Thursday, February 6, 2025
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क्या है 15 मिनट सिटी कॉन्‍सेप्‍ट, जिसे अपना चुका है पेरिस, क्या भारत अपनाएगा?


कोरोना माहामरी से जब पूरी दुनिया में अ​र्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा, तो इससे उबरने के उपायों के बारे में सोचा गया. अमेरिका और यूरोप के कई बड़े शहरों ने इसके लिए 15 मिनट सिटी कॉन्‍सेप्‍ट को अपनाने का सुझाव दिया. अमेरिका के बड़े शहरों में इस कॉन्‍सेप्‍ट पर बातचीत चल ही रही थी कि पेरिस ने इस मामले में सबसे बाजी मार ली. अपनी खूबसूरत गलियों और स्‍मारकों के लिए दुनियाभर में मशहूर शहर पेरिस ने 15 मिनट सिटी कॉन्‍सेप्‍ट को अपनाया. जानते हैं कि ये 15 मिनट सिटी कॉन्‍सेप्‍ट क्‍या है? कौन-कौन से देश इसमें शामिल होंगे? क्‍या भारत के बड़े शहर भी इस कॉन्‍सेप्‍ट को अपनाएंगे?

सबसे पहले समझते हैं कि 15 मिनट सिटी कॉन्‍सेप्‍ट क्‍या है? इस कॉन्‍सेप्‍ट के मुताबिक, बड़े शहरों में लोगों को घर से निकलने के बाद पैदल या साइकिल से 15 मिनट की दूरी तय करने पर स्कूल, अस्पताल, जनरल स्‍टोर, ग्रॉसरी शॉप्‍स और पार्क मिल जाने चाहिए. इस कॉन्‍सेप्‍ट का मकसद भीड़भाड़ वाले शहरों को रहने लायक बनाने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए यातायात को कम करना है. यही नहीं, विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस कॉन्‍सेप्‍ट को दुनियाभर के बड़े शहर अपनाने में सफल हो जाते हैं तो अब से कहीं ज्‍यादा स्थायी वातावरण बनाने में सफलता मिलेगी.

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क्‍यों पड़ी 15 मिनट सिटी कॉन्‍सेप्‍ट की दरकार
पेरिस का अपनाया गया 15 मिनट सिटी कॉन्‍सेप्‍ट शहरी विकास की विशेष योजना है. इसके तहत लोगों को पैदल या साइकिल से 15 मिनट के दायरे में ही जरूरत की सभी चीजें मिल जाएंगी. इससे उन्‍हें बाइक, कार या सार्वजनिक वाहनों का इस्‍तेमाल कम से कम करना होगा. इससे बड़े शहरों से होने वाले कार्बन उत्‍सर्जन में कमी आएगी और वातावरण साफ होगा. दरअसल, औद्योगिक क्रांति के दौर में शहरों में पैदल चलने और साइकिल चलाने वालों का विशेष ध्यान नहीं रखा गया. ज्‍यादातर बड़े देशों में बड़े शहरों की योजना बनाने वालों ने पूरी प्लानिंग कारों को ध्‍यान में रखकर की. इससे लोगों की कारों पर निर्भरता बढ़ गई. शहरों का भी विस्तार होता गया. इन समस्‍याओं के निदान के तौर पर 15 मिनट सिटी कॉन्‍सेप्‍ट को पेश किया गया है.

15 मिनट सिटी कॉन्‍सेप्‍ट के तहत शहरी विकास इस तरह करने की योजना है, जिसमें सभी को अपनी जरूरत की सभी चीजें 15 मिनट पैदल के दायरे में मिल जाएं.

कॉन्‍सेप्‍ट के दम पर दोबार चुनी गईं हिडाल्‍गो
पेरिस की मेयर ऐनी हिडाल्गो ने 15 मिनट सिटी कॉन्‍सेप्‍ट को 2020 में अपने चुनावी अभियान का हिस्सा बनाकर दुनियाभर में तहलका मचा दिया था. हिडाल्‍गो के अनुसार, शहरों के डिजाइन का भविष्य पैदल यात्री और साइकिल चालकों को ध्यान में रखकर बनाया जाना चाहिए. माना जाता है कि इसी कॉन्‍सेप्‍ट के दम पर वह दोबारा मेयर चुनी गईं. बता दें कि शहरी विकास योजनाओं में ऐसे कॉन्सेप्ट पहले भी थे, लेकिन अब ये कॉन्‍सेप्‍ट जलवायु परिवर्तन, ग्‍लोबल वार्मिंग और ग्लोबलाइजेशन के दौर में बदलाव का संकेत है. अब से पहले योजनाओं में चलने की क्षमता और सार्वजनिक सेवाओं की आसानी पर ध्‍यान दिया गया था. पेरिस में अपनाई गई योजना आसपास हरियाली को बढ़ाने पर जोर देती है.

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सामाजिक वातावरण में भी मिलेगा फायदा
आबादी बढ़ने के साथ बड़े शहरों में लोगों के बीच की दूरियां भी बढ़ती जा रही हैं. उम्‍मीद की जा रही है कि ये कॉन्‍सेप्‍ट बेहतर सामाजिक माहौल बनाने में भी मदद करेगा. इस कॉन्‍सेप्‍ट की मदद से शहरों में खुले स्थान ज्‍यादा होंगे, जहां लोग एकदूसरे से मिल पाएंगे. इंसान एक साथ रहते हुए अच्‍छा महसूस करते हैं. लिहाजा, ये कॉन्‍सेप्‍ट सामाजिक ताने-बाने को ज्‍यादा मजबूत करेगा. जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए 15 मिनट सिटी कॉन्‍सेप्‍ट के तहत तय योजनाएं दुनियाभर में होने वाले कार्बन उत्सर्जन में कमी ला सकती हैं. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इससे ज्‍यादा समावेशी समाज का निर्माण हो सकता है.

