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शिखा श्रेया/रांची: रांची के आसपास के गांवों और जंगलों में रहने वाले आदिवासी वर्षों से दर्द की दवा बाजार से नहीं, पेड़ से खोजते हैं. यहां एक खास बीज है, जिसे वे “बहरा बीज” कहते हैं और यही बनता है उनके लिए प्राकृतिक दर्द निवारक तेल.
जब शरीर में कहीं भी तेज दर्द हो घुटनों में, पीठ में या चोट से तो वे न कोई दवा लेते हैं और न डॉक्टर के पास जाते हैं. वे सीधे जंगल जाते हैं, कुसुम के पेड़ से बहरा बीज तोड़ते हैं, और हाथ से मसल कर उस तेल को सीधे दर्द वाली जगह पर लगा देते हैं.
“तेल नहीं खरीदते, बीज मसलते हैं” दर्द गायब, बिना खर्च के
नामकुम इलाके में रहने वाले सुनील बताते हैं, “हम लोग जहां भी दर्द होता है, वहीं पर जंगल से बीज लाते हैं, छीलते हैं और बीज को हाथ से मसलते हैं. हाथ में जो तेल आता है, उसे दर्द वाली जगह पर घिस देते हैं. 2 मिनट में राहत मिलती है.”
वे कहते हैं कि दिन में दो से तीन बार लगाएं, तो घुटनों का पुराना से पुराना दर्द भी 2-3 दिन में पूरी तरह छूमंतर हो जाता है.
आदिवासी परंपरा बनी आयुर्वेदिक ब्रांड की नींव
मजेदार बात ये है कि इस बीज की मांग सिर्फ गांव में नहीं, बल्कि देशभर की आयुर्वेदिक और फार्मा कंपनियों में भी है. सुनील बताते हैं कि कई कंपनियां खुद गांवों में आकर इस बीज को खरीदती हैं. इसका उपयोग बड़े-बड़े ब्रांड दर्द निवारक तेलों में करते हैं.
कमाई का ज़रिया भी है ये जंगल का तोहफा
बहरा बीज का एक किलो ₹500 से ₹600 तक में बिकता है. आदिवासी इसे चुनकर स्टोर करते हैं और कंपनियों को बेचते हैं. सुनील बताते हैं, “अगर महीने में 6-7 किलो भी बेच दें तो ₹4000 तक की कमाई हो जाती है वो भी बिना कोई लागत के.”
कुसुम का पेड़, जिसका हर बीज में छुपा है इलाज
कुसुम का पेड़ झारखंड के लगभग हर जंगल में पाया जाता है. ये न सिर्फ पर्यावरण के लिए उपयोगी है, बल्कि इसका बीज एक सच्चा देसी इलाज है. जब दर्द से कोई राहत नहीं मिलती, तो यहां के आदिवासी कहते हैं बाजार मत दौड़ो, बीज मसलो.
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