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ओपन स्कूल से 12वीं पास करने वाले छात्र-छात्राओं के लिए खुशखबरी है। अब ऐसे स्कूलों से पास हुए विद्यार्थी भी NEET एग्जाम दे सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) और राज्य शिक्षा बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त सभी ओपन स्कूल अब राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (NEET) के लिए राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद (NMC) द्वारा मान्यता प्राप्त होंगे। यानी मान्यता प्राप्त ओपन स्कूलों से 10+2 पास करने वाले छात्र भी ऐसी परीक्षा में बैठने के पात्र होंगे।
इससे पहले मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) ने 1997 के रेगुलेशन ऑन ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन के खंड 4(2)(ए) के प्रावधानों के अनुसार ऐसे उम्मीदवारों को NEET परीक्षा में बैठने से रोक दिया था। हालांकि, 2018 में दिल्ली हाई कोर्ट ने इस प्रावधान को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया था। मेडिकल काउंसिल के प्रावधानों को रद्द करते हुए तब जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस चंदर शेखर की बेंच ने कहा था कि मेडिकल काउंसिल ने इस धारणा को आगे बढ़ाया है कि जो छात्र/उम्मीदवार वित्तीय परेशानी और कठिनाइयों और सामाजिक कारणों से रेगूलर स्कूलों में नहीं जाते हैं, वे अन्य छात्रों की तुलना में हीन और कम योग्य हैं।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि इस तरह की धारणा को संवैधानिक प्रावधानों और लोक धारणा के खिलाफ होने की वजह से खारिज किया जाना चाहिए क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और पेशेवर डिग्री हासिल करने का अवसर देने के अधिकार का उल्लंघन है। MCI ने बाद में इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी,जिस पर हालिया फैसला आया है।
जब जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने मामले की सुनवाई शुरू की तो प्रतिवादी के वकील ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC)को अंडर ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड द्वारा लिखी गई 02.11.2023 की एक चिट्ठी की कॉपी बेंच को सौंपी, जिसमें बताया गया था कि सीबीएसई और राज्य शिक्षा बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त सभी ओपन स्कूलों को NEET एग्जाम में मान्यता देने पर विचार किया जाएगा।
बोर्ड ने कोर्ट को बताया कि उसी दिन एक पब्लिक नोटिस भी जारी किया गया था कि NMC ने अंडर ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन नियमावली 2023 बनाया है। इस नई नियामावली के खंड 11(b) में कहा गया है कि ओपन स्कूल से 10+2 पास करने वाले विद्यार्थी भी NEET एग्जाम देने के लिए योग्य माने जाएंगे, जो 1997 के नियमों में नहीं था। बोर्ड की इस पहल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज कर दी और बोर्ड के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी।