Home Life Style कायस्थों का खाना-पीना 08 : खिचड़ी जो हर किसी को भायी, हर किसी ने अपने तरीके से बनाई

कायस्थों का खाना-पीना 08 : खिचड़ी जो हर किसी को भायी, हर किसी ने अपने तरीके से बनाई

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कायस्थों का खाना-पीना 08 : खिचड़ी जो हर किसी को भायी, हर किसी ने अपने तरीके से बनाई

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हर खान-पान की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक यात्रा भी होती है.लिहाजा खाने को इससे अलग नहीं रखा जा सकता. निश्चित तौर पर भारतीय खानपान में कायस्थों का योगदान खासा ज्यादा है, उनके किचन में तमाम खानों ने नया जायका, स्वाद और रूप-रंग पाया लेकिन बहुत से खाने ऐसे भी हैं, जो हम सबके प्रिय हैं. उन पर किसी का पेटेंट नहीं- अलबत्ता वो कायस्थों के लिए भी प्रिय रहे हैं.

अगर भारत के राष्ट्रीय खाने का नाम पूछा जाए- तो आप क्या कहेंगे. वो खाना समाजवादी भी है, राजसी भी, गरीबों का भी और अमीरों का भी, सबने उसको अपने तरीके से ढाला. अपने-अपने तरीके से पकाया. इस खाने को अनंतजीवी कहना चाहिए. जब से चावल और दाल की खेती हुई होगी, तब से इस खाने का यात्रा भी जारी है. ये यात्रा हजारों साल की है. इस यात्रा में इस खाने के साथ बहुत प्रयोग हुए लेकिन इसकी आत्मा यथावत है, चिरंतर है.

हमारा ये खाना खिचड़ी है. मैने अपने घर में कई तरह की खिचड़ी बनते देखी. उनका स्वाद लिया. अरहर दाल की मसालेदार खिचड़ी, सूखी खिचड़ी, काली उड़द दाल की लाजवाब खिचड़ी, मूंग का सात्विक खिचड़ी और चने के दाल की मसाला तड़का खिचड़ी. इसके अलावा जब मकई का सीजन होता था तो पत्थर की चक्की से मक्के को दरने के बाद जब उसकी खिचड़ी बनाई जाती थी तो ये लाजवाब बनती थी. दरे हुए बाजरे की खिचड़ी भी कुछ कम सुस्वादु नहीं. कायस्थों के किचन में इसमें से हर तरह की खिचड़ी बनती है और पसंद की जाती रही है.

रसोई की कोई किस्सागोई खिचड़ी कथा बगैर अधूरी
मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार में खिचड़ी भोज की परंपरा है. इसमें खिचड़ी की दावत होती है. जब ये परसी जाती है तो इसके साथ अचार, रायता, पापड़, सलाद भी जरूर परोसे जाते हैं. तब खिचड़ी का स्वाद स्वर्गिक होता है. रसोई की कोई भी किस्सागोई इस भारतीय उपमहाद्वीप में खिचड़ी कथा के बगैर अधूरी है. बहुत सीधा और आसान सा व्यंजन. भारतीय मिट्टी से उपजा ठेठ देसी व्यंजन. हर रसोई का प्रिय.

भारतीय उपमहाद्वीप में ढेर सारे युद्ध हुए, विदेशी आक्रमणकारी आए, नई खोजें हुईं, साम्राज्यवाद पनपा..विदेशी जब यहां से लौटे तो खिचड़ी भी साथ ले गए. हां, कहा जा सकता है कि सभी ने इसे अपने तरीके से समृद्ध भी किया. अपने मसालों और सामग्रियों से युक्त किया. मूल रूप से खिचड़ी का मतलब है दाल और चावल का मिश्रण.

हानिरहित शुद्ध आयुर्वेदिक खाना
असल में ये हानिरहित शुद्ध आयुर्वेदिक खाना है, जायके और पोषकता से भरपूर. वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो जब चावल और दालों को संतुलित मात्रा में मिलाकर पकाते हैं तो एमिनो एसिड तैयार होता है, जो शरीर के लिए बहुत जरूरी है. इससे बेहतर प्रोटीन कुछ है ही नहीं.

