Home National जब नौतपा में नहीं पड़ती भीषण गर्मी, मौसम होता सुहाना, तो क्यों मानते हैं अशुभ

जब नौतपा में नहीं पड़ती भीषण गर्मी, मौसम होता सुहाना, तो क्यों मानते हैं अशुभ

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जब नौतपा में नहीं पड़ती भीषण गर्मी, मौसम होता सुहाना, तो क्यों मानते हैं अशुभ

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वो 9 दिन जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है तो उस दौरान सबसे भीषण गर्मी पड़ती है. तब सूर्य की किरणें पृथ्वी पर सीधे और सबसे तेज होती हैं. इस बार नौतपा का समय 25-26 मई से 2-3 जून तक था. लेकिन इस दौरान भीषण गर्मी की छोड़िए साधारण गर्मी भी नहीं पड़ी. मौसम सुहाना हो गया. कई बार आंधी आई, कई बार बारिश हुई. तापमान गिर गया. कुल मिलाकर मौसम सुहाना हो गया. भारत में इस स्थिति को अपशकुन मानते हैं. ये मानते हैं कि जब जब ऐसा हुआ है तब अकाल पड़ा है. बारिश अच्छी नहीं हुई है. हालांकि मौसम विज्ञान इससे अलग बात कहता है. उसका कहना है कि बेशक इस बार नौतपे में भीषण गर्मी नहीं पड़ी हो लेकिन मानसून अच्छा होगा.

लंबे समय से ग्रामीण भारत नौतपे में भीषण गर्मी की जगह सुहाने और बरसाती मौसम को शुभ नहीं मानता. किसान और बुज़ुर्ग कहते हैं,

“नौतपे में जितनी तपन, उतनी बरखा सुखद. नौतपा बिन गर्मी, सावन दुखद.”

यानि नौतपा जितना तेज़ तपेगा, उतनी अच्छी बरसात होगी. अगर नौतपा के दिन ठंडे या बरसाती रहे, तो माना जाता है कि बरसात अनिश्चित होगी, फसलें भी कमजोर पड़ेंगी. अकाल जैसी स्थिति भी पैदा हो सकती है.

गांव में किसानों के बीच नौतपा को लेकर कई तरह की कहावतें कही जाती रही हैं. उन सबका मतलब यही है कि नौतपा जरूरी है यानि धरती के नौ दिनों तक प्रचंड तौर पर तपने से मानसून बेहतर होगा. (News18 AI)

एक और पुरानी कहावत है,

“नौतपा में घाम, किसान के नाम. नौतपा में छांव, किसान के काम तमाम.”

मतलब अगर नौतपा के दिन अगर तेज धूप रहे, तो किसान के लिए अच्छी खबर है लेकिन अगर छांव (ठंडा मौसम या बादल) रहे, तो खेती-बाड़ी मुश्किल में पड़ सकती है. एक और ऐसी ही कहावत का जिक्र कर देते हैं, जो गांव में अब भी यूपी से लेकर बिहार तक खूब कही जाती है,

“जैसा नौतपा, वैसा बरसात. नौतपा ठंडा, किसान के लिए अनहोनी बात.” यानि नौतपा में अगर आसमान बादली और मौसम ठंडा रहे, तो सावन-भादों की बारिश भी अनिश्चित मानी जाती है. यानि आप समझ सकते हैं कि नौतपा का कितना महत्व है और ग्रामीण भारत में जिसका खेती किसानी से चोली दामन का रिश्ता रहता है, उसके लिए नौतपा का महत्व सबसे खास होता आया है.

क्यों नौतपा के नहीं होने से उठ रहे सवाल

इस बार ग्रामीण भारत खासतौर पर सवाल उठ रहे हैं कि इस बार नौतपा में जिस तरह से सिरे से भीषण गर्मी गायब हो गई, उसकी जगह सुहाने मौसम को सबने महसूस किया, उससे क्या खराब मानसून आएगा, खेतों को बारिश का पानी कम मिलेगा जिसे अन्न पैदावार पर असर पड़ेगा. मान्यता है कि इन 9 दिनों की भीषण गर्मी मानसून की गुणवत्ता और वर्षा का पूर्व संकेत होती है. जितनी प्रचंड गर्मी नौतपा में पड़ती है, उतनी ही अच्छी बारिश सावन-भादों में होने की उम्मीद की जाती है.

इस बार नौतपा के दौरान मौसम बदला हुआ था. हवाएं सुहानी चलीं तो कई जगहों पर बारिश हुई और तापमान 3-4 डिग्री तक गिर गया. ( News18 AI)

कई बुज़ुर्ग किसानों का कहना है कि जब-जब नौतपा में मौसम ठंडा रहा है, उस साल या तो मानसून में देर हुई है, या फिर बारिश बिखरी और अनियमित पड़ी है. उनका तर्क है कि नौतपा की गर्मी ही धरती को मानसूनी बादलों के लिए तैयार करती है. तपती गर्मी से जमीन तपती है. समुद्र से वाष्प उठकर मानसूनी बादलों को खींचती है. अगर इस दौरान तपन न हो, तो मानसून का वेग कमज़ोर पड़ सकता है.

इस बार कैसा रहा नौतपा का हाल?