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पेरिस कैसे बन पाएगा 15 मिनट सिटी
पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए कार्बन उत्सर्जन को कम करने के नजरिये से कोशिश की जा रही है कि कारों और दूसरे वाहनों का इस्तेमाल कम से कम किया जा सके. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पेरिस की मेयर एन हिडाल्गो ने कहा है कि 2024 तक पेरिस की हर गली, हर सड़क पर अनिवार्य तौर पर साइकिल व पैदल चलने के लिए अलग लेन बना दी जाएगी. यही नहीं, शहर से 60,000 सड़कों पर बने पार्किेंग लॉट हटा दिए जाएंगे. उनकी जगह हरियाली या बच्चों के ​खेलने के लिए मैदान व पार्क बना दिए जाएंगे. बता दें कि पेरिस में केवल रविवार को कार चलाने पर पाबंदी जैसे कदम भी उठाए जा चुके हैं. योजना बताते हुए ये भी कहा गया था कि पेरिस में एक साइकल लेन करीब 50 किलोमीटर लंबी बनाई जाएगी.

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15 मिनट सिटी कॉन्‍सेप्‍ट में जोर दिया गया है कि बाजार, अस्‍पताल समेत तमाम जरूरी सुविधाएं पैदल या साइकिल से 15 मिनट के दायरे में हों.

इमारतें बनाई जाएंगी मल्‍टी यूटिलिटी
लोगों को हर जरूरी सुविधा 15 मिनट के दायरे में उपलब्‍ध कराने के लिए ज्‍यादातर इमारतों को मल्टी यूटिलिटी बनाने की योजना है. पेरिस इस कॉन्‍सेप्‍ट पर अमल करने वाला पहला शहर नहीं है. इससे पहले ऑस्ट्रेलिया का मेलबर्न खुद को 20 मिनट सिटी के तौर पर ढालने की योजना बना चुका है. इटली का मिलान भी 15 मिनट सिटी की योजना का पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर चुका है. दुनिया के कई देश इस कॉसेप्‍ट पर हामी भर चुके हैं.

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क्‍या भारत के बड़े शहर अपनाएंगे ये कॉन्‍सेप्‍ट
भारत के कई बड़े शहर भी इस कॉन्‍सेप्‍ट को अपनाने पर विचार कर रहे हैं. क्षेत्रीयकरण, विकास और लोचशील इस्तेमाल वाली इमारतों तथा स्थानों के इस कॉन्‍सेप्‍ट को अपनाने के लिए भारत के कई शहर सहमति दे चुके हैं. इनमें दिल्ली, जयपुर, चेन्‍नई, बेंगलुरु और कोलकाता शामिल हैं. ये शहर ऐसा इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे, जिससे सभी नागरिकों को 15 मिनट के दायरे में ही अपने जरूरत की हर सुविधा उपलब्‍ध हो सके.

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क्‍या हैं सी-40 शहर, कौन-कौन हैं शामिल
कॉन्‍सेप्‍ट पर सहमति जताने वाले दुनिया के 96 शहरों को सी-40 शहर कहा जा रहा है. इन शहरों में दुनिया की एक चौथाई अर्थव्यवस्था और 70 करोड़ आबादी बसती है. इन शहरों में प्रमुख तौर पर हॉन्‍ग कॉन्‍ग, लिस्बन, मेडेलिन, मॉन्ट्रियल, न्यू ऑर्लीन्स, रॉटेरडम, सिएटल, लॉस एंजिल्स और सिओल शामिल हैं. दुनिया के कई बड़े शहर इस समूह में हैं, जो रोजगार, व्यवसाय और सामाजिक गतिविधियों को लोगों के घरों के आसपास ही सुनिश्चित करने के कॉन्‍सेप्‍ट को अपनाने जा रहे हैं.

फिर भी लोग कर रहे हैं योजना का विरोध
कई बड़े फायदों के बाद भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो 15 मिनट सिटी कॉन्‍सेप्‍ट का विरोध कर रहे हैं. इनमें ऐसे लोग शामिल हैं, जो कोरोना महामारी के बाद वैक्‍सीन लेने इनकार कर रहे थे या मास्‍क लगाने के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे. कुछ लोगों का कहना है कि कार का इस्‍तेमाल सीमित करना लोगों की व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता पर सीधा हमला है. विरोध करने वालों का कहना है कि इस कॉन्‍सेप्‍ट के अमल में आने के बाद बड़ी आबादी अपने जीवन का 90 फीसदी हिस्सा 15 मिनट के दायरे में ही बिता देगी. ब्रिटेन के थिंक टैंक सेंटर फॉर सिटीज की विश्लेषक ऐलेना मैग्रिनी का कहना है कि बड़े शहरों के अंत की प्रवृत्ति हमारी रचनात्मकता को कम कर सकती है.

Tags: Climate Change, Global warming, Paris, World news in hindi



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