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लंबे समय से BRICS संगठन ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के लिए वैश्विक मंच रहा है। इसके जरिए दुनिया की ये उभरती और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं अपने हितों को साझा करती हैं। लेकिन इसे लेकर भी चीन की मंशा बीते कुछ समय से ठीक नहीं लग रही है। इस संगठन का चीन विस्तार चाहता है ताकि वह अपने प्रभाव का इसके जरिए इस्तेमाल कर सके। अगले महीने जोहानिसबर्ग में इसकी समिट होनी है और उससे पहले भारत और ब्राजील ने विस्तार की इस कोशिश का विरोध किया है। चीन की इच्छा है कि इसमें इंडोनेशिया और सऊदी अरब को भी शामिल कर लिया जाए। वह कई बार इसके लिए लॉबिंग कर चुका है।
करीब एक दर्जन देश ऐसे हैं, जो इस संगठन का हिस्सा बनना चाहते हैं। चीन की असल में मंशा यह है कि ब्रिक्स का ऐसा विस्तार किया जाए कि वह अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के मुकाबले मजबूत दिखाई दे। ब्राजील इस विस्तार के खिलाफ है। वहीं भारत ने कहा है कि ब्रिक्स में एंट्री को लेकर कुछ नियम बनने चाहिए ताकि औपचारिक विस्तार से पहले ऐसा कुछ ना हो सके। भारत की सलाह नाटो जैसे नियम की है कि सभी सदस्यों की मंजूरी के बाद ही किसी नए देश को एंट्री दी जाए। फिलहाल 22 से 24 अगस्त तक ब्रिक्स की मीटिंग है, जिसमें नए सदस्य की एंट्री को लेकर चर्चा होगी।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक दो सदस्यों ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका चाहता है कि सदस्यता के अलग-अलग पैमाने तय किए जाएं। हालांकि वह विस्तार के खिलाफ नहीं है। वहीं भारत और ब्राजील का कहना है कि यदि किसी अन्य देश को लाना ही है तो पर्यवेक्षक के तौर पर उन्हें मौका दिया जाए। इस बारे में पूछे जाने पर चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि बीते साल ब्रिक्स लीडर्स ने इस पर बात की थी। सभी सदस्यों की सहमति के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा। ब्रिक्स बीते कुछ सालों में दुनिया का एक मजबूत संगठन बनकर उभरा है। इसमें एक कॉमन करेंसी चलाने को लेकर बात हुई है और अपना एक बैंक भी स्थापित किया गया है।
क्यों इतना ताकतवर है ब्रिक्स, बता देंगे ये आंकड़े
ब्रिक्स की यह मीटिंग ऐसे वक्त में हो रही है, जब चीन और अमेरिका के बीच तनाव चरम पर है। इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका की ओर से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहा गया है कि वह समिट में हिस्सा लेने ना आएं। इसकी वजह यह है कि उन्हें इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट द्वारा अरेस्ट भी किया जा सकता है। इसके चलते पुतिन वर्चुअल मोड से ही हिस्सा लेंगे। ब्रिक्स की ताकत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि दुनिया की 42 फीसदी आबादी इन देशों में ही रहती है। इसके अलावा दुनिया की जीडीपी में 23 फीसदी हिस्सेदारी है।