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अपने तीखे बयानों के चलते चर्चा में रहने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने यह इस्तीफा सपा विधायक और पूर्व मंत्री मनोज पांडेय के उस बयान के बाद दिया, जिसमें उन्होंने स्वामी को मानसिक रूप से विक्षिप्त तक कह दिया था। इससे पहले भी दोनों के बीच बयानबाजी चलती रही है। लेकिन ऐसा नहीं है कि यह अदावत दोनों की स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा में आने के बाद से ही हुई हो। दोनों नेताओं का प्रतिद्वंद्विता का एक लंबा इतिहास रहा है और फिर दोनों जब एक ही दल में पहुंच गए तो भी यह खत्म नहीं हुई बल्कि वर्चस्व की जंग में तब्दील हो गई।
स्वामी प्रसाद मौर्य सपा से नाराज होकर जाएंगे कहां? क्या हैं विकल्प
स्वामी प्रसाद मौर्य रायबरेली की डलमऊ सीट से दो बार विधायक चुने गए थे। 1996 और 2002 में वह यहां से विधायक बने और 2007 में भी लड़े थे, लेकिन कांग्रेस कैंडिडेट अजय प्रताप सिंह उर्फ मुन्ना भैया के आगे हार गए थे। फिर 2012 और 2017 में उन्होंने यहां से अपने बेटे उत्कृष्ट मौर्य को उतारा, लेकिन वह हार गए। एक बार बसपा से बेटे ने चुनाव लड़ा और फिर 2017 में भाजपा से उम्मीदवार बने। लेकिन दोनों बार विजय मनोज पांडेय को ही मिली। यही नहीं स्वामी प्रसाद मौर्य ने जब 2022 में सपा जॉइन की तो वह इसी सीट से बेटे के लिए टिकट चाह रहे थे।
अखिलेश यादव क्यों दोनों के बीच में फंसे?
अखिलेश ने स्वामी प्रसाद मौर्य को विधान परिषद जरूर बिना मांग किए भेज दिया, लेकिन बेटे को इस सीट से टिकट नहीं दिया। माना जाता है कि एक ही सीट पर दो नेताओं की इस दावेदारी ने खटास को और बढ़ा दिया। अखिलेश के आगे भी यह परेशानी है कि वह मनोज पांडेय की उपेक्षा नहीं कर सकते, जो लगातार जीत रहे हैं और पार्टी के बड़े ब्राह्मण चेहरे हैं। यदि वह पार्टी छोड़ भाजपा में भी गए तो उनके लिए राह कठिन नहीं होगी। लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य की परेशानी यह है कि वह भले ही प्रतापगढ़ के कुंडा के रहने वाले हैं, लेकिन उनकी सियासी जमीन ऊंचाहार में ही रही है।
मनोज पांडेय के मुकाबले दो बार हार चुका स्वामी प्रसाद का बेटा
यही वजह है कि मनोज पांडेय के लगातार तीन बार जीतने और उनके मुकाबले बेटे के दो बार हार जाने की टीस भी उनके मन में है। गौरतलब है कि 2022 के चुनाव से ठीक पहले स्वामी प्रसाद मौर्य ने पालाबदल करते हुए सपा जॉइन कर ली थी। आक्रामक तेवर दिखाते हुए उन्होंने 85 बनाम 15 का नारा भी दिया था। लेकिन उत्तर प्रदेश में सवर्ण आबादी भी कम नहीं है और नैरेटिव के लिहाज से अहम है। ऐसे में अखिलेश संभलकर ही चलना चाहते हैं और स्वामी की कीमत पर मनोज को खोना नहीं चाहते। वह दोनों को साधने की कोशिश में हैं, जो बहुत आसान नहीं होगा।