राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के अध्यक्ष शरद पवार बुधवार (28 दिसंबर) को करीब दो दशक बाद पहली बार पुणे स्थित कांग्रेस पार्टी के दफ्तर पहुंचे और पार्टी के 138वें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित किया। इस दौरान पवार ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा,”कांग्रेस मुक्त भारत संभव नहीं है क्योंकि कोई भी कांग्रेस की विचारधारा और योगदान को नजरअंदाज नहीं कर सकता है।”
पवार ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा,”यह जगह कई ऐतिहासिक पलों की गवाह रही है। कांग्रेस के लगभग सभी दिग्गजों महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने इस जगह का दौरा किया है। इससे पहले पुणे का कांग्रेस भवन परिसर ही राज्य में कांग्रेस का मुख्य कार्यालय था।”
उन्होंने कहा,”कुछ लोग कहते हैं कि हम कांग्रेस मुक्त भारत बनाएंगे, लेकिन भारत कांग्रेस मुक्त बनाना संभव नहीं है। वास्तव में, अगर हम भारत को आगे ले जाना चाहते हैं तो हमें कांग्रेस को आगे बढ़ाना होगा, कोई भी कांग्रेस की विचारधारा को नजरअंदाज नहीं कर सकता है। हम कांग्रेस के योगदान और इतिहास को नहीं भूला सकते।”
शरद पवार वही शख्स हैं, जिन्होंने 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़ दी थी और तारिक अनवर एवं पीए संगमा के साथ मिलकर अपनी अलग पार्टी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) बना ली थी। हालांकि, उसी साल उन्होंने कांग्रेस की सहायता से महाराष्ट्र में अपनी सरकार बना ली थी।
राजनीति के अंगद:
पवार राजनीति के मझे हुए खिलाड़ी हैं। पक्ष और विपक्ष दोनों धड़ों में उनकी पैठ बराबर की रही है। राजनीति में उनके व्यवहारिक आचरण की वजह से ही मोदी सरकार ने उन्हें 2017 में देश के दूसरे सर्वोच्च नागिरक अलंकरण पद्मविभूषण से सम्मानित किया था। वह तीन बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 2004 से 2014 तक वह केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार में कृषि मंत्री और रक्षा मंत्री की भूमिका निभा चुके हैं। उन्हें राजनीति का अंगद भी कहा जाता है।
कांग्रेस से दो बार कर चुके बगावत:
यशवंत राव चव्हाण के संरक्षण में 27 साल की उम्र में ही विधायक बनने वाले शरद पवार ने 1978 में इंदिरा गांधी के खिलाफ बगावत कर दी थी और महाराष्ट्र में जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। हालांकि, राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री बने तो शरद पवार फिर से कांग्रेसी हो गए। दूसरी बार उन्होंने 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के सवाल पर कांग्रेस छोड़ दी थी और एनसीपी बना ली थी।
प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नजर:
शरद पवार लंबे समय से पीएम बनने का सपना संजोए रहे हैं। 1991 में जब राजीव गांधी की हत्या हुई, उस वक्त देश में लोकसभा चुनाव हो रहे थे। गांधी की हत्या के बाद तीन नेताओं का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए उभरा, उनमें एक नाम शरद पवार भी था लेकिन बाजी पीवी नरसिम्हा राव मार ले गए।
अब जब मौजूदा दौर में पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई बड़ा चेहरा नहीं है, तब वह विपक्ष के साझा उम्मीदवार के रूप में एक चेहरा हो सकते हैं और यह तब तक संभव नहीं है, जब तक कि कांग्रेस की सहमति न हो। वैसे इसी साल सितंबर में विपक्षी दलों की एक बैठक में उनकी ही पार्टी के नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा था कि शरद पवार पीएम पद के दावेदार नहीं हैं लेकिन महाराष्ट्र की सियासत में दो धुर विरोधी दलों (कांग्रेस और शिव सेना) को जिस तरह से पवार ने एक धागे में बांधकर रखा है, वह उनकी राजनीतिक कुशलता का परिचायक है। संभव है कि 2024 में उन्हें इस बाजीगरी का प्रतिफल मिल सकता है। वैसे यह कहना अभी बहुत मुश्किल है।
कई राज्यों में सिमटी बीजेपी:
यह चर्चा इसलिए भी, मौजूं है क्योंकि बीजेपी कई राज्यों में सिमटती जा रही है। 2014 में जब बीजेपी केंद्र की सत्ता में आई थी, उसके बाद से बीजेपी का कई राज्यों में विस्तार हुआ और 29 में से 20 राज्यों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बीजेपी की सरकार रही लेकिन अब यह सिमट रही है। हिमाचल प्रदेश बीजेपी के हाथ से निकल चुका है। बिहार की गठबंधन सरकार से भी बीजेपी बाहर हो चुकी है।
हालांकि, महाराष्ट्र में जोड़तोड़ की सरकार में बीजेपी फिर से शामिल हो गई है। इनसे इतर मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भी बीजेपी ने जोड़तोड़ की सरकार बनाई है। हरियाणा, नागालैंड, मेघालय और पुडुचेरी में बीजेपी की गठबंधन सरकार है। चुनावी राज्य त्रिपुरा में भी बीजेपी की हालत थोड़ी ठीक नहीं दिख रही है। कुल मिलाकर अब बीजेपी के हाथ में 15 राज्यों में सरकार बची है।
ऐसे में बीजेपी विरोधी वोटों की लामबंदी और फिर से उनके कांग्रेस या गैर बीजेपी क्षेत्रीय दलों की ओर झुकाव ने भी शरद पवार को यह कहने को मजबूर कर दिया है कि देश कांग्रेस मुक्त नहीं हो सकता। उधर, दो राज्यों में सिमटी कांग्रेस की सरकार अब दोगुनी से ज्यादा होकर पांच राज्यों में (झारखंड और बिहार में गठबंधन सरकार) हो गई है।