Home Life Style ठंड में क्यों बढ़ जाता है अस्थमा अटैक का खतरा? जानें किन बातों का ध्यान रखना है जरूरी

ठंड में क्यों बढ़ जाता है अस्थमा अटैक का खतरा? जानें किन बातों का ध्यान रखना है जरूरी

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ठंड में क्यों बढ़ जाता है अस्थमा अटैक का खतरा? जानें किन बातों का ध्यान रखना है जरूरी

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Why does asthma get worse in the cold: दमा के मरीजों के लिए ठंड के दिन बड़े ही तकलीफदेह होते हैं। सांस की नलियों का सिकुड़ना और वातावरण में प्रदूषण का बढ़ना, अस्थमा अटैक की आशंका को और बढ़ा देता है। ऐसे में सर्दियों में अस्थमा अटैक से बचने के लिए किन बातों को ध्यान में रखें, बता रही हैं शमीम खान। 

क्या कहते हैं आंकड़े-

-वर्ल्ड अस्थमा फाउंडेशन के अनुसार, भारत की 25 प्रतिशत जनसंख्या एलर्जी से पीड़ित है। इनमें से पांच प्रतिशत लोगों की एलर्जी दमा में बदल जाती है।

-एक रिपोर्ट के अनुसार देश में पिछले दो वर्षों में कमजोर इम्युनिटी के कारण एलर्जी और अस्थमा के मरीजों में 57 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

-विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2019 में विश्व में 26 करोड़ 20 लाख लोग अस्थमा के शिकार थे।

-एक अनुमान के अनुसार 2025 तक विश्वभर के बीस करोड़ लोग अस्थमा के रोगी होंगे। दुनिया में हर दस में से एक अस्थमा पीड़ित मरीज भारतीय है।

ठंड में क्यों अधिक बढ़ जाता है अस्थमा का खतरा-

दमा रोगियों को किसी भी बदलते मौसम, तेज ठंड व तापमान में तेजी से आनेवाले उतार-चढ़ाव में सावधान रहने की जरूरत होती है। ठंड के दिनों में एक ओर ठंडी और शुष्क हवाएं चल रही होती हैं, तो वहीं वातावरण में कई नए दमा करने वाले ट्रिगर्स बढ़ जाते हैं। ऐसे में वायुमार्ग पुराने मरीजों में जहां दमा के अटैक का खतरा बढ़ जाता है, वहीं दमा के नए मामले भी ठंड में अधिक सामने आते हैं।

आंकड़ों के अनुसार, भारत में करीब छह करोड़ लोग अस्थमा के शिकार हैं। इतना ही नहीं देश में हर वर्ष अस्थमा के रोगियों की संख्या पांच प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। पर, अच्छी बात यह है कि बचाव और नियंत्रण के बारे में जागरूकता बढ़ाकर हम हर साल दमा के मामलों व इससे होनेवाली मौतों की संख्या में कमी ला सकते हैं।

सर्दियों में अस्थमा अटैक के मामले काफी बढ़ जाते हैं, इसके दो सबसे प्रमुख कारण हैं; एक श्वास नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं, दूसरा, वातावरण में धुंध के कारण प्रदूषण निचली सतह पर रहता है। ऐसे में लंबे समय तक स्मोग के संपर्क में रहना छाती के संक्रमण व अस्थमा रोगियों में दमा के अटैक का खतरा बढ़ा देता है। दमा व सांस की अन्य समस्याओं से जूझ रहे लोगों की तकलीफ बढ़ने लगती है।

अस्थमा को समझें-

अस्थमा फेफड़ों में हवा लाने-ले जानेवाली श्वास नलिकाओं (एअर ट्यूब्स) को प्रभावित करता है। ये श्वास नलिकाएं सूजकर अति संवेदनशील हो जाती हैं और उत्तेजना पैदा करनेवाली हर चीज से उनमें सख्त प्रतिक्रिया होती है। इन्हें अस्थमा ट्रिगर्स कहते हैं। अस्थमा ट्रिगर के संपर्क में श्वास नलिकाओं की मांसपेशियां तंग हो जाती हैं, जिससे ये थोड़ी सिकुड़ जाती हैं और वायु का प्रवाह सामान्य नहीं हो पाता है। ठंड के दिनों में दमा को ट्रिगर करने वाले एलर्जन्स अधिक होते हैं।

