Home World क्या ज्यादा खर्चीला होता जा रहा है मंगल से नमूने लाने का कार्यक्रम?

क्या ज्यादा खर्चीला होता जा रहा है मंगल से नमूने लाने का कार्यक्रम?

0
क्या ज्यादा खर्चीला होता जा रहा है मंगल से नमूने लाने का कार्यक्रम?

[ad_1]

हाइलाइट्स

मंगल से नमूने जमा कर पृथ्वी पर लाना एक बहुत बड़ा अभियान है.
नासा के पर्सिवियरेंस रोव का मंगल पर नमूने जमा करना, अभियान का हिस्सा भर है.
इस अभियान के बाकी चरणों के लिए आर्थिक चुनौतियां बढ़ती दिखाई दे रही हैं.

नासा का पर्सिवियरेंस रोवर मंगल ग्रह पर मिट्टी और चट्टानों के नमूने जमा कर रहा है. लेकिन इन्हें पृथ्वी पर लाने के लिए क्या किया जा रहा है. इसका जवाब पूरे अभियान में छिपा है जिसे हम मार्स सैम्पल रिटर्न या एमएसआर कहते आ रहे हैं. वास्तव में पर्सिवियरेंस रोवर का नमूनों का जमा करना एमएसआर का हिस्सा भर हैं. अभियान के बाकी हिस्सों पर तो काम कर चल रहा है. लेकिन नई जानकारी सामने आ रही है कि इस पूरे अभियान पर कुछ आशंकाएं छा गई हैं क्योंकि यह अभियान महंगा होता जा रहा है. और नासा को इसके लिए आगे बजट समस्या का सामना करना पड़ सकता है.

क्या है मार्स सैम्पल रिटर्न अभियान
ऐसा क्यों है यह जानने के लिए हमें पहले मार्स सैम्पल रिटर्न अभियान को ही समझना होगा. इस अभियान के चार हिस्से हैं पहला हिस्सा, जिसमें मंगल ग्रह पर जाकर वहां से नमूने जमा करना है, पूरा ही हो चुका है. जिसे नासा ने अंजाम दिया है. इसके बाद के दो हिस्सों, सैम्पल रिटर्न लैंडर (एसएलआर) और मार्स एसेंट व्हीलकल (एमएवी) की जिम्मेदारी भी नासा की है. वहीं आखिरी हिस्सा अर्थ रिटर्न ऑरबिटर (ईआरओ) का जिम्मा यूरोपीय स्पेस एजेंसी पर है.

एसएलआर और एमएवी का काम
एसएलआर का काम मंगल पर उतर कर पर्सिवियरेंस के जमा किए नमूनों को एकत्र करना है और उन्हें उस यान में पहुंचाना है जो उन नमूनों को मंगल ग्रह के दायरे से बाहर लाने का काम करेगा. यह जिम्मेदारी एमएवी की है. एमएवी नमूनों को मंगल के गुरुत्व से मुक्त कर बाहर कक्षा में मौजूद पृथ्वी पर लौटने वाले यान को सौंपने का काम करेगा. एसएसआर और एमएवी की डिजाइन हो चुकी है और आगे काम चल रहा है.

ईआरओ तो डिजाइन नहीं हुआ
इस अभियान का आखिरी चरण अर्थ रिटर्न ऑरबिटर पर अभी केवल डिजाइन स्तर ही काम चल रहा है जो मंगल की कक्षा से पृथ्वी तक पहुंचाने का काम करेगा जिसके बाद ही इस अभियान को पूरा माना जा सकेगा. ईआरओ के लिए नासा भी कुछ मामलों में सहयोग करेगा. लेकिनि प्लैनेटरी सोसाइटई के चीफ ऑफ स्पेस पॉलिसी के केसे ड्रेयर की हालिया रिपोर्ट में इस अभियान द्वारा सामना कर रही कुछ चुनौतियों पर गौर किया गया है.

Space, Science, Mars, Earth, Research, NASA, ESA, Mars Sample Return mission, Sample Return Lander, Mars Ascent Vehicle, Earth Return Orbiter

नासा का पर्सिवियरेंस रोवर पहले ही मंगल पर जाकर नमूने निकालने का काम कर चुका है. (तस्वीर: @NASA)

संकट के संकेत
एसएलआर में एक बदलाव हुआ है कि उसमें अब रोवर की जगह हेलीकॉप्टर का उपयोग होगा.  लेकिन इसके लागत बढ़ती जा रही है. हाल ही में नासाने ने इस प्रोजेक्ट में एक दूसरा समीक्षा बोर्ड बनाया है जो कि इससे पहले अभियान के लिए कभी नहीं हुआ. यह बोर्ट पूरे प्रोजेक्ट को स्वीकृति देने, सीमित करने और यहां तक कि पूरे अभियान को रद्द तक कर सकता है. उसके कुछ फैसले नासा के बजट पर भी निर्भर होंगे.

यह भी पढ़ें: बस चंद दिनों में भारत फिर चांद पर भेजेगा चंद्रयान, कैसी है इसरो की तैयारी

सरकार और नासा का बजट?
इन बातों में दम इसलिए भी नजर आ रहा है क्योंकि खुद नासा भी बजट संकट से ग्रस्त है और इतनी नहीं अमेरिकी सरकार का भी यही हाल है. अमेरिकी कांग्रेस कई वित्तीय प्रावधानों के खर्चों पर नकेल कस रखी है जिसके असर से नासा भी छूटा नहीं है. ऐसे में समय के साथ मार्स सैम्पल रिटर्न की लागत में इजाफा होना तय है यानि संकट गंभीर होता जाएगा.

Space, Science, Mars, Earth, Research, NASA, ESA, Mars Sample Return mission, Sample Return Lander, Mars Ascent Vehicle, Earth Return Orbiter

अमेरिकी सरकार और नासा पहले से ही बजट को लेकर काफी चुनौतियां झेल रहे हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)

पहले ही खर्चा बढ़ने के संकेत
डेकेडल सर्वे ऑफ प्लेनेटरी साइंस ने एमएसआर का समर्थन करने के बाद भी प्रोजेक्ट अपने बजट के 35 फीसदी हिस्से तक ही सीमित करने का सुझाव दिया है. डेकेडल सर्वे के सुझाव अमेरिका के कानून निर्माता मान लिया करते हैं. और एमएसआर पहले ही 35 फीसद की सीमा के नजदीक कुछ ही सालों में पहुंच जाएगा. वहीं बजट की कमी से नासा के अन्य अभियानों पर भी असर हो रहा है.

यह भी पढ़ें: क्या वाकई भारत के लिए बहुत बड़ा और अहम है नाासा का आर्टिमिस समझौता?

साफ है अब इस बात पर मंथन ज्यादा होगा कि अब इस अभियान को कितने ज्यादा किफायती तरीके से अंजाम दिया जा सकता है. पहले ही पर्यावरण के पैरोकार मंगल के लिए अभियानों पर हो रहे खर्चों के औचित्य पर सवाल उठाते आ रहे हैं. वहीं इतना आगे बढ़ने के बाद अभियान के बाकी हिस्से टल भले ही जाएं लेकिन रद्द होना मुश्किल है. क्योंकि कतार में चीन सहित अन्य देश भी हैं जिनका आगे निकलना अमेरिका से सहन नहीं होगा.

Tags: Earth, Mars, Nasa, Research, Science, Space

[ad_2]

Source link