Sunday, March 16, 2025
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कार्तिक माह में वृश्चिक संक्रांति कब? किन वस्तुओं का करें दान, जानें मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व


हाइलाइट्स

सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश संक्रांति काल कहलाता है.
वृश्चिक संक्रांति में दान-पुण्य, श्राद्ध व तर्पण का विशेष महत्व होता है.

Vrishchik Sankranti 2023: सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना ही संक्रांति कहलाता है. इस बार यह सक्रांति 17 नवंबर को होगी. ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है. दरअसल, सूर्य देव एक राशि में 30 दिन तक रहते हैं. इसके बाद, एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं. इस समय में सूर्य तुला राशि में विराजमान हैं और आने वाले दिनों में सूर्य तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे. इस तिथि पर पवित्र नदियों में स्नान कर दान-पुण्य, श्राद्ध व तर्पण का विशेष महत्व होता है. इस काल में दान करने से पुण्य का लाभ कई गुना मिलता है. आइए उन्नाव के ज्योतिषाचार्य पं. ऋषिकांत मिश्र शास्त्री से जानते हैं वृश्चिक संक्रांति की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि-

वृश्चिक संक्रांति 2023 की तिथि

ज्योतिषाचार्य के अनुसार, इसबार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि यानी 17 नवंबर को वृश्चिक संक्रांति है. इस तिथि पर पुण्य काल प्रातः काल सुबह 06:45 बजे से दोपहर 12:06 बजे तक है. ऐसे में इस शुभ अवधि में पूजा, जप-तप और दान करना अधिक शुभ है. वहीं, महा पुण्य काल सुबह 06:45 बजे से 08:32 मिनट तक है. इस दौरान पूजा और दान करने से सूर्य देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है.

सूर्य राशि परिवर्तन का समय

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को देर रात 01:18 बजे सूर्य देव तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश कर जाएंगे. इसी तरह 20 नवंबर को अनुराधा और 03 दिसंबर को ज्येष्ठा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे. इसके बाद, सूर्य देव 16 दिसंबर को धनु राशि में गोचर करेंगे. इसी दिन मूल नक्षत्र में भी सूर्य देव गोचर करेंगे.

वृश्चिक संक्रांति 2023 पूजा विधि

ज्योतिषाचार्य के अनुसार, अन्य संक्रांति की तरह वृश्चिक सक्रांति में भी सूर्य पूजन लाभदायी होता है. इस काल में मनुष्य को सूर्योदय से पहले उठना चाहिए. फिर स्नान कर तांबे के पात्र में शुद्ध पानी भरकर उसमें लाल चंदन मिलाकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए. रोली, सिंदूर व हल्दी मिला जल चढ़ाने का भी विधान है. सूर्य के लिए दीपक जलाते समय घी में भी लाल चंदन मिलाना चाहिए. पूजन में फूल भी लाल रंग के ही उपयोग में लेने चाहिए. गुड़ से बने हलवे का भोग लगाने के साथ पूजा में ऊं दिनकराय नम: या अन्य सिद्ध मंत्रों का जाप करना चाहिए. पंडित जोशी के अनुसार संक्रांति काल में सूर्य भगवान की विधिपूर्वक पूजा- अर्चना से सूर्य दोष व पितृ दोष दूर होकर मनुष्य को अंत काल में सूर्य लोक की प्राप्ति होती है.

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क्यों करें दान-पुण्य श्राद्ध और तर्पण

संक्रांति काल दान- पुण्य तथा श्राद्ध व पितृ तर्पण का काल भी माना जाता है. ऐसे में वृश्चिक संक्रांति में भी मनुष्य को तीर्थ स्नान कर पितरों का श्राद्ध व तर्पण करना चाहिए. देवीपुराण के अनुसार जो मनुष्य संक्रांति काल में भी तीर्थ स्नान नहीं करता है, वह सात जन्मों तक रोगी और निर्धन रहता है. इस दिन ब्राह्मणों व गरीबों को भोजन, कपड़े व गाय आदि का दान करना भी श्रेष्ठ माना गया है.

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Tags: Dharma Aastha, Festival, Lifestyle, Religion



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