नई दिल्ली. चंद्रयान-3 की सफलता से भारत की दुनिया में खूब वाहवाही हुई. भारत चांद की सतह पर सुरक्षित लैंड करने वाला अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा देश बना था. मिशन की सफलता के बाद अब इसे लेकर एक अहम जानकारी सामने आ रही हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल में न्यूक्लियर एनर्जी का इस्तेमाल किया गया था . इसकी मदद से वो अभी भी चंद्रमा के चक्कर काट रह है.
परमाणु ऊर्जा की मदद से चंद्रयान-3 का प्रोपल्शन मॉड्यूल अगले कई सालों तक ऐसे ही चंद्रमा के चक्कर काटता रहेगा. 23 अगस्त को चंद्रयान चांद पर लैंड हुआ था. इससे करीब एक सप्ताह पहले यानी 17 अगस्त को प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रयान से अलग हुआ. शुरुआत में इसकी लाइफ 3 से 6 महीने बताई गई. अब कहा जा रहा है कि कि न्यूक्लियर एनर्जी की मदद से यह अगले दो से तीन सालों तक काम करता रहेगा. चांद की अहम जानकारियां पृथ्वी पर इसरो को मिलती रहेगी. भारत का मून मिशन जब लॉन्च हुआ था तब इस मॉड्यूल में 1,696 किलो इंधन था, जिसकी मदद से चंद्रयान ने पहले पृथ्वी के पांच चक्कर लगाए. फिर चांद के छह चक्कर लगाए.
क्या बोले परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष?
परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष अजीत कुमार मोहंती ने अखबार से बातचीत के दौरान कहा, ‘मुझे खुशी है कि भारत का परमाणु क्षेत्र इतने महत्वपूर्ण अंतरिक्ष मिशन का हिस्सा हो सकता है. इसरो के अधिकारियों ने कहा कि प्रोपल्शन मॉड्यूल दो रेडियोआइसोटोप हीटिंग इकाइयों (RHU) से लैस है, जो भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BHRC) द्वारा डिजाइन और विकसित एक वाट का उपकरण है. आरएचयू का काम इस अंतरिक्ष यान को उनके सही तापमान पर बनाए रखना है.
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लैंडर-रोवर में क्यों इस्तेमाल नहीं हुई परमाणु ऊर्जा?
चंद्रयान-3 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर पी वीरमुथुवेल ने अखबार से कहा कि इसरो जल्द ही भविष्य के रोवर में उपकरणों के रखरखाव के लिए परमाणु संसाधनों का उपयोग कर सकता है. चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान पर RHU नहीं लगाया जा सकता था क्योंकि इससे उनका भार बढ़ जाता. इसका प्रयोग प्रोपल्शन मॉड्यल में एक एक्सपेरिमेंट के तौर पर किया गया. अधिकारी ने कहा, ‘ये इस वक्त प्रोपल्शन मॉड्यूल में बिना किसी गलती के काम कर रहा है. यह इसरो और BARC की पहली बड़ी संयुक्त परियोजना है.”
नासा के इन मिशन में न्यूक्लियर एनर्जी का इस्तेमाल
भले ही भारत ने पहली बार अपने स्पेस मिशन में परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल किया हो लेकिन नासा ऐसा पहले से कर रह है. जिन अंतरिक्षयानों में रेडियोआइसोटोप हीटर इकाइयों का उपयोग किया गया है उनमें जूपिटर ग्रह के लिए नासा के गैलीलियो अंतरिक्षयान, सैटर्न ग्रह के लिए कैसिनी और वॉयेजर 1 और 3 शामिल हैं.
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FIRST PUBLISHED : October 31, 2023, 22:33 IST