Friday, November 22, 2024
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कितना ताकतवर होता है चुनाव आयोग, किस CEC ने नहीं होने दिए थे इलेक्‍शन


चुनाव आयोग शनिवार 16 मार्च को लोकसभा चुनाव 2024 के लिए मतदान और मतगणना की तारीखों का ऐलान कर देगा. उम्‍मीद की जा रही है कि देश में 6 या 7 चरणों में मतदान प्रक्रिया पूरी की जाएगी. ज्‍यादातर लोगों को लगता है कि सिर्फ निष्‍पक्ष चुनाव कराना ही चुनाव आयोग की जिम्‍मेदारी है. बता दें कि देश में संविधान लागू किए जाने से एक दिन पहले ही निर्वाचन आयोग की स्‍थापना कर दी गई थी. भारतीय निर्वाचन आयोग देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने वाली स्वायत्त व अर्ध-न्यायिक संस्था है. स्‍थापित व्‍यवस्‍था के मुताबिक, मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य चुनाव आयुक्तों के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव 2024 कराया जाएगा.

चुनाव आयोग की जब स्‍थापना की गई थी, तब इसकी संचरना ऐसी नहीं थी. जनमा के द्वारा चुने प्रतिनिधियों का शासन होना किसी देश के लोकतांत्रिक होने की पहचान मानी जाती है. लिहाजा, भारत में लोकतंत्र की स्‍‌थापना से पहले उस संस्‍थान की स्‍थापना की गई, जो जनता के प्रतिनिधियों को चुनने के लिए शानदार व्‍यवस्‍था देने के लिए जिम्‍मेदार है. शुरुआत में इसकी संरचना के अनुसार, 1950 से 15 अक्टूबर 1989 तक मुख्य निर्वाचन आयुक्त यानी सीईसी ही चुनाव आयोग का नेतृत्व करते थे. उनके साथ एक एकल-सदस्यीय निकाय होता था. बता दें कि देश के पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन थे.

आयोग के ढांचे में 1989 में किया गया बदलाव
निर्वाचन आयोग के ढांचे में अक्टूबर 1989 में बदलाव कर तीन सदस्यीय निकाय बना दिया गया. हालांकि, ये व्‍यवस्‍था ज्‍यादा दिन नहीं चल पाई. नतीजा ये निकला कि फिर एक ही नेतृत्वकर्ता की टीम काम करने लगी. तीन साल की जद्दोजहद के बाद अक्टूबर 1993 से फिर से तीन सदस्यीय व्यवस्‍था अमल में लाई गई. इसके बाद से अब तक यही व्यवस्‍था चल रही है. इस समय राजीव कुमार मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त हैं. वहीं, ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधु चुनाव आयुक्‍त हैं. चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव, राज्यसभा चुनाव, विधानमंडल चुनाव और राष्ट्रपति चुनाव कराता है. वहीं, दूसरे चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग कराता है.

चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव, राज्यसभा चुनाव, विधानमंडल चुनाव और राष्ट्रपति चुनाव कराता है.

ताकत इतनी, कोई नहीं दे सकता इसे आदेश
ग्राम पंचायत, नगर पालिका, महानगर परिषद, तहसील और जिला परिषद के चुनाव स्वायत्त संस्‍था राज्य निर्वाचन आयोग कराती है. हालांकि, राज्‍य निर्वाचन आयोग भारतीय चुनाव आयोग के निर्देशन में काम करता है. चुनाव से जुड़े नियमों, कानूनों, फैसलों में चुनाव आयोग केवल संविधान द्वारा स्‍थापित निर्वाचन विधि के ही अधीन होता है. चुनाव आयोग इतना ताकतवर होता है कि देश की कोई दूसरी संस्‍था ना तो इसे नियंत्रित कर सकती है और ना ही आदेश या निर्देश दे सकती है. सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि निर्वाचन आयोग अकेली संस्‍था है, जो चुनाव कार्यक्रम तय करे. निष्‍पक्ष चुनाव कराना सिर्फ और सिर्फ उसी का काम है.

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राष्‍ट्रपति सलाह पर ही लेते हैं चुनाव के फैसले
जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के अनुसार, राष्‍ट्रपति किसी भी राज्यपाल को निर्वाचन अधिसूचना जारी करने का अधिकार दे सकते हैं. इसके लिए उन्हें भी निर्वाचन आयोग से सलाह लेनी होता है. राष्‍ट्रपति भी निर्वाचन आयोग के निर्देशन के मुताबिक ही आदेश जारी कर सकते हैं. निर्वाचन आयोग को चुनाव की घोषणा के साथ ही संबंधित सीमाओं में आदर्श आचार संहिता लागू करने का अधिकार होता है. संविधान में चुनाव आचार संहिता का जिक्र नहीं है, लेकिन निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव के लिए आयोग इसे लागू करता है. इसमें प्रचार, प्रचार खर्च, भाषण में संयम और प्रचार जत्‍थे पर नजर रखी जाती है. इसी के तहत जीतने वाले प्रत्‍याशियों की सूची राज्यों को सौंपने का काम भी चुनाव आयोग का ही है. गाइडलाइन के उल्लंघन पर चुनाव आयोग कार्रवाई करता है.

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कौन करता है मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त की नियुक्ति?
भारतीय निर्वाचन आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति देश के राष्‍ट्रपति करते हैं. नियमों के मुताबिक, कोई भी चुनाव आयुक्त अधिकतम अपनी आयु के 65वें साल तक इस पद पर रह सकता है, चाहे उसका कार्यकाल बाकी ही क्‍यों ना हो. दूसरे शब्‍दों में कहें तो 65 वर्ष की आयु पूरी कर चुका शख्स मुख्य चुनाव आयुक्त नहीं बन सकता है. एक मुख्य चुनाव आयुक्त अधिकतम 6 साल तक ही पद पर रह सकता है. मुख्य चुनाव आयुक्त को महाभियोग लाकर हटाया जा सकता है. बता दें कि राजीव कुमार देश के 25वें मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त हैं. देश में सबसे ज्‍यादा प्रसिद्धि पाने वाले टीएन शेषन 10वें मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त रहे थे.

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देश में निष्‍पक्ष चुनाव कराना निर्वाचन आयोग की जिम्‍मेदारियों का एक हिस्‍सा है.

सीईसी शेषन ने उपचुनाव कराने से कर दिया था मना
सीईसी रहते हुए टीएन शेषन पर कांग्रेसी होने का ठप्पा लगा था. हालांकि, जल्द ही कांग्रेस को समझ आ गया कि शेषन को न तो पिछला उपकार याद दिलाकर रोका जा सकता है और न ही लालच देकर अपने पक्ष में खड़ा किया जा सकता है. बता दें कि कांग्रेस के विजय भास्कर रेड्डी को आंध्र प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था. नियम के मुताबिक, उन्‍हें पद पर बने रहने के लिए छह महीने के भीतर किसी विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित होना जरूरी था. सीईसी शेषन ने उपचुनाव कराने से इनकार कराते हुए कहा कि विजय भास्कर रेड्डी की जरूरत के हिसाब से उपचुनाव नहीं कराए जाएंगे. जब बाकी जगह उपचुनाव होंगे तो आंध्र प्रदेश में भी उपचुनाव करा दिए जाएंगे.

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शेषन के निशाने पर आए केंद्रीय मंत्री संतोष मोहन देव
टीएन शेषन के निशाने पर 1988 में त्रिपुरा के चुनाव में कांग्रेस को जीत दिलाने वाले केंद्रीय मंत्री संतोष मोहन देव भी आ गए थे. त्रिपुरा विधानसभा 1993 के चुनाव फरवरी में होने थे. शेषन ने चुनाव स्थगित कर दिए. उन्‍होंने कहा कि जब तक संतोष मोहन देव के साथ चुनाव-प्रचार के दौरान मिलीभगत के आरोपी पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हो जाती, तब तक त्रिपुरा में चुनाव नहीं होंगे. त्रिपुरा में चुनाव अप्रैल 1993 में हुए. इससे पहले सरकार को पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई करनी पड़ी. कानून के पालन को लेकर अडिग टीएन शेषन ने अर्जुन सिंह को भी नहीं बख्शा था.

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‘चुनाव की तारीख मंत्री या पीएम नहीं करते तय’
मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश में भाजपा की सरकारों को भंग करने के बाद पीवी नरसिम्हा राव सरकार के सबसे ताकतवर मंत्रियों में शुमार अर्जुन सिंह ने कहा कि इन राज्यों में चुनाव एक साल बाद होंगे. इस पर टीएन शेषन ने तुरंत याद दिलाया कि चुनाव की तारीख कोई भी मंत्री या प्रधानमंत्री तय नहीं करता है. ये काम भारतीय निर्वाचन आयोग का है. शेषन के फैसलों से तंग नरसिम्हा राव ने उनसे छुटकारा पाने का विचार बनाया. ‘द इंडिपेंडेंट’ में छपे एक लेख में टिम मैक्गिर्क ने इससे जुड़ा किस्सा सुनाया था.

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पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्‍हा राव ने तत्‍कालीन सीईसी टीएन शेषन से तंग आकर राज्‍यपाल या विदेश में राजदूत बनने का ऑफर दिया था.

नरसिम्‍हा राव टीएन शेषन से आ गए थे तंग
मैक्गिर्क ने बताया कि एक बार प्रधानमंत्री राव ने शेषन को बुलाकर पूछा कि मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं? उन्होंने शेषन के सामने दो विकल्प रखते हुए कहा कि आप चाहें तो किसी राज्य के राज्यपाल बन जाएं या वॉशिंगटन में भारत के राजदूत बन सकते हैं. शेषन ने दोनों ही पद लेने से इनकार कर दिया. वह कहते थे कि मैं राजनीति से नहीं, बुरे राजनेताओं से नफरत करता हूं. केरल में पलक्‍कड़ जिले के तिरुनेलै में जन्‍मे शेषन 12 दिसंबर 1990 से 11 दिसंबर 1996 तक देश के मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त रहे. उन्‍हें अपने कार्यकाल में स्वच्छ व निष्पक्ष चुनाव कराने के लिये नियमों का कड़ाई से पालन करने और करवाने के लिए याद किया जाता है.

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