बादशाह जहांगीर को कैसे भायी
कहा जाता है कि एक बार बादशाह जहांगीर गुजरात की यात्रा पर गया था. वहां उसने पहली बार एक गांव में लोगों को खिचड़ी खाते हुए देखा. बादशाह उन दिनों खाने की अरुचि से गुजर रहा था. उसे कब्जियत भी थी. मसालेदार मुगलिया खानों से अरुचि सी हो चुकी थी. लिहाजा जब उसने खिचड़ी बनते हुए देखी, तो पकते हुए खाने की गंध उसके नाकों तक गई. उसने खुद इस खाने को खाने की फरमाइश की.

फिर खिचड़ी के लिए शाही रसोइया नियुक्त हुआ
जब लोगों ने सुना तो हैरानी भी हुई कि बादशाह जहांगीर खिचड़ी खाएगा. खैर, खिचड़ी उसे परोसी गई. तो उसको बहुत अच्छी लगी. हालांकि इस खिचड़ी में चावल की जगह बाजरे का इस्तेमाल किया गया था. उसने तुरंत एक गुजराती रसोइया शाही पाकशाला के लिए नियुक्त किया. फिर मुगल पाकशाला में इस पर और प्रयोग हुए.

मुगल रसोई में ड्राइफ्रुट्स की खिचड़ी भी बनी
कुछ लोग कहते हैं कि खिचड़ी को दरअसल शाहजहां ने मुगल किचन में शामिल किया. मुगल बादशाहों को कई तरह की खिचड़ी सर्व की जाती थी. इसमें एक बेहद विशेष थी-जिसमें ड्राइ फ्रूट्स, केसर, तेज पत्ता, जावित्री, लौंग और अन्य मसालों का इस्तेमाल किया जाता था. जब ये पकने के बाद दस्तरखान पर आती थी, तो इसकी खुशबु ही गजब ढहाने लगती थी. भूख और बढ़ जाती थी. जीभ पर पानी आने लगता था. इसके आगे दूसरे व्यंजन फीके पड़ जाते थे.

बंगाल में त्योहारों के दौरान बनने वाली खिचड़ी तो बहुत ही खास जायका लिए होती है- बादाम, लौंग, जावित्री, जायफल, दालचीनी, काली मिर्च के साथ इस कदर स्वादिष्ट बनती है कि पूछिए मत.

अबुल फजल ने यूं बताया खिचड़ी बनाने का तरीका
वैसे खिचड़ी का जिक्र हमारे वेदों और पौराणिक ग्रंथों में खूब हुआ है. मुगलिया लेखकों ने भी इस पर कलम चलाई है. आइने अकबरी में अबुल फजल ने यूं तो खिचड़ी बनाने की सात विधियों का जिक्र किया है, लेकिन मूल खिचड़ी यानि सादी खिचड़ी की विधि कुछ यूं बताई है
05 कटोरी चावल
05 कटोरी दाल
05 कटोरी घी
नमक स्वादानुसार
अगर आप खिचड़ी बनाने जा रहे हों तो जरा एक बार इस तरीके का इस्तेमाल करके भी देखें-
आधी कप मूंग दाल
01 कप चावल
3 से 4 कप पानी, या आवश्यकतानुसार
चौथाई चम्मच जीरा
3 से 4 तेज पत्ता
3 से 4 लौंग
नमक स्वादानुसार

