हाइलाइट्स
इसे लाहौर में रहने एक ऐसे पंडित ने लिखा था जो वैदिक ज्योतिष के साथ हस्तरेखा और फेस रीडिंग के विशेषज्ञ थे
हालांकि ये भी कहा जाता है कि ये किताब मुगल द्वारा फारस से लाई गई ज्योतिष से प्रभावित है
ज्योतिष में लाल किताब ऐसी किताब है, जिसके बगैर ज्योतिषियों का काम चलता ही नहीं. ये किताब मूल रूप से ज्योतिष और हस्तरेखा विज्ञान की बात करती है. इसका आधार वैदिक ज्योतिष उपायों को माना जाता है. ये सबसे पहले उर्दू में लिखी गई थी. इसकी सबसे पहली पुस्तक पंडित रूप चंद जोशी ने लिखकर करीब 90 साल पहले लाहौर में प्रकाशित की थी. इसके बारे में कहा जाता है कि रावण ने कहीं से विद्या हासिल करके इस ग्रंथ लिखा था. वहीं एक काली किताब भी है, जो इसी तरह टोटकों पर आधारित है.
लंकाधिपति रावण ने सूर्य के सारथी अरुण से यह विद्या हासिल की थी. रावण के बाद माना जाता है कि ये ग्रंथ गायब हो गया. ये किसी तरह आद नाम की जगह पर पहुंच गया. वहां इसका अनुवाद अरबी और फारसी भाषा में किया गया. इसका प्राचीन उर्दू अनुवाद आजकल पाकिस्तान की लाइब्रेरी में सुरक्षित है. परन्तु इसका कुछ अंश गायब हैं.
अब ये किताब पाकिस्तान के लाहौर में सरकारी संग्रहालय में रखी गई है. ये ऐसी सबसे ज्यादा प्रचलित किताब है, जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई. ये पांच किताबों से मिलकर बनी है, जो जीवन की अलग अलग स्थितियों में उपाय की बात तो करती ही है और साथ ही भविष्यवाणियां भी करती है. लाल किताब के उपाय उत्तर भारत और पाकिस्तान के कई हिस्सों में एक लोक परंपरा के रूप में प्रसिद्ध हैं. लाल किताब को अरुण संहिता भी कहा जाता है.
लाल किताब को कुछ ज्योतिषी हस्तरेखाओं और कुंडली के ग्रह नक्षत्रों का मेल भी मानते हैं. ये बताती है कि किसी की कुंडली में कुछ ग्रहों की स्थिति उनकी हथेली की रेखाओं में भी जरूर दिखती है. इस किताब को अंग्रेजी में रेड बुक भी कहते हैं.
लाहौर के पंडित रूपचंद जोशी ने इसे सबसे छपवाया
मूल तौर पर ये पुस्तक काव्यात्मक छंद के रूप में है. ज्योतिष उपचार के क्षेत्र में ज्यादातर ज्योतिषी इसका इसा इस्तेमाल करते हैं. बेशक इसे किताब के रूप में सबसे पहले लाहौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी रूपचंद जोशी ने लिखकर प्रकाशित कराया लेकिन ये किताब और इसकी बातें बहुत पुरानी हैं. लाहौर में 19वीं सदी के अंत में ज्योतिष के रूप में पंडित रूप चंद जोशी की तूती बोलती थी. वो इसके जरिए ना केवल ज्योतिष अनुमान लगाते थे बल्कि उपाय भी बताते थे, जो बहुत सटीक साबित होते थे.
पांच खंडों में लिखा गया, 13 सालों तक छपती रही
तब पंडित रूप चंद जोशी (1898-1982) ने उर्दू में पांच खंडों में इस पर बड़ी किताब ही लिख डाली. लिहाजा कुछ लोग उन्हें इस किताब जनक मानते हैं. कुछ ये मानते हैं कि उन्होंने ज्योतिष में लाल किताब के जरिए एक खास विद्या को जीवित किया. पहला खंड 1939 में प्रकाशित हुआ तो आखिरी खंड 1952 में छपकर आया, जो सबसे ज्यादा मोटा और ज्यादा पेजों का था. बाजार में जो लाल किताब उपलब्ध है, वो इन पांच खंडों का निचोड़ ही है.
ये किताब जिन पांच खंडों में लिखी गई, उसके नाम इस तरह हैं
1. लाल किताब के फ़रमान (लाल किताब के शिलालेख), 1939, 383 पृष्ठ
2. लाल किताब के अरमान (लाल किताब की “आकांक्षाएँ”), 1940, 280 पृष्ठ
3. गुटका ( इल्म सामुद्रिक की लाल किताब ) (तीसरा भाग), 1941, 428 पृष्ठ
4. लाल किताब के फ़रमान (लाल किताब – तरमीम शुदा), 1942, 384 पृष्ठ
5. इल्म-ए सामुद्रिक की बुनियाद पर की लाल किताब (लाल किताब), 1952, 1173 पृष्ठ
कुछ का मानना है कि ये पंडित गिरधारी की देन
हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि इस किताब को मुख्य तौर पर सामने वाले पाकिस्तान के पंजाब रहने वाले पंडित गिरधारी लाल जी शर्मा ब्रिटिश प्रशासन के लिए काम कर रहे थे. उस दौरान उन्हें लाहौर के एक निर्माण स्थल से उर्दू और फ़ारसी भाषा में लिखी कुछ ताम्र लिपियां मिलीं. इन्हें गिरधारी शर्मा के पास ले जाया गया. वह ना केवल ज्योतिषी थे बल्कि विशेषज्ञ भाषाविद् भी थे.

ये हैं पंडित रूप चंद जोशी, जिन्होंने लाल किताब लिखी.
पंडित जी ने कई वर्षों तक उन लिपियों का अध्ययन किया. फिर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि वे लिपियां वास्तव में ज्योतिष से संबंधित हैं और लाल किताब से हैं. वैसे लाल किताब को पुस्तक के तौर प्रकाशित करने वाले पंडित रूप चंद जोशी उनके चचेरे भाई थे.
ये किताब हस्तरेखा, वास्तु, वैदिक ज्योतिष और फेस रीडिंग का मेल
पंडित रूप चंद जोशी को ज्योतिष के साथ-साथ हस्तरेखा, वास्तु और फेस रीडिंग का भी अच्छा ज्ञान था. उन्होंने इन सबका एक अच्छा संयोजन बनाने का प्रयास किया. इसे सामुद्रिक विद्या का नाम दिया. सामुद्रिक का अर्थ है सागर. उनका लक्ष्य भविष्यवाणी की विभिन्न शाखाओं को एक साथ लाकर एक बनाना था.
पहली बार यह बात सामने आई कि जो बात कुण्डली से पढ़ी जा सकती है उसे हथेली से भी देखा जा सकता है. उन्होंने इसे बहुत अच्छे से समझाया. हालांकि जब उन्होंने पहली पुस्तक प्रकाशित की तो उसमें कई विसंगतियां भी थीं. पंडित जी संस्करण दर संस्करण इसमें सुधार करते रहे.
क्यों लाल किताब एकदम अलग और खास
लाल किताब वैदिक ज्योतिष के क्षेत्र में खास मानी जाती है, क्योंकि ये ग्रहीय ज्योतिष स्थितियों को हस्त रेखाओं के साथ जोड़कर ही किसी व्यक्ति के बारे में बताया जाता था. यानि ये पुस्तक ज्योतिष-हस्तरेखा विज्ञान पर है, यानी इसमें हस्तरेखा विज्ञान और ज्योतिष यानी हिंदू ज्योतिष की दो अलग विधाओं को साथ मिलाया गया है.
क्यों इसका नाम लाल किताब रखा गया
चूंकि ये किताबें लाल हार्ड-कवर में प्रकाशित हुईं, लिहाजा इसका नाम लाल किताब पड़ गया. लाल किताब के खंडों को भी लाल रंग की जिल्द दी गई. लाल किताब बहुत स्पष्ट शब्दों में आदेश देती है कि इस प्रणाली से संबंधित कोई भी पुस्तक बिना चमक वाले लाल रंग में बंधी होनी चाहिए. वैसे भी लाल रंग हिंदू धर्म पवित्र रंग माना गया है.
ज्योतिष के इतिहास में पहली बार लाल किताब ने त्वरित और किफायती उपायों के साथ कुंडली विश्लेषण की एक नई शैली पेश की, जिसमें उपायों के तौर पर ना तो पूजा की जाती थी और ना ही रत्न पहनने के उपाय होते थे.
क्या होते हैं इसके टोटके
लाल किताब के अनुयायियों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. ये विद्या मौजूदा समय में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बहुत लोकप्रिय हो गई है. यहां तक भारत में ज्योतिष के अलावा टैरो या अन्य ज्योतिष पद्धतियों में भी लाल किताब के उपायों का उपयोग किया जाने लगा है. नदी से गुजरते समय उसमें सिक्के फेंकना, गाय को घास खिलाना, कुत्ते को रोटी देना, पौधों में दूध देना और अविवाहित कन्याओं को भोजन कराना- ऐसे सारे उपाय लाल किताब की ही देन हैं.
मुगल काल में, विशेषकर अकबर और दारा शिकोह के शासनकाल में, भारतीय साहित्य, वेद, उपनिषद, दार्शनिक और ज्योतिष ग्रंथों पर बहुत शोध हुआ. लाल किताब गणित ज्योतिष की अपेक्षा फलित ज्योतिष को अधिक महत्व देती है.
इसके बारे में कई बातें कही जाती हैं
सरल टोटकों के कारण जल्द ही लाल किताब एक लोकप्रिय ज्योतिषीय पुस्तक बनकर उभरी जो आम लोगों के लिए बहुत कारगर साबित हुई. टोटका कोई भी व्यक्ति बिना किसी सहायता के आसानी से कर सकता है.
हालांकि, हमारे समाज में लाल किताब को लेकर कई अंधविश्वास भी हैं. कुछ इसे संदेह की नजर से देखते हैं. कुछ लोग कहते हैं कि लाल किताब आसमान से आवाज आने के बाद लिखी गई. एक अन्य समूह का कहना है कि अरब विद्वानों ने यह ज्योतिषीय पुस्तक लिखी है. मुगल काल के दौरान यह ज्योतिष विद्या भारत से अरब देशों तक पहुंची.
पहले खास इलाकों तक था इसका प्रभाव
पहले लाल किताब हिमाचल और उत्तरांचल के पहाड़ी इलाकों में फैली विद्या थी, इसके बाद पंजाब और अफगानिस्तान तक फैल गई. यह विद्या अपने पांव पसारती गई. कहा जाता है कि यह विद्या एक परिवार के पास संरक्षित है. आज भी उस परिवार के लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसे आगे बढ़ाते हैं. यह विद्या उस परिवार तक कैसे पहुंची, इसके पीछे भी रहस्यमय कहानी है.
क्या ये किताब केवल कोई जानकार ही समझ सकता है
अामतौर पर कुछ लोग बाजार से किताब खरीदकर उसमें लिखे टोटकों पर अमल शुरू कर देते हैं. ऐसा नहीं करना चाहिए. एक ज्योतिषी का कहना है कि लाल किताब में मौजूद सूत्रों का फलादेश आम ज्योतिष की तरह सहज और आसानी से समझा जाने वाला फलादेश नहीं है. सामान्य ज्योतिष से जुड़ी धारणाएं भी लाल किताब से मेल नहीं खातीं इसलिए इसके फलादेशों को समझना हर किसी के बस में नहीं है, इसके लिए एक सही जानकार की आवश्यकता होती है.
मेरठ में आध्यात्मिक और ज्योतिष क्षेत्र के जाने माने नाम महर्षि नरेश का कहना है कि लाल किताब मुस्लिमों की ईजाद की हुई किताब है. मेरा व्यक्तिगत मानना है कि इसे पढ़कर ज्योतिष नहीं करना चाहिए, क्योंकि तब आप ज्योतिष के मूल सिद्धांतों से भटक जाते हैं.
क्या है काली किताब
काली किताब आमतौर पर तंत्र-मंत्र और जादू –टोटके की किताब है. हालांकि इस किताब के समर्थक ये दावा करते हैं कि इसमें जीवन से जुड़ी तमाम परेशानियों के उपायों का दावा किया जाता है.
लाल और काली किताब के ऐप
दोनों ही किताबों के एप भी गूगल प्लेस्टोर पर उपलब्ध हैं. गूगल प्ले स्टोर पर काली किताब टाइप करते ही ढेर सारे ऐप सामने आ जाते हैं.
.
Tags: Astrology, Book, Predictions
FIRST PUBLISHED : December 6, 2023, 11:47 IST