
साल 2022 जाने को है, 2023 अपनी आमद की जल्द घोषणा करने वाला है. जश्न की तैयारियां चल रही हैं. ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि साल दिसंबर में ही क्यों विदा लेता है और आमद जनवरी में ही क्यों देता है? साल में बारह महीने क्यों होते हैं? तीन सौ पैंसठ दिन कहां से आए? ये फरवरी का क्या लोचा है? कभी 28 दिन की, तो कभी 29 दिन की. सबसे बड़ी बात ये कैलेंडर आया कहां से? एक बात और देश में कितने नववर्ष मनाए जाते हैं?
हिंदू नव वर्ष कब से शुरू हुआ? हिंदू नव वर्ष की शुरूआत किस माह से होती है? पंजाबी अपने नए साल की शुरुआत वैशाखी से क्यों करते हैं? हिजरी सन् क्या होता है? इस्लामी कैलेंडर की शुरूआत किस महीने से होती है? चैतीचांद और गुड़ी पड़वा का नए साल से क्या नाता है? ऐसे बहुत सारे दिलचस्प सवालों के जवाब तलाशने के लिए दिसंबर के आखिरी दिन बहुत मुफीद हैं. जाते साल में सालों का हिसाब लगाना तो बनता है. तो चलिए शुरू से शुरूआत करते हैं.
ना, ये नहीं हो सकता, यहां शुरू से शुरूआत करना जरा मुश्किल है क्योंकि जिस ग्रेगोरियन कैलेंडर के आधार पर दुनिया इस समय काल गणना कर रही है, वो खुद ही बीच से शुरू हुआ है. बीच से इसलिए क्योंकि यह कैलेंडर पूर्व में बने कैलेंडर का संशोधित रूप जो है. कैलेंडर को तर्कसंगत बनाने के लिए समय-समय पर अनेक प्रयोग हुए हैं. अनेक कमियां सुधारी गईं. तब जाकर कैलेंडर्स की ये रेल समय के एक सर्वमान्य प्लेटफार्म पर पहुंच पाई है.
ग्रेगोरियन कैलेंडर जिस कैलेंडर को सुधार कर बनाया गया है उसे जूलियन कैलेंडर के नाम से जाना जाता है. इस कैलेंडर को जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45 वें साल में बनाया था. बेशक जूलियन कैलेंडर में अनेक त्रुटियां थीं जिन्हें सुधारकर ग्रेगोरियन कैलेंडर बनाया गया है. लेकिन ग्रेगोरियन की नींव तो जूलियन पर ही रखी गई है.
बहरहाल, इस बहस में न पड़ते हुए जानते हैं कि ग्रेगोरियन कैलेंडर अस्तित्व में कब और कैसे आया? 1582 में पोप ग्रेगोरी 13वें ने इसकी शुरूआत की. पोप के नाम पर ही इस कैलेंडर को ग्रेगोरियन कैलेंडर के नाम से पुकारा गया. इतना तो हम सभी जानते हैं कि इस कैलेंडर में 365 दिन होते हैं. फरवरी माह में यूं तो 28 दिन होते हैं. लेकिन हर चौथे साल फरवरी 29 दिन का हो जाता है. इस साल को लीप ईयर के नाम से संबोधित किया जाता है. सवाल ये है कि 365 दिन का साल हर चौथे साल 366 का क्यों हो जाता है और साल में 365 दिन ही क्यों होते हैं?
अब ये भी हम सभी को पता है कि पृथ्वी सूरज का चक्कर लगाती है और उसकी यह परिक्रमा मोटा मोटा केलक्यूलेट करें तो 365 दिन और छह घंटे में पूरी होती है. जूलियन कैलेंडर छह घंटे केलक्यूलेट करता था. जबकि वास्तव में लगने वाला समय 365 दिन 5 घंटा 48 मिनिट और 46 सेकंड था. ग्रेगोरियन कैलेंडर में इस गणना को सुधारा गया. हम तकनीकी बारीकी में न जाते हुए आसानी के लिए इसे छह अतिरिक्त घंटे ही मानेंगे. इस तरह साल में 365 दिन और चार साल के बचे हुए छह-छह घंटे मिलकर चौबीस घंटे यानी एक दिन होता है. यही एक दिन हर चौथे साल फरवरी माह में जुड़कर उसे 29 दिन का बनाता है और साल को 366 दिन का. इसी को लीप ईयर यानी अधिवर्ष कहते हैं.
लीप ईयर कौन सा है ये जानने के लिए इसीलिए उस सन/वर्ष में चार का भाग दिया जाता है, अगर भाग पूरा-पूरा चला जाए है तो वह लीप ईयर होता है. सूर्य की परिक्रमा पर आधारित इस कैलेंडर में हर चार सौ सालों में 365 दिन वाले 303 सामान्य वर्ष और 366 दिन वाले 97 लीप ईयर होते हैं.
अब सवाल ये है कि दिन कहां से आए? इसमें भी कुछ नया नहीं है कि दिन और रात मिलकर जो चौबीस घंटे होते हैं उसे ही हम एक दिन के रूप में जानते हैं. चौबीस घंटे भी इसलिए क्योंकि घुमक्कड़ पृथ्वी सूरज का चक्कर तो लगाती ही है, साथ-साथ अपनी धुरी पर भी घूमती रहती है. धुरी पर घूमने के चक्कर में पृथ्वी के गोले का कुछ हिस्सा सूरज के सामने आता है तो दिन कहलाता है और जो हिस्सा सूरज के दूसरी तरफ यानि अंधेरे में रहता है वहां रात होती है. धुरी पर घूमने में धरती के इस गोले को चौबीस घंटे लगते हैं.
अब इसमें कोई नई बात तो है नहीं पर यह बताने का परपज इतना भर है कि क्यों ग्रेगोरियन कैलेंडर दुनिया भर में सबसे ज्यादा प्रचलन में है, क्योंकि यह बहुत हद तर्कसंगत है, साइंटिफिक एप्रोच लिए हुए है. इसका ये मतलब नहीं कि बाकी कैलेंडर या पंचांग सही नहीं हैं. वो भी अपनी जगह सही हैं और वो भी गणितीय गणना के साइंटिफिक आधार पर बनाए गए हैं.
भारतीय राष्ट्रीय पंचांग भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर का दर्जा प्राप्त कैलेंडर है. इसमें भी बारह माह होते हैं. शक संवत पर आधारित यह कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ-साथ 22 मार्च 1957 से अपनाया गया. इसका पहला महीना चैत्र कहलाता है. राष्ट्रीय कैलेंडर की तिथियां ग्रेगोरियन कैलेंडर की तिथियों से स्थाई रूप से मिलती-जुलती हैं. चंद्रमा की कला यानी उसके घटने-बढ़ने के अनुसार माह में दिनों की संख्या निर्धारित होती है. अधिवर्ष यानि लीप ईयर में चैत्र में 31 दिन होते हैं. वर्ष की पहली छमाही के सभी महीने 31 दिन के होते हैं. फाल्गुन साल का अंतिम माह होता है. ‘पंचांग’ एक संस्कृत शब्द है जो पांच अंगों का द्योतक है – चंद्र दिन, चंद्र मास, अर्द्ध दिन, सूर्य और चंद्रमा के कोण तथा सौर दिन.
महाराष्ट्र (मुख्य रूप से) में नव वर्ष के पहले दिन गुड़ी पड़वा मनाया जाता है और साल के नए दिन का स्वागत तिल-गुड़ से किया जाता है. चैत्र शुक्ल द्वितीया से सिंधी नव वर्ष की शुरूआत होती है. इसे चैटीचंड (चैती चांद) के नाम से जाना जाता है. सिंधी में चैत्र को चैट और चांद को चंड कहा जाता है. पंजाबी नया वर्ष वैशाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है जो अप्रैल माह में आता है. इस दिन 10वें और अंतिम गुरू गोविंद सिंह जी ने 13 अप्रैल 1699 को खालसा पंथ की स्थापना की थी.
इस्लामिक कैलेंडर के नए साल की शुरुआत मुहर्रम से होती है, इसे हिजरी के नाम से जाना जाता है. यह चांद पर आधारित कैलेंडर है जिसका मुस्लिम देशों में प्रयोग होता है. साथ ही पूरे विश्व के मुस्लिम धार्मिक पर्वों को मानने का सही समय जानने के लिए इसका प्रयोग करते हैं. इसमें बारह महीने और 354 या 355 दिन होते हैं. यह ग्रेगोरियन कैलेंडर से 11 दिन छोटा है इसीलिए मुस्लिम त्यौहार की तिथियां हर साल पीछे होती रहती हैं. इसी के चलते ईद और रमजान सहित तमाम त्यौहार सर्दी, गर्मी और बरसात तीनों मौसम में पड़ते हैं. इसे हिजरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका पहला वर्ष वह साल है जिसमें हज़रत मुहम्मद स.अ. की मक्का शहर से मदीना की ओर हिज़रत (प्रवास) हुई थी.
पारसी धर्म का नया साल सामान्यत: 19 अगस्त को मनाया जाता है यह नवरोज उत्सव कहलाता है.
बताते चलें पोप ग्रेगोरी ने जूलियस सीजर द्वारा बनाए गए जूलियन कैलेंडर को जब 1582 में संशोधित किया था, तब उस वर्ष को 10 दिन छोटा कर दिया गया था. उस साल 5 अक्टूबर के बाद सीधी 15 अक्टूबर की तारीख कैलेंडर में आई थी. ग्रेगोरियन कैलेंडर को पोप ग्रेगोरी ने बनाया जरूर था लेकिन इसमें संत बीड और वैज्ञानिक रोजर बैकन का महत्वपूर्ण योगदान था. एक बात और, पूरी दुनिया ने इस ग्रेगोरियन कैलेंडर को एक साथ नहीं अपनाया था.
शकील खानफिल्म और कला समीक्षक
फिल्म और कला समीक्षक तथा स्वतंत्र पत्रकार हैं. लेखक और निर्देशक हैं. एक फीचर फिल्म लिखी है. एक सीरियल सहित अनेक डाक्युमेंट्री और टेलीफिल्म्स लिखी और निर्देशित की हैं.