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साल 1980 के दशक में आयरिश रिपब्लिकन आर्मी उत्तरी आयरलैंड में ब्रिटेन के शासन का जोरदार तरीके से विरोध कर रही थी। आईआरए का यह विरोध खूनी हिंसा में बदल गया। साल 1979 में 27 अगस्त के दिन आईआरए के हमलावरों ने भारत में अंग्रेजों के आखिरी गवर्नर लॉर्ड माउंटबेटन की हत्या कर दी। लॉर्ड माउंटबेटन ब्रिटेन के राजकुमार फिलिप के चाचा थे और आईआरए ने उन्हें मारकर शाही परिवार को सीधा अपने निशाने पर ले लिया। यही नहीं इसी दौरान आईआरए के लड़ाकुओं ने ब्रिटेन की सेना पर भीषण हमला बोला था।
लॉर्ड माउंबेटन की नाव में जोरदार धमाका, सब तबाह
दूसरे विश्वयुद्ध के हीरो रहे लॉर्ड माउंटबेटन हमले के समय एक मछली पकड़ने वाली नौका पर सवार थे। माउंटबेटन उत्तरी पश्चिमी आयरलैंड में अपने घर के पास 6 अन्य लोगों के साथ नाव पर मौजूद थे। कई दिनों की बारिश के बाद अच्छा मौसम हुआ था और माउंटबेटन घूमने के लिए निकले थे। उनकी नौका को अभी सफर शुरू किए 15 मिनट ही हुए थे, उसमें रखे बम में विस्फोट हो गया। इस बम में धमाका आईआरए के दो सदस्यों ने किया था। ये उत्तरी आयरलैंड को अलग देश बनाना चाहते थे।
ब्रिटेन की सरकार और आईआरए के बीच साल 1998 में बेलफास्ट समझौता हुआ और इस हिंसा का अंत हो गया जिसमें 3600 लोगों की जान गई थी। बम हमले के एक प्रत्यक्षदर्शी ने न्यूयार्क टाइम्स को बताया था, ‘लॉर्ड माउंटबेटन की नाव वहां कुछ ही समय पहले पहुंची थी और अगले मिनट वह कुछ ऐसे हो गई जैसे माचिस की तीलियां पानी पर तैरती हैं। इस हमले के दौरान नाव पर माउंटबेटन, उनकी बेटी पैट्रिशिया, उनके पति लॉर्ड जॉन ब्राबोर्न, उनके दो जुड़वां बच्चे भी मौजूद थे। बम हमले के बाद माउंटबेटन, निकोलस ब्राबोर्न और मैक्सवेल की तत्काल मौत हो गई। लेडी ब्राबोर्न की अगले दिन मौत हो गई और बाकी लोग गंभीर हालत के बाद बच गए।
ब्रिटेन के शाही परिवार को बहुत बड़ा झटका
माउंटबेटन पर किताब लिखने वाले एंड्रीव लोवनी के मुताबिक इस नाव को उड़ाने के लिए 50 पाउंड जिलेटिन का इस्तेमाल किया गया था। यह विस्फोट इतना ताकतवर था कि पूरी नाव तबाह हो गई। इसी दिन बाद में आयरलैंड की सीमा पर एक और खूनी हमला हुआ जिसमें 18 ब्रिटिश सैनिकों की मौत हो गई। माउंटबेटन की हत्या ब्रिटेन के लिए भावुक करने वाला प्रतीकात्मक लक्ष्य था। वह ब्रिटेन के शाही परिवार के सबसे सम्मानित सदस्यों में से एक थे। लॉर्ड माउंटबेटन उस समय ब्रिटेन के राजकुमार रहे फिलिप के मेंटर भी थे। माउंटबेटन को अपनी हत्या का भरोसा नहीं था और इसलिए उन्होंने सुरक्षा को ठुकरा दिया था।
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