किसी साधारण इंसान को भी अपराधी बना देता है. जीपीएस सिस्टम की मदद से ऐसे विचाराधीन कैदी, जो कई बार मजबूरी में छोटे-छोटे अपराध करते हैं, को जेल के माहौल से अलग रखा जा सकेगा. यह उन्हें आपराधिक प्रवृत्ति से दूर रखने में भी मदद करेगा. गैर-जघन्य अपराध वे हैं जो प्रकृति में अधिक गंभीर नहीं होते जैसे-सामान्य मारपीट, जालसाजी, धोखाधड़ी आदि. दूसरी ओर, जघन्य अपराधों की श्रेणी हत्या, बलात्कार, अपहरण आदि को रखा जाता है.
सवाल: कैदियों के लिए जीपीएस डिवाइस प्रणाली कितनी प्रभावी साबित हो पाएगी?
जवाब: कोई भी चीज़ अपनी कमज़ोरियों के बिना नहीं है. GPS जीपीएस मॉनिटरिंग एक प्रभावशाली तकनीक है, लेकिन इसमें भी कुछ कमियां हैं. GPS Ankle Monitor आपको नहीं बता सकता कि संदिग्ध क्या कर रहा है. आप उच्च स्तर की सटीकता के साथ यह तो जान सकते हैं कि संदिग्ध कहां है लेकिन अगर वे कुछ ऐसा कर रहे हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए, वह जीपीएस मॉनिटर नहीं बता सकता. इसी तरह-सुदूर के स्थानों पर जीपीएस सटीक तरीके से काम कर पाएगा, इसमें संदेह है. इसके अलावा जिस कैदी का डेटा डिवाइस में रखा जाएगा, उसका गलत इस्तेमाल किया जा सकता है.
सवाल : अंडरट्रायल कैदी किस राज्य की जेलों में सबसे ज्यादा हैं?
हाल ही में एक रिपोर्ट मे बताया गया है कि पिछले 10 सालों में देश की जेलों में कैदियों की संख्या करीब दोगुनी हुई है. देश की जेलों में करीब 22 फीसदी कैदी ही ऐसे हैं जिन्हें दोषी करार दिया गया है यानी जिनका ट्रायल पूरा हो चुका है.दूसरी ओर, 77 फीसदी ऐसे कैदी हैं, जिनके केस का या तो ट्रायल चल रहा है या फिर अब तक शुरू भी नहीं हुआ है.देश की 54 फीसदी जेलें ओवरक्राउडेड हैं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत की 54 फीसदी जेलें ओवरक्राउडेड हैं. यूपी, दिल्ली, मध्य प्रदेश,उत्तराखंड सहित छह राज्यों की जेलों में क्षमता से अधिक 150 से 185 फीसदी तक ऑक्यूपेंसी है. देश के छह राज्यों में ऑक्यूपेंसी रेट 120 से लेकर 150 तक पहुंच गया है. आशय यह है कि इन राज्यों की जेलोंमें तय सीमा से 50 फीसदी अधिक कैदी भरे हुए हैं. इन राज्यों में बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, झारखंड और महाराष्ट्र शामिल हैं. ओडिशा उन राज्यों में है जहां की जेलों में कैदियों की 100 फीसदी ऑक्यूपेंसी है लेकिन यहां की जेलों में 65 फीसदी छोटे अपराधी हैं. वैसे विचाराधीन यानी अंडर ट्रायल कैदियों की सबसे ज्यादा संख्या यूपी में है जहां करीब 80 हजार विचाराधीन कैदी हैं.
सवाल : दुनिया के कौन से प्रमुख देशों में कैदियों की जीपीएस के जरिये मॉनिटरिंग की जा रही?
जवाब : अमेरिका के कई राज्य परोल, प्रोवशन और प्रीट्रायल रिलीज के मामलों में जीपीएस ट्रैकिंग और इलेक्ट्रॉनिक मॉनिटरिंग का प्रयोग करते हैं. इसी तरह ब्रिटेन में भी प्रीट्रायल डिटेनी और सामुदायिक सजा (community sentences) पाने वालों की इलेक्ट्रॉनिक मॉनिटरिंग की जाती है. कनाडा,ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के कुछ राज्य भी परोल, प्रोबेशन पर छूटे व्यक्तियों (Individuals on probation) की जीपीएस/इलेक्ट्रॉनिक मॉनिटरिंग करते हैं. सिंगापुर भी अपनी आपराधिक न्याय प्रणाली अंतर्गत कुछ अपराधियों/कैदियों की जीपीएस मॉनिटरिंग करता है.
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Tags: GPS, Odisha government, Prison, Prisoners
FIRST PUBLISHED : August 30, 2023, 15:51 IST
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