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वाराणसी में जिला जज की कोर्ट के आदेश पर व्यासजी तहखाना में गुरुवा की भोर में पूजा शुरू हो गई। इससे पहले बुधवार की देर रात व्यास जी के परिवार के नाती और केस के वादी शैलेंद्र कुमार पाठक ने पूजा करने का अधिकार काशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन को सौंप दिया। उन्होंने विश्वनाथ मंदिर न्यास के नाम पर लिखित सहमति पत्र दिया है। इसके बाद मंदिर प्रशासन ने यहां पर दर्शन-पूजन सम्पन्न कराया। शैलेंद्र पाठक व्यास दक्षिणी तहखाना केस में वादी और सोमनाथ व्यास (व्यास जी) के नाती हैं। जिन्होंने अपने पूर्वजों के पूजा करने के अधिकार का हवाला देते हुए जिला जज की अदालत में दावा किया था।
उन्होंने अपने वाद में बताया है कि 1993 से पूर्व उनके नाना सहित अन्य कई पीढ़ियों से ज्ञानवापी के अंदर स्थित मूर्तियों का दर्शन-पूजन करते थे। जहां वे पूजन करते थे, उसे व्यास जी का तहखाना और व्यास पीठ कहा जाता था। वर्ष 1993 में सरकार के एक आदेश के बाद पूरे ज्ञानवापी परिसर को बाड़ (लोहे की बैरिकेडिंग) लगाकर बंद कर दिया गया। इससे पूजा बंद हो गई थी।
बुधवार को जिला जज के आदेश में उल्लेखित है कि मुकदमे में प्रतिवादी अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने लिखित आपत्ति में आरोप लगाया है कि 25 फरवरी 2016 को विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट व शैलेंद्र कुमार पाठक के बीच पूजा के कुछ अधिकार स्थानांतरित करने का रजिस्टर्ड डीड किया गया है। जिसकी प्रतिलिपि भी आपत्ति के साथ लगाई गई है। कोर्ट ने डीएम व शैलेंद्र कुमार पाठक को पूजा शुरू करने का अधिकार दिया तो शलैंद्र कुमार पाठक ने प्रशासन को पूजा के अन्य अधिकार भी दे दिये हैं। शैलेंद्र कुमार पाठक ने लिखित रूप से अधिकार मंदिर को सौंपा है।
वैदिक विधि विधान से खोला गया द्वार
तहखाने में विराजमान देवी-देवताओं का पूजन 31 साल बाद गुरुवार की भोर में काशी विश्वनाथ मंदिर के अर्चकों ने किया। बुधवार को आधीरात में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में लोहे की बैरिकेडिंग हटा कर तहखाने की सफाई की गई। वर्षों से बंद तहखाने का द्वार खोलने से पूर्व वैदिक विधान के अनुसार अथर्ववेद के विशिष्ट मंत्रों का उच्चारण किया गया। यह मंत्र उस स्थिति विशेष में पढ़ा जाता है जब किसी देवालय का द्वार लंबे अंतराल के बाद खोला जाता है। रात्रि में साफ सफाई के बाद पर्याप्त प्रकाश की व्यवस्था की गई।
भोर में काशी विश्वनाथ की मंगला आरती से पहले मंदिर के अर्चक पं. ओमप्रकाश मिश्र ने तहखाने में विग्रहों को पंचामृत स्नान कराया गया। चार अन्य शास्त्री मंत्रोच्चार करते रहे। स्नान के बाद पूजन के अन्य विधान पूरे किए गए। देव विग्रहों के साथ ही त्रिशूल और मकर की मूर्ति का भी पूजन हुआ। तहखाना दो देव विग्रह ऐसे भी हैं जो दशकों पूर्व जोशी मठ से लाकर प्रतिष्ठित किए गए थे। उल्लेखनीय है कि जोशी मठ की ओर से ही उन विग्रहों के समक्ष अखंड दीप जलाने की व्यवस्था थी। अखंड दीप वर्ष 1993 में तहखाने के सामने लोहे की बैरिकेडिंग किए जाने तक जलता रहा।