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टैंक क्या, बॉम्बर्स भी नहीं बचे, युद्ध के मैदान का नया बादशाह FPV ड्रोन

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टैंक क्या, बॉम्बर्स भी नहीं बचे, युद्ध के मैदान का नया बादशाह FPV ड्रोन

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एक दौर था जब टैंक को युद्ध का राजा कहा जाता था. करोड़ों की लागत, आधुनिक सेंसर, मजबूत कवच, भारी मारक क्षमता — यानी मैदान में बुलेटप्रूफ ताकत का प्रतीक. लेकिन अब इस राजा को घुटनों पर ला दिया है महज़ $4,000 यानि 3-4 लाख के एक छोटे से ड्रोन ने.

FPV ड्रोन — यानी “फर्स्ट पर्सन व्यू” ड्रोन — जो आज युद्ध के मैदान का सबसे खतरनाक शिकारी बन चूका है. यूक्रेन-रूस युद्ध में इसका जीता-जागता उदाहरण हाल ही में देखने को मिला, जब यूक्रेनी ड्रोन ने रूस के एंगेल्स एयरबेस पर हमला कर दिया और वहां खड़े TU-95 स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स को निशाना बनाया. ये वही बॉम्बर्स हैं जो हजारों किलोमीटर दूर तक परमाणु बम गिरा सकते हैं — लेकिन उन्हें धूल चाटने पर मजबूर कर दिया गया एक साधारण FPV ड्रोन से. जिन TU-95 विमानों की लागत करोड़ों में है, उन्हें नाकाम कर देना दिखाता है कि वर्त्तमान के युद्ध आकार और पैसा नहीं, तकनीक और बुद्धिमत्ता तय करेगी.

हर महीने 2 लाख ड्रोन बना रहा यूक्रेन
FPV ड्रोन का मतलब है “फर्स्ट पर्सन व्यू” — यानी ऑपरेटर लाइव वीडियो फीड के जरिए ड्रोन को इस तरह नियंत्रित करता है जैसे वो खुद उड़ रहा हो. एक तरह से, ड्रोन की आंखों से देखता है. यही उसे बेहद सटीक और खतरनाक बनाता है. यूक्रेन ने इसे किफायती हथियार में बदल दिया है — 2025 की शुरुआत तक यूक्रेन ने दावा किया कि वह हर महीने करीब 2 लाख यूनिट बना रहा है. इन ड्रोन में अक्सर 4–5 किलो तक विस्फोटक लगाए जाते हैं और इन्हें टैंक, आर्टिलरी, कमांड पोस्ट या अब स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स तक को निशाना बनाने में इस्तेमाल किया जा रहा है.

पिछले दो सालों में ये ड्रोन यूक्रेन की जंग की ताकत का सबसे बड़ा सहारा बन गए हैं. पिछले साल यूक्रेनी सरकार ने देश में ही 10 लाख FPV ड्रोन तैयार करने का लक्ष्य तय किया था. इन ड्रोन में छोटे वॉरहेड होते हैं, लेकिन ये टैंकों और अन्य हाई-टेक सैन्य उपकरणों को तबाह करने में पूरी तरह सक्षम हैं. लंदन स्थित डिफेंस और सिक्योरिटी थिंक टैंक RUSI की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, अब रूस के नुकसान पहुंचाए गए या नष्ट किए गए सैन्य सिस्टम में करीब 70 फीसदी हिस्सेदारी टैक्टिकल ड्रोन की है.

यूक्रेन में इस्तेमाल हो रहे R18 ऑक्टोकॉप्टर, जिसे ‘Aerorozvidka’ नाम की संस्था ने बनाया है, खासतौर पर रात में मिशन के लिए तैयार किया गया है. इसमें थर्मल कैमरा लगा होता है और ये 13 किमी तक उड़ सकता है. इसके अलावा ‘बाबा यागा’ जैसे लो-कॉस्ट लेकिन हाई इम्पैक्ट ड्रोन भी बड़ी संख्या में इस्तेमाल किए जा रहे हैं.

1944 से शुरू हुआ था FPV का सफर
FPV तकनीक तो नई है, लेकिन ड्रोन से हमला कोई आज की बात नहीं. 1944 में, अमेरिकी नौसेना की एक सीक्रेट यूनिट STAG-1 ने जापानी सेना के खिलाफ रेडियो-कंट्रोल “TDR-1” ड्रोन का इस्तेमाल किया था. वो भी किसी आधुनिक गेम की तरह थर्ड पर्सन व्यू में ऑपरेट होता था. तब से अब तक, तकनीक ने युद्ध की शक्ल ही बदल दी है.