यह एक गैर-संचारी रोग (एनसीडी) है। यह बड़ों व बच्चों दोनों को प्रभावित करता है। छोटे बच्चों में यह आम फेफड़ों की समस्या है, जिससे बच्चे का वायुमार्ग सूज जाता है और अतिरिक्त बलगम बनने लगता है, इससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है।

मौसम व वातावरण के अलावा रात में व्यायाम या अत्यधिक शारीरिक श्रम करने पर भी दमा के लक्षण गंभीर हो जाते हैं। शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन न मिलने से भी अस्थमा अटैक ट्रिगर हो सकता है।

कोरोना की नई लहर की आशंका को देखते हुए, वर्ल्ड अस्थमा फाउंडेशन ने कहा है कि दमा रोगियों के न सिर्फ कोरोना के संक्रमण की चपेट में आने का खतरा अधिक है, बल्कि संक्रमित होने पर अस्थमा अटैक के गंभीर होने की आशंका भी है।

हालिया एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो वर्षों में देश में एलर्जी और अस्थमा के मरीजों में 57 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। एक ही मास्क को कई दिनों तक लगाने, मास्क को साफ न रखने और घटिया क्वालिटी के मास्क का इस्तेमाल करते रहना भी सांस की तकलीफ बढ़ाता है।

अटैक आने पर क्या करें-

-बिना देर किए डॉक्टर द्वारा बताई गई दवा लें। इन्हेलर का इस्तेमाल करें।

-सीधे खड़े हो जाएं या बैठ जाएं और लंबी सांस लें। पर, लेटें बिल्कुल नहीं।

-कपड़ों को ढीला कर लें, संभव हो तो आरामदायक कपड़े पहनें। शांत रहने का प्रयास करें।

-गर्म कैफीन युक्त ड्रिंक लें, जैसे कॉफी इससे एक या दो घंटों के लिए श्वास मार्ग थोड़ा खुल जाएगा।

-डॉक्टर से संपर्क करें। बिना देर किए नजदीक के अस्पताल में जाएं।

सलाह-

-दमा के मरीजों को हर साल फ्लू का इंजेक्शन लगाना चाहिए, जो श्वसन मार्ग के संक्रमण से सुरक्षा देता है। डॉक्टर द्वारा बताई दवाएं लेते रहें। उपचार में खुद से बदलाव न करें। इनहेलर व दवाएं हमेशा पास रखें।

-जिन चीजों से एलर्जी है, उनसे दूर रहें। प्रदूषित स्थानों पर जाने से बचें। ठंड में देर रात के समय और बहुत सुबह घर से बाहर न निकलें। बाहर निकलते समय खुद को ढक कर रहें और मास्क जरूर पहनें।

-खान-पान सही रखें। विटामिन डी व सी से युक्त चीजों का अधिक सेवन करें। घर का बना ताजा भोजन करें। सूप पिएं। लहसुन और अदरक खाएं। दर्द व सूजन को कम करनेवाले इनके गुण दमा में राहत देते हैं।

-श्वसन तंत्र मजबूत बनाने के लिए 10 मिनट प्रणायाम करें। नियमित योग करना फेपड़ों की क्षमता को बढ़ाता है। इससे श्वास रोकने की क्षमता बढ़ती है और रक्त संचरण बेहतर होता है। इसके साथ ही पैदल चलना भी काफी फायदेमंद रहता है। सुबह ही सैर करना जरूरी नहीं है। दोपहर का समय चुनें या घर के भीतर ही टहलें।

-ठंड में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। घर, बिस्तर, कालीन व तकियों पर धूल-मिट्टी जमा न होने दें। समय-समय पर साबुन और कुनकुने पानी से हाथ धोना कई तरह के संक्रमण से बचाता है।

हमारे विशेषज्ञ-

-डॉ. अमितेश गुप्ता, असिस्टेंट प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ पल्मोनरी मेडिसीन, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, नई दिल्ली

-डॉ. विकास मