Monday, September 2, 2024
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क्या राजस्थान की हवा कर्नाटक में बहेगी? CM पर सस्पेंस, गांधी परिवार के पास है तुरुप का इक्का


हाइलाइट्स

राजस्थान और कर्नाटक की समानता को अनदेखा नहीं जा सकता.
विधायकों की पसंद के बावजूद केंद्रीय नेतृत्व अंतिम निर्णय लेगा.
आलाकमान पर कोई दबाव नहीं बना सकता, कर्नाटक के सीएम के फैसले में यह नियम फिर लागू होगा.

नई दिल्ली. जब कांग्रेस अपने मुख्यमंत्री चुनती है तो एक ही नियम होता है कि कोई नियम नहीं है. पांच साल पहले की बात करें, जब राजस्थान और मध्य प्रदेश दोनों ही कांग्रेस की झोली में आ गए थे. मगर यह जश्न इस कड़वे सवाल से फीका पड़ गया था कि मुख्यमंत्री कौन होगा? राजस्थान में मुद्दा एक ओर सचिन पायलट का था. जो साढ़े चार साल के लिए जयपुर चले गए थे. जब उन्हें राहुल गांधी ने पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए कहा था. क्योंकि उन्हें लगा कि युवाओं को कमान संभालनी चाहिए. हालांकि जब कांग्रेस जीती, तो राहुल गांधी ने सीएम के रूप में पायलट के लिए कम जोर लगाया था.

राहुल गांधी को बताया गया और आश्वस्त किया गया कि 2019 के चुनावों में अशोक गहलोत जैसे दिग्गज राजनेता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. क्योंकि वे अकेले ही यह सुनिश्चित करने में सक्षम होंगे कि कांग्रेस को राज्य से ज्यादा लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हो. इसके बाद निपटने के लिए मध्य प्रदेश बचा था. कमलनाथ को दिल्ली के ऐसे नेता के रूप में देखा जाता था जो केंद्र को समझते थे, लेकिन राज्य की राजनीति को नहीं. लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने पार्टी की जीत सुनिश्चित की थी. कुछ लोगों का कहना है कि यह काम इस बात से आसान हो गया था कि दिग्विजय सिंह ने पर्दे के पीछे से निर्णय लेना पसंद किया और मुख्यमंत्री नहीं बने.

पायलट रहे गहलोत से पीछे
ज्योतिरादित्य सिंधिया भी बहुत मजबूती से रेस में नहीं थे. कांग्रेस आलाकमान ने राज्य प्रमुख के रूप में यह कहकर अन्य दावेदारों को काट दिया कि नाथ का पहला दावा था. वहीं राजस्थान में इस नियम में बदलाव किया गया. राज्य के प्रमुख पायलट को गहलोत से इस आधार पर पीछे रहना पड़ा कि गहलोत राजनीतिक हलकों में जादूगर के रूप में जाने जाते हैं. वे विधायक थे और इतने बड़े नेता थे कि उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था. गहलोत मुख्यमंत्री बने और पायलट को डिप्टी सीएम बनाकर उन्हें रिझाया गया. उन्हें यह भी बताया गया कि राज्य के प्रमुख को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता क्योंकि वन मैन, वन पोस्ट पार्टी का नियम था. जबकि मध्य प्रदेश में इस नियम की धज्जियां उड़ा दी गईं.

छत्तीसगढ़ में भी वही संकट
छत्तीसगढ़ में भी ऐसी ही समस्या सिर उठा रही थी. राहुल गांधी ने राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेश बघेल को चुनने के लिए कदम बढ़ाया था. तब कांग्रेस के पास सीएम की कुर्सी के चार दावेदार थे- बघेल, टीएस सिंह देव, तमराजदास साहू और चरण दास महंत. फिर इन सभी मामलों में क्या बात सामान्य है? सबसे बड़ा तथ्य यह है कि विधायक नहीं बल्कि आलाकमान मुख्यमंत्री का फैसला करता है. इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि केंद्रीय नेतृत्व का राज्य की राजनीति पर नियंत्रण कायम रहे. कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली नेता और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएसआर की मौत के बाद बड़े नेताओं ने महसूस किया कि केंद्रीय नियंत्रण के बिना राज्य की राजनीति लड़खड़ा जाएगी.

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राजस्थान और कर्नाटक में समता
किसी मुख्यमंत्री के जाने से दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में भी पार्टी को निराशा में नहीं छोड़ना चाहिए. तब यह एक मौन सहमति बनी थी कि दिल्ली के वफादार को ही मुख्यमंत्री बनाना चाहिए ताकि जो भी चुना जाए, वह केंद्रीय नेतृत्व के प्रति आभारी रहे. बहरहाल यह नियम हमेशा काम नहीं करता है यह पंजाब और राजस्थान में देखा गया है. राजस्थान और कर्नाटक की समानता को अनदेखा नहीं जा सकता. इस बात की प्रबल संभावना है कि एक अनुभवी नेता के रूप में सिद्धारमैया को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है क्योंकि उनके पास बड़ी संख्या में विधायकों का समर्थन है. इसी तरह आक्रामक संकटमोचक डीके शिवकुमार ने संगठन का निर्माण किया और गिरफ्तार होने के बावजूद पार्टी के प्रति वफादार रहे. उनको उम्मीद होगी कि इस समय उनको इसका लाभ दिया जाएगा.

दिल्ली पर कोई दबाव नहीं बना सकता
वास्तविकता यह है कि विधायकों की पसंद के बावजूद केंद्रीय नेतृत्व अंतिम निर्णय लेगा. यह दिखाता है कि पहले के फॉर्मूले- ‘एक मजबूत राज्य लेकिन मजबूत केंद्रीय नेतृत्व’- को नहीं छोड़ा जाएगा. हिमाचल में प्रतिभा सिंह की मुख्यमंत्री बनाए जाने की खुली मांग के बावजूद सुखविंदर सुक्खू को चुना गया. जिससे यह संदेश गया कि यह गांधी परिवार का फैसला है. साथ ही यह भी कहा गया कि दिल्ली पर कोई दबाव नहीं बना सकता. मुख्यमंत्री पर कर्नाटक के अंतिम फैसले में यह नियम एक बार फिर लागू होगा.

Tags: Assembly election, Congress, Karnataka Assembly Election 2023, Rajasthan Politics



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