Friday, July 19, 2024
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क्या है ‘बैंगनी क्रांति’ जो पूरे देश में फैल रही है,जानें J&K के साथ इसका नाता


रिपोर्ट- अरुणिमा

नई दिल्ली. पर्पल रिवोल्यूशन यानी बैंगनी क्रांति जो जम्मू-कश्मीर के भद्रवाह नाम के एक छोटे से अनजान पहाड़ी गांव से शुरू हुई थी. अब यह देश भर के किसानों के आकर्षण का केंद्र बन गई है. इस क्रांति के तहत बड़ी मात्रा में लैवेंडर के फूलों की खेती की शुरुआत की गई है.

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जितेंद्र सिंह ने न्यूज 18 से बातचीत में इस बात की पुष्टि करते हुए कहा, ‘हिमाचल प्रदेश भद्रवाह की सफलता को दोहराने का प्रयास कर रहा है. मुख्यमंत्री ने इस संबंध में मुझसे मुलाकात की थी. उत्तराखंड सरकार भी सीएसआईआर (वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद) देहरादून से संपर्क साध चुकी है. गुजरात ने एक प्रस्ताव भेजा है, यह जानने के लिए क्या उनके राज्य में कुछ जगह इस खेती के लिए माकूल हो सकती हैं. ’

सफलता की कहानी लिखी गई है उत्तरपूर्व में
मेघालय में रहने वाले लम्फ्रांग थिंगनी एक पेशेवर मैकेनिक हैं जो खेती भी करते हैं. वह अपने परिवार के भरण पोषण की जरूरत भर सब्जियां उगाया करते थे. लेकिन आज थिंगनी अपने राज्य में लैवेंडर की खेती के लिए एक सम्मानित किसान के तौर पर जाने जाते हैं. थिंगनी को कश्मीर के डोडा जिले के एक अनजान गांव से प्रेरणा मिली. गांव था भद्रवाह, जहां 2016 में बैंगनी क्रांति की शुरुआत हुई. अब देश भर के किसान इस मॉडल को अपनाना चाह रहे हैं.

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सीएसआईआर द्वारा आयोजित लैंवेंडर उत्सव के दौरान थिंगनी ने न्यूज 18 को बताया कि हम तो बस आलू, खीरा उगाया करते थे. हम जो भी उगाते थे वह हमारे खाने पीने के लिए पर्याप्त था. लेकिन उसके लिए कोई बाजार नहीं था, लेकिन इस फसल (लैवेंडर) की वजह से हमें कमाई का एक और विकल्प मिल गया है.

बैंगनी क्रांति असल में है क्या
बैंगनी क्रांति नाम, जम्मू-कश्मीर में लैवेंडर की खेती में दिनों दिन हो रही बढ़ोतरी के लिए दिया गया है. लैवेंडर का फूल बैंगनी रंग का होता है जो पहले जम्मू-कश्मीर के छोटे छोटे हिस्सों में उगाया जाता था. लेकिन भद्रवाह के भारत भूषण की सफलता के बाद इस खेती की दिशा ही बदल गई. भारत भूषण ने सीएसआईआर के कहने पर अपनी जमीन के छोटे से हिस्से पर बैंगनी फूल के पौधे लगाए. भारत भूषण जल शक्ति मंत्रालय में गार्ड की नौकरी करते थे. लेकिन बीते तीन सालों में जैसे उनकी लॉटरी खुल गई है. भूषण कहते हैं कि, पहले दो सालों में मेरी कमाई दो गुनी हो गई थी और अब मैं जो कमा रहा हूं वह पिछले 10 सालों की कमाई का 4 गुना है.

मक्का से बेहतर लैवेंडर
75 साल के ओम राज ने जीवन भर मक्का की खेती की, लेकिन अपने गांव लहरोट में युवा किसानों की सफलता को देखते हुए उन्होंने भी अपने आधे खेत में लेवेंडर की खेती शुरू कर दी, अब उनका कहना है, ‘पहले मैं एक झोपड़ी में रहता था, अब मेरा खुद का पक्का मकान है,’ लैवेंडर की खेती ने इस बुजुर्ग किसान की जिंदगी को बदल कर रख दिया है.

खेती करने वालों का कहना है कि मक्का की तुलना में लैवेंडर की खेती में निवेश और मेहनत दोनों ही कम है. इसका पौधा 15 साल तक रहता है, इसमें सिंचाई की भी कम जरूरत होती है और बंदर भी इसे नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, जो मक्का की खेती करने वाले किसानों के लिए एक बहुत बड़ी मुसीबत है.
डोडा के भद्रवाह के 2500 किसान आज 6000 हेक्टेयर जमीन में लैवेंडर उगा रहे हैं. यह सभी किसान पहले पारंपरिक तौर पर मक्का और राजमा की खेती किया करते थे.

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केंद्र सरकार भी दे रही है बढ़ावा
केंद्र सरकार ने यहां एक डिस्टिलेशन प्लांट (भाप आसवन प्लांट) लगाया है जिससे किसानों को इसका तेल निकालने में मदद मिलेगी, वहीं कुछ किसानों ने साबुन, सफाई उत्पाद और लैवेंडर शहद का उत्पादन भी शुरू कर दिया है. वहीं सीएसआईआर ने लैंवेंडर किसानों को और प्रोत्साहित करने के लिए अरोमा मिशन के तीसरे चरण की घोषणा की है.

Tags: Himachal pradesh, Jammu and kashmir



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