रूसी टैंक और अब बॉम्बर्स भी चटनी बन चुके हैं
एक साधारण FPV ड्रोन की लागत महज $500–$1000 है यानि 40 हज़ार से 1 लाख. इसमें भी आधुनिक $4,000 यानि 3-4 लाख का आता है. जबकि एक रूसी T-72 टैंक की कीमत $3–4 मिलियन यानि 34 से 40 करोड़ का आता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, यूक्रेनी ड्रोन हमलों में रूस के दो-तिहाई से अधिक टैंक तबाह हो चुके हैं. अब इस लिस्ट में TU-95 बॉम्बर्स का जुड़ना दिखाता है कि ये सिर्फ जमीनी नहीं, बल्कि एरियल डिटरेंस के लिए भी बड़ा खतरा बन चुके हैं.

यूक्रेन का ऑपरेशन ‘स्पाइडर वेब’
1 जून को यूक्रेन ने रूस के अंदर गहराई तक हमला बोला. 100 से ज्यादा ड्रोन एक साथ उड़ाए गए, जिनका निशाना बने रूस के वो एयरबेस जहां परमाणु हथियार ले जाने वाले बमवर्षक तैनात थे. इस हमले को नाम दिया गया – “स्पाइडर वेब ऑपरेशन”.

नाम के मुताबिक ही इसका जाल पूरे रूस में फैलाया गया था. धमाके एक ही वक्त में देश के अलग-अलग हिस्सों से रिपोर्ट हुए — कहीं आर्कटिक सर्कल के पास मुरमांस्क, तो कहीं 4,000 किलोमीटर दूर इरकुत्स्क. ये सिर्फ एक ड्रोन हमला नहीं था, ये रूस के भीतर एक मानसिक दबाव बनाने की कोशिश भी थी. यूक्रेन ने साफ कर दिया कि अब रूस के वो इलाके, जिन्हें अब तक पूरी तरह ‘सुरक्षित’ माना जाता था, वहां भी खतरा पहुंच सकता है — और उसे रोक पाना आसान नहीं होगा.

यूक्रेन ने FPV ड्रोन के असर को बढ़ाने के लिए संगठित टाइमिंग और घुसपैठ की रणनीति अपनाई. यूक्रेन ने इन ड्रोन को लकड़ी के घर जैसे ढाँचों में पैक कर, जिनमें रिमोट से खुलने वाले ढक्कन लगे थे, गुप्त रूप से रूस के अंदर पहुंचाया. ये ड्रोन बहुत कम ऊंचाई पर उड़ते हैं और पहले से ही डिफेंड करना मुश्किल होते हैं, क्योंकि ये आमतौर पर बिना निगरानी वाले रास्तों से घुसते हैं.

और चूंकि इन्हें ट्रकों से ही लॉन्च किया गया—जो सीधे रूसी एयरबेस के पास मौजूद थे—इसलिए रूस को प्रतिक्रिया देने का लगभग कोई मौका ही नहीं मिला. इन ड्रोन को रूस की परतदार वायु रक्षा प्रणाली के पार पहले ही पहुंचा दिया गया था, जिससे वे सीधे लक्ष्य को भेद सके.

तो इनसे निपटा कैसे जाए?
इस सवाल का जवाब युद्ध के अनुभव से निकाला गया है. FPV ड्रोन से निपटने के लिए किसी एक तोप या मिसाइल से काम नहीं चलेगा. इसके लिए एक नया खास वाहन (Anti-FPV Drone Vehicle) चाहिए जिसमें हो:
  • RF जैमिंग सिस्टम (ड्रोन के सिग्नल काटने के लिए)
  • सिग्नल डिटेक्टर (ऑपरेटर की पहचान के लिए)
  • ड्रोन रडार/सेंसर (रीयल टाइम में पहचान के लिए)
  • नेट गन या लेजर (ड्रोन को मार गिराने के लिए)
  • कम दूरी की QRSAM मिसाइल (फास्ट रेस्पॉन्स के लिए)
  • ये “फुल-स्पेक्ट्रम सुरक्षा” युद्धक्षेत्र में सिर्फ रक्षा ही नहीं, बल्कि सेना की जवाबी ताकत को भी मज़बूत करेगी. आज का युद्ध पैसा और संख्या नहीं, टेक्नोलॉजी और इनोवेशन से जीता जाएगा. FPV ड्रोन इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं — छोटे, सस्ते, मगर बेहद घातक और ये अब सिर्फ टैंकों तक सीमित नहीं — बॉम्बर्स तक गिरा रहे हैं. सवाल अब ये नहीं कि इनके आगे कौन बचेगा, बल्कि ये है कि इनसे बचने की तैयारी किसने कर रखी है.

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