बनाने की विधि
चावल और दाल को अलग अलग कुछ घंटे के लिए भिगोएं. फिर पानी छान लें. तीन से चार चम्मच तेल या घी लें और इसे तेज पत्ता, लौंग लेकर कुछ सेकेंड तक फ्राइ करें. फिर इसमें धीरे धीरे दाल और चावल मिलाएं. इसे आठ से दस मिनट फ्राइ करें. अब इसमें और पानी मिलाएं. मध्यम आंच पर बंदकर पकाएं. फिर कुछ देर बाद आंच धीमी करें. पकने दें. जब तक चावल और दाल पक नहीं जाते. अगर जरूरत हो तो और पानी मिला सकते हैं. अगर आप चाहें पतली पतली सब्जियां मसलन-पालक, टमाटर, गोभी, मटर भी मिला सकते हैं लेकिन ये काम तभी करें जब खिचड़ी तीन चौथाई पक गई हो. अब इस पर भुना हुआ जीरा, हरी धनिया के पत्ते और पतली कटी प्याज ऊपर से छिड़क सकते हैं.

हालांकि शुद्धतावादी यही कहेंगे कि असली खिचड़ी तो वही है, जिसमें बस चावल, दाल, नमक और हल्दी मिलाओ और फिर सही तरह से पकाकर खाओ. वैसे खिचड़ी का असली आनंद तभी है, जब इसे शुद्ध गरम घी, रायता, पापड़, चटनी, अचार, आलू का भरता और सलाद के साथ सर्व करें. अगर चाहें तो कई तरह की चटनी का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. इस खाने का जो स्वाद आपकी जीभ पर आएगा, उसे आप शायद सालों याद रखेंगे.

हरे कृष्ण आंदोलन की पाकशाला संबंधी किताब
दुनियाभर में शाकाहारी व्यंजनों को पसंद करने वालों को सुझाव दिया जाता है कि वो एक बार हरे कृष्ण आंदोलन की पाकशाला संबंधी किताब हरे कृष्ण बुक ऑफ वेजेटेरियन कुुकिंग जरूर पढ़ें. इसे डाउनलोड भी किया जा सकता है. इस पुस्तक के जरिए दुनियाभर में बड़ी संख्या में लोगों ने शाकाहारी भोजन बनाना और खाना सीखा.
वर्ष 1973 में ये किताब पहली बार प्रकाशित हुई. फिर इस कदर लोकप्रिय हुई कि पूछिए मत. आप भी इसे एक बार जरूर पढ़ें. ये केवल खाने के बारे में ही नहीं बताती बल्कि हर खाने के स्वास्थ्य पहलुओं के बारे में भी बताती है. ये किताब कहती है कि वैदिक डाइट में दालें आयरन और विटामिन बी के साथ प्रोटीन का मुुख्य स्रोत होती हैं. जब ये दोनों साथ मिलाकर खाई जाती हैं तो प्रोटीन की मात्रा भी अपने आप बढ़ जाती है.

कहां से निकली खिचड़ी
क्या आपको मालूम है कि खिचड़ी का असली उदगम कहां है. कहा जाता है कि इसकी शुरुआत दक्षिण भारत में हुई थी. आप गुजरात से लेकर बंगाल तक चले जाइए या पूरे देश या दक्षिण एशिया में घूम आइए, हर जगह खिचड़ी जरूर मिलेगी लेकिन अलग स्वाद वाली. महाराष्ट्र में झींगा मछली डालकर एक खास तरह की खिचड़ी बनाई जाती है. गुजरात के भरौच में खिचड़ी के साथ कढ़ी जरूर सर्व करते हैं. इस खिचड़ी में गेहूं से बने पतले सॉस, कढी पत्ता, जीरा, सरसों दाने का इस्तेमाल किया जाता है. इसे शाम के खाने के रूप में खाया जाता है.

एलन डेविडसन अपनी किताब आक्सफोर्ड कम्पेनियन फार फूड में लिखते हैं सैकड़ों सालों से जो भी विदेशी भारत आता रहा, वो खिचड़ी के बारे में बताता रहा. अरब यात्री इब्ने बतूता वर्ष 1340 में भारत आए. उन्होंने लिखा, मूंग को चावल के साथ उबाला जाता है, फिर इसमें मक्खन मिलाकर खाया जाता है. खिचड़ी के ना जाने कितने रूप, संस्करण और बनाने की विधियां हैं. (जारी है)

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