
1970 के दशक में हरियाणा के जाट नेता चौधरी देवीलाल समाजवादी नेताओं में सबसे कद्दावर माने जाते थे। उस वक्त शरद यादव पहली बार सांसद बने थे। जबलपुर सीट पर 1974 के उपचुनाव में शरद यादव ने जेल में रहते हुए ही यह चुनाव जीता था। उस वक्त वह जेपी के करीबी थे और उनके ही आदेश पर चुनावी मैदान में उतरे थे। डॉ. रामनोहर लोहिया के समाजवादी विचारों के वाहक रहे शरद यादव को देवीलाल का सानिध्य हासिल था।
उसी दौरान शरद यादव ने बिहार के दो युवा नेताओं (लालू यादव और नीतीश कुमार) की देवीलाल से मुलाकात कराई थी। बाद में देवीलाल ने शरद यादव से मजाकिया अंदाज में पूछा था कि तुम्हारे चंगू-मंगू कहां गए? देवीलाल ने चंगू-मंगू लालू और नीतीश को कहा था। बाद में इन्हीं दोनों चंगू-मंगू ने बिहार की कमान संभाली जो आज तक जारी है।
शरद यादव ने कर दिए था एड़ी-चोटी एक:
शरद यादव ने उन्हीं देवीलाल की मदद और निर्देश पर 1990 में लालू यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दिया था। हुआ यूं था कि 1990 के बिहार विधानसभा चुनाव में जनता दल को 324 में से 132 सीटें आई थीं। सीपीआई ने जनता दल को समर्थन का ऐलान कर दिया था। बहुमत का आंकड़ा पार कर चुका था लेकिन सीएम कौन होगा इस पर पेंच फंस गया था।
केंद्र में उस वक्त विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी। लालू यादव को आभास था कि वह विपक्ष के नेता रहे हैं, इसलिए वीपी सिंह उनके नाम पर मुहर लगा देंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वीपी सिंह ने रामसुंदर दास को सीएम बनाने के लिए तानाबाना बुन दिया। तर्क दिया गया कि लालू विधानसभा के सदस्य नहीं हैं, इसलिए किसी और को यह मौका दिया जाए। वीपी सिंह ने चौधरी अजित सिंह को पर्यवेक्षक बनाकर पटना भेजा। दास की मजबूत किलेबंदी के लिए जॉर्ज फर्नांडिस और सुरेंद्र मोहन को भी पटना भेजा गया था।
शरद और मुलायम सिंह यादव ने की थी मोर्चाबंदी:
उधर, लालू परेशान हो चले थे। उन्होंने दिल्ली में शरद यादव और देवीलाल से संपर्क साधा। देवीलाल उस वक्त उप प्रधानमंत्री थे। लालू ने उनके ही इशारे पर विधायक दल का नेता का चुनाव कराने की मांग कर दी। देवीलाल ने तब लालू यादव की मदद के लिए दो अन्य यादव नेताओं (शरद यादव और मुलायम सिंह यादव) को पटना भेजा था। लालू ने तब चंद्रशेखर से भी मदद मांग ली थी। हालांकि, लालू तब तक चंद्रशेखर के विरोधी रहे थे।
चंद्रशेखर और वीपी सिंह में बनती नहीं थी, इसलिए चंद्रशेखर ने लालू के विरोध को नजरअंदाज करते हुए उन्हें समर्थन का भरोसा दिलाया। शरद यादव और मुलायम सिंह यादव सभी पिछड़े विधायकों को लालू यादव के पक्ष में लामबंद कर रहे थे।
लालू ऐसे चुने गए विधायक दल के नेता:
जब विधायक दल की बैठक होने लगी तो लालू यादव और रामसुंदर दास के साथ-साथ तीसरा दावेदार भी मैदान में आ खड़ा हुआ। वह शख्स थे रघुनाथ झा, जिन्हें चंद्रशेखर का करीबी माना जाता था और उन्हीं के इशारे पर मैदान में कूदे थे। जब विधायकों की वोटिंग हुई तो अगड़ी जाति के विधायकों का वोट रघुनाथ झा ने काट लिया था, इससे लालू यादव मामूली अंतर से विधायक दल के नेता चुन लिए गए। तिकड़ी यादवों (लालू-मुलायम-शरद) की इस चालाकी से अजित सिंह तिलमिला उठे थे।
अजित सिंह ने तब के बिहार के गवर्नर मोहम्मद यूनुस सलीम, जो लोकदल से जुड़े थे, को दिल्ली तलब कर लिया, ताकि लालू को शपथ नहीं दिलाया जा सके। लालू ने तुरंत इसकी शिकायत उप प्रधानमंत्री देवीलाल से की। देवीलाल ने फौरान गवर्नर को पटना लौटने को कहा और यूनुस सलीम को आनन-फानन में पटना लौटना पड़ा।
लालू से जुदा हुए शरद यादव:
इसके बाद 10 मार्च 1990 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में लालू यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। शरद यादव और लालू यादव ने 1990 से 1997 तक बिहार पर राज किया लेकिन 1997 में दोनों की राहें तब जुदा हो गईं, जब जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी के लिए दोनों के बीच तकरार हो गई। चारा घोटाले में फंसे लालू यादव ने तब 1997 में अपनी अलग पार्टी (राष्ट्रीय जनता दल) बना ली थी और पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाकर जेल चले गए थे।
नीतीश को भी बनाया मुख्यमंत्री:
दो साल बाद शरद यादव ने जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार की समता पार्टी में जनता दल का विलय कर दिया और नई पार्टी का नाम जनता दल यूनाइटेड रखा गया। 2005 के चुनावों में जनता दल यू ने बीजेपी के साथ मिलकर राजद को हरा दिया और नीतीश कुमार राज्य के मुख्यमंत्री बने।