इस बार वर्ष 2025 के नौतपा में मौसम ने पारंपरिक मान्यताओं को झुठला दिया. उत्तर भारत, मध्य भारत और कई राज्यों में जहां तपती लू और 45 डिग्री तक तापमान दर्ज होना चाहिए था, वहां बादल, हल्की बारिश और सुहानी हवाओं ने दस्तक दी. इस बार नौतपा में अधिकांश उत्तर भारत, मध्य भारत और पश्चिमी भारत में औसत तापमान सामान्य से 3-5 डिग्री नीचे दर्ज किया गया.
– दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश में कई दिन तापमान 35-38 डिग्री रहा, जबकि सामान्यत: ये 43-46 डिग्री तक पहुंचता है.
– मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भी तेज लू के बजाय बादलों और ठंडी हवाओं ने मौसम को सुहावना बनाए रखा.
– दक्षिण भारत में प्री-मानसूनी बारिश तेज रही. केरल और कर्नाटक के तटीय इलाकों में मानसून तय समय से 7 दिन पहले ही दाखिल हो गया.
– मौसम विभाग (IMD) के आंकड़ों के मुताबिक नौतपा के 9 दिनों में देशभर में सामान्य से 29% अधिक वर्षा दर्ज की गई.

मौसम विभाग का अनुमान है कि इस बार देश में बेहतर बारिश होगी और मानसून काफी अच्छा रहेगा ( News18 AI)

क्या संकेत हैं, मौसम विज्ञानी क्या कहते हैं

अगर परंपरागत मान्यता के अनुसार देखें, तो इस स्थिति को शुभ संकेत नहीं माना जाता. गांव में बुजुर्गों का कहना है कि इससे मानसून के कमजोर या अनियमित होने का खतरा रहता है.लेकिन इस बार मौसम वैज्ञानिकों की राय इससे अलग है.

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने इस बार जून-सितंबर मानसून के लिए सामान्य से बेहतर बारिश का अनुमान जताया है. IMD के मुताबिक, 2025 में देशभर में 106% बारिश की संभावना है, जो सामान्य से बेहतर मानी जाती है.

मानसून की क्या स्थिति है

दक्षिण-पश्चिम मानसून ने केरल में समय से पहले दस्तक दी और इसके मध्य भारत और उत्तर भारत में भी समय पर या थोड़ा पहले पहुंचने के संकेत हैं. इस बार मानसून के अनुकूल रहने के पीछे पैसिफिक ओशन में ला नीना की वापसी और हिंद महासागर डिपोल का सकारात्मक प्रभाव बताया जा रहा है.

IMD के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मृत्युंजय महापात्र का कहना है,

“नौतपा के दिनों में बारिश और बादल आना अब जरूरी नहीं कि मानसून को कमजोर बनाए. पिछले कुछ वर्षों में प्री-मानसूनी गतिविधियां तेज हुई हैं. इस बार भी मानसून सक्रिय रहेगा. सामान्य से बेहतर बारिश की उम्मीद है.”

तो क्या परंपरागत मान्यताओं का मतलब नहीं

असल में ग्रामीण जन-मानस और मौसम विज्ञान दोनों अपने-अपने तरीके से मौसम का आंकलन करते आए हैं. जहां बुजुर्ग किसानों के अनुभव सैकड़ों वर्षों के स्थानीय मौसम व्यवहार पर आधारित हैं, वहीं मौसम विज्ञानी अब सैटेलाइट, समुद्री तापमान, वाष्प स्तर, एल-नीनो और ला-नीना जैसे कारकों से सटीक अनुमान लगाने में सक्षम हो गए हैं.

जलवायु बदलाव का भी असर

पिछले कुछ वर्षों में क्लाइमेट चेंज के असर से भी मौसम के पुराने पैटर्न बदल रहे हैं. इसलिए अब सिर्फ नौतपा की तपन पर मानसून की सफलता निर्भर नहीं है.

किसानों के लिए क्या सलाह?

विशेषज्ञों का कहना है कि किसान अब केवल परंपरागत मान्यताओं पर निर्भर न रहें. मौसम विभाग की साप्ताहिक और मासिक रिपोर्ट्स और अपने इलाके के कृषि विज्ञान केंद्र की सलाह जरूर लें. जिन इलाकों में मानसून जल्दी पहुंचने के संकेत हैं, वहां खरीफ फसलों की बुआई पहले की जा सकती है. जिन क्षेत्रों में मानसून की अनिश्चितता है, वहां वैकल्पिक फसलों (मोटे अनाज, दालें) की योजना बनाई जाए.

नौतपा का एक फायदा ये भी होता है

वैसे वैज्ञानिक दृष्टि से भी नौतपा की गर्मी खेतों से कीट-पतंगों और जहरीले जीवों का खात्मा करती है, जिससे फसलों को फायदा मिलता है. अगर गर्मी कम रही या बारिश हो गई, तो ये कीट-पतंगे नष्ट नहीं होंगे और फसलों को नुकसान हो सकता है.

तो निष्कर्ष ये है कि बेशक इस बार का नौतपा मौसम के लिहाज से जरूर सुहाना रहा, लेकिन मौसम विज्ञानी अच्छे मानसून की गारंटी दे रहे हैं. परंपरागत मान्यताओं के अनुसार इसकी आशंका जताई जाती है, मगर अब बदलते मौसम और वैज्ञानिक तकनीक के कारण मानसून का चेहरा बदल रहा है.

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