हाइलाइट्स
फारसी शब्द पसमांदा का मतलब पीछे छूट गए, सताए गए और दबाए गए लोग है.
पसमांदा मुस्लिमों के लिए देश में कई आंदोलन चलाए गए, लेकिन फायदा नहीं हुआ.
Pasmanda Muslims: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 27 जून 2023 को बूथ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पसमांदा मुस्लिमों की बदहाली का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि वोट बैंक की राजनाति ने पसमांदा मुस्लिमों का जीवन मुश्किल कर दिया है. इनके साथ जबरदस्त भेदभाव हुआ है. इसका नुकसान इनकी कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ा है. इस दौरान उन्होंने कई राजनीतिक परिवारों पर भी सीधा निशाना साधा. क्या आप जानते हैं कि पसमांदा मुस्लिमों का क्या इतिहास है? देश में उनकी तादाद कितनी है? पीएम मोदी ने ऐसा क्यों कहा कि उनके साथ भेदभाव हुआ है? पीएम मोदी का भाषण सुनने के बाद आपके मन में आए ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानते है.
भारत में मुस्लिम समाज में पसमांदा मुसलमानों की आबादी 85 फीसदी हिस्से है. पसमांदा मुस्लिमों में दलित और पिछड़े समाज के मुस्लिम आते हैं. मुस्लिम समाज में पसमांदा मुसलमान अपनी अलग सामाजिक लड़ाई लड़ रहे हैं. भारत में रहने वाले मुस्लिमों में 15 फीसदी सवर्ण माने जाते हैं. इनको अशरफ कहा जाता है. वहीं, बाकी 85 फीसदी अरजाल और अज़लाफ़ दलित व पिछड़े माने जाते हैं. मुस्लिम समाज में इनकी स्थिति बहुत खराब है. मुस्लिम समाज के उच्च वर्ग का नजरिये इनके प्रति अच्छा नहीं है. पसमांदा मुस्लिम आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक स्तर पिछड़े हुए हैं.
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पसमांदा का क्या है मतलब, कौन से हैं संगठन
पसमांदा फारसी का शब्द है. इसका मतलब पीछे छूट गए, दबाए या सताए हुए लोग है. भारत में पसमांदा आंदोलन 100 साल पुराना है. पिछली सदी के दूसरे दशक में मुस्लिम पसमांदा आंदोलन शुरू हुआ था. भारत में 90 के दशक में पसमांदा मुसलमानों के हक में दो बड़े संगठन खड़े हुए. इनमें ऑल इंडिया यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा के नेता एजाज अली और ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महज के नेता पटना के अली अनवर थे. दोनों संगठन देशभर में पसमांदा मुस्लिमों के सभी छोटे संगठनों का नेतृत्व करते हैं. दोनों संगठनों को मुस्लिम धार्मिक नेता गैर-इस्लामी कहते हैं. पसमांदा मुस्लिमों के छोटे संगठन उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बहुतायत में हैं.
पसमांदा मुस्लिम आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक स्तर पर पिछड़े हुए हैं.
क्या मुसलमानों में भी है भेदभाव, ऊंच नीच
दक्षिण एशियाई देशों में ज्यादातर मुस्लिम धर्म बदलकर इस्लाम में आए हैं. हकीकत ये है कि वे जिस जाति से आए थे, आज भी उन्हें उसी जाति का माना जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो हिंदुओं की तरह दक्षिण एशियाई देशों के मुसलमानों में जातिवाद है. लंबे समय से इनके संगठन पसमांदा मुस्लिमों के लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं. भारतीय मुस्लिम भी तीन मुख्य वर्गो और सैकड़ों बिरादरियों में बंटे हुए हैं. उच्च जाति के अशरफ कहे जाने वाले मुस्लिम पश्चिम या मध्य एशिया से हैं. इसमें सैय्यद, शेख, मुगल, पठान आते हैं. भारत में सवर्ण जातियों से मुस्लिम बने लोगों को भी उच्च वर्ग में माना जाता है. इसीलिए मुस्लिमों में भी राजपूत, त्यागी, चौधरी, ग्रहे या गौर लगाने वाले लोग मिल जाएंगे. सैयद ब्राह्णण माने जाते हैं.
आखिर पीछे क्यों छूट गए पसमांदा मुस्लिम
भारत में अरब, अफगानिस्तान और मध्य एशिया से आए मुसलमान खुद को भारतीय मुसलमानों से ऊंचा मानते हैं. इन अशरफिया मुस्लिमों का देश की सत्ता पर काफी समय कब्जा रहा. इसी वजह से इनका दबदबा आज भी है. आजादी के बाद भी इन्होंने ही मुसलमानों की अगुआई की. ऐसे में पसमांदा मुसलमान राजनातिक तौर पर हाशिये पर ही रह गए. देश कर राजनीति में सबसे पहले पसंमादा मुसलमान शब्द का इस्तेमाल जेडीयू नेता अली अनवर ने किया था. वह दो बार राज्यसभा सांसद रह चुके हैं. सबसे पहले बिहार में 1900 के दशक में ऑल इंडिया पचवारा मुस्लिम महज संगठन का गठन किया गया. संगठन ने पसंमादा मुसलमानों को एकजुट करने की कोशिश की.
पसमांदा के हक में चलाए गए कई आंदोलन
मुसलमानों में सामाजिक असमानता को सैयदवाद कहा जाता है. इस वर्चस्व और जातिवादी भेदभाव के खिलाफ मुस्लिमों में अल्ताफ और अरजाल मुस्लिमों ने कई आंदोलन चलाए. ये आंदोलन 20वीं सदी की शुरुआत से देश में शुरू हुए थे. 20वीं सदी के दूसरे दशक में चले आंदोलन को मोमिन आंदोलन कहा गया था. वहीं, 90 के दशक में राष्ट्रीय स्तर पर कई बड़ी संस्थाएं पिछड़े और दलित मुस्लिमों की आवाज बनीं. महाराष्ट्र के शब्बीर अंसारी ने 90 के दशक में ऑल इंडिया मुस्लिम ओबीसी ऑर्गेनाइजेशन शुरू किया. अली अनवर की लिखी ‘मसावत की जंग’ और मसूद आलम फलाही की लिखी ‘हिंदुस्तान में जात पात और मुसलमान’ किताब में मुस्लिम समाज में जात-पात का बोलबाला और उसके असर के बारे में बताया गया है.
जातिवादी भेदभाव के खिलाफ मुस्लिमों में अल्ताफ और अरजाल मुस्लिमों ने कई आंदोलन चलाए.
मुस्लिम संगठनों में भी है उच्च वर्ग का बोलबाला
अशरफिया मुस्लिमों का देश के ज्यादातर मुस्लिम संगठनों में बोलबाला है. जमात-ए-उलेमा-ए-हिंद, जमात-ए-इस्लामी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और इदार-ए-शरिया में भी उनका बर्चस्व है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, जामिया मिलिया इस्लामिया, मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन, उर्दू एकेडमी जैसी सरकारी संस्थाओं में भी अशरफिया मुसलमानों की हिस्सेदारी ज्यादा है. अली अनवर और मसूद आलम फलाही कि किताबों के मुताबिक, मुस्लिम समाज में जाति आधारित कई परतें हैं. जाति के आधार पर ही मुसलमानों में भी भेदभाव होता है. ये भेदभाव नमाज पढ़ते समय मस्जिदों में भी नजर आता है.
देश में अब एकजुट हो रहे पसमांदा मुसलमान
देश में राइन, अंसारी, मंसूरी, कुरैशी, अल्वी, सलमानी, हलालखोर, घोसी, हवाराती, सैफी, सिद्दीकी, इदरीसी, वनगुर्जर जाति के लोग पसमांदा की पहचान के साथ एकजुट हो रहे हैं. पसमांदा समुदाय के लोगों में भेदभाव को लेकर अलग-अलग राय हैं. भारतीय मुस्लिम समाज में चार वर्ग हैं. वे अपने हालात को लेकर नाराज भी रहते हैं. हालांकि, धार्मिक नेताओं के उनके आंदोलन को गैर-इस्लामी करार देने के कारण आगे नहीं आ पाते. वहीं, खुद इस समुदाय के लोगों में बहुत उत्साह नहीं होने कारण आंदोलन जोर नहीं पकड़ पाता है. इसके अलावा इस समुदाय के नेताओं की अति महत्वाकांक्षाओं के कारण आंदोलन बड़ा नहीं बन पा रहा है.
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Tags: Indian Muslims, Islam religion, Muslims, PM Narendra Modi Speech
FIRST PUBLISHED : June 27, 2023, 22:12 IST