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इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में बीते रविवार की शाम बेहद रोचक, अद्भुत और यादगार पलों के साथ आई. प्रसिद्ध गीतकार और भाषाविद् डॉ. ओम निश्चल जी के आग्रह पर ललित मोहन जोशी की फिल्म ‘अंगवाल’ देखने का अवसर मिला. बेहद आत्मीय और निजी वातावरण में ‘अंगवाल’ फिल्म की स्क्रीनिंग हुई.
‘अंगवाल’ फिल्म की स्क्रीनिंग में फिल्म के निर्माता बीबीसी लंदन के पूर्व प्रसारक ललित मोहन जोशी, प्रोड्यूसर दीपक जोशी, फिल्म समालोचक राजीव श्रीवास्तव, चर्चित किस्सागो डॉ. हरीश भल्ला, साहित्यकार ओम निश्चल, चर्चित लेखिका डॉ. कुसुम पंत, गायिका उत्तरा सुकन्या जोशी और राष्ट्रीय पुस्तक न्यास- एनबीटी में संपादक भागेंद्र उपस्थित थे.
‘अंगवाल’ मूवी दरअसल, कुमाउनी साहित्य खासकर काव्य की पिछले 200 वर्षों की यात्रा है. इस यात्रा में साहित्य प्रेमी कुमाउनी साहित्य की विलुप्त होती पुरानी परंपरा और पल्लवित होती नई काव्य धारा से होकर गुजरते हैं. कुमाऊं के रहने वाले ललित मोहन जोशी अब परिवार सहित लंदन में बस चुके हैं. वह इस फिल्म के माध्यम से पहाड़ों से होते विस्थापन का भी मार्मिक चित्र उकेरते हैं. साहित्य के साथ-साथ यह फिल्म ललित मोहन जोशी के लंदन से आकर अपने पुरखों की जमीन पर कदम रखकर पुरानी यादों को संजोने और खंडहर में तब्दील हो चुकी पूर्वजों की विरासत को फिर से महसूस करने के बड़े ही हृदयस्पर्शी दृश्य हैं.
इसलिए यह फिल्म ललित मोहन जोशी की निजी यात्रा भी है, लेकिन जिस खूबसूरती से फिल्म का निर्माण किया गया है, उससे यह फिल्म ललित मोहन जोशी के निजी जीवन पर आधारित कम और साहित्य के अनूठे विमर्श को ज्यादा प्रदर्शित करती है.
‘अंगवाल’ में कुमाऊं के चर्चित कवि गुमानी से लेकर वर्तमान पीढ़ी की दिवा भट्ट को बहुत ही गहरी अंतर्दृष्टि के साथ स्मरण किया गया है. गुमानी पन्त संस्कृत और हिन्दी के कवि थे. वे कुमाऊंनी तथा नेपाली के प्रथम कवि थे. कुछ लोग उन्हें खड़ी बोली का प्रथम कवि भी मानते हैं. 1800 के आसपास उनका रचनाकर्म माना जाता है.
‘अंगवाल’ में गुमानी से शुरू हुआ गीत और कविताओं का सफर गौरी दत्त पाण्डे ‘गौर्दा’, सुमित्रानंदन पंत, श्यामादत्त पंत से होता हुआ वर्तमान कवियों तक पहुंचता है.
कुमाऊं कवियों पर किया गया अनुसंधान तो प्रभावित करता ही है, फिल्म का सबसे अधिक प्रभावित करने का पहलू है इसका गीत-संगीत. फिल्म में गौर्दा की ‘चाय लीला’ कविता के माध्यम से चाय के इतिहास से लेकर आज के समय में जीवन का जरूर अंग बनने का बहुत ही मनोहारी प्रस्तुतिकरण किया गया है. गौर्दा के साथ हमें उत्तराखंड के लोकप्रिय कवि गिर्दा का भी जिक्र यहां देखने को मिलता है.
‘अंगवाल’ फिल्म के भावभीने संगीत, गीत और कविताओं के माध्यम से हम कुमाऊनी संगीत की अनुगूंज से रूबरू होते हैं. उत्तरा सुकन्या जोशी का गाया गीत भी मंत्रमुग्ध करता है. निश्चित ही यह फिल्म केवल कुमाऊं ही नहीं बल्कि हिंदी साहित्य का एक ऐतिहासिक दस्तावेज है. फिल्म के माध्यम से युवा पीढ़ी को कुमाऊंनी संस्कृति, संगीत और साहित्य से रू-ब-रू का ललित मोहन जोशी का यह प्रयास काबिले तारीफ है.
डॉ. ओम निश्चल फिल्म के बारे में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं- फिल्म पटकथा बहुत सघन है. लगभग सवा घंटे की फिल्म कविता और कवियों पर आधारित होने के बावजूद ऊब नहीं पैदा करती है बल्कि पूरी फिल्म एक कविता की तरह स्क्रीन पर विन्यस्त होती है और हम एकाग्र चित्त होकर इन शब्द साधकों की कविताओं का आनंद लेते हैं.
फिल्म समालोचक राजीव श्रीवास्तव ने फिल्म के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें बताईं और इस फिल्म की विशेषताओं से अवगत कराया.
अंत में बात डॉ. हरीश भल्ला की
वैसे तो ‘अंगवाल’ फिल्म देखने अपने आप में एक शानदार अनुभव रहा, लेकिन इस दौरान एक और रोचक पल का जिक्र करना यहां जरूरी है. फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान 7-8 दर्शकों के बीच एक शख्स गोल टोपी लगाए शांत मुद्रा में बैठे हुए थे. व्यक्तित्व प्रभावित करने वाला था. स्क्रीनिंग के बाद जब उन्हें जानने का मौका मिला तो वहां मौजूद हर कोई उस शख्स के चुंबकीय व्यक्तित्व की ओर खिंचा-सा चला गया. टोपी लगाए वह शख्स थे डॉ. हरीश भल्ला.
डॉ. हरीश भल्ला.
डॉ. हरीश भल्ला पेशे से चिकित्सक हैं, लेकिन संगीत, साहित्य, कला में इतनी गहन रूचि और पकड़ रखते हैं कि उस विषय विशेष का विशेषज्ञ भी उनके अनुभव के आगे खुद को हल्का महसूस करने लगेगा. कैफी आजमी से लेकर गोपालदास नीरज तक और चेतन आनंद से लेकर वर्तमान पीढ़ी के कलाकारों के साथ निजी ताल्लुक रखना तो उनकी विशेषता है ही, साथ ही उनकी किस्सागोई भी अद्भुत है. वे कहानियां कहते हैं, किस्से सुनाते हैं और सभी को प्रभावित करते हैं. डॉ. भल्ला कहते हैं कि उन्हें बचपन से ही कहानी सुनाने का शौक रहा है. मध्य प्रदेश के रजवाड़ों से लेकर गीतकार, संगीतकार, लेखक आदि के सैकड़ों दिलचस्प किस्से उनकी जुबान पर हैं. यूट्यूब पर एक कहानी (Ek Kahani) और
drharishbhalla.com के माध्यम से आप उनके बारे में और अधिक जानकारी हासिल कर सकते हैं. फिलहाल कहानी को यहीं विराम देते हैं और डॉ. हरीश भल्ला के बारे में विस्तार से फिर कभी.
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Tags: Hindi Literature, Hindi Writer, Literature
FIRST PUBLISHED : April 17, 2023, 11:46 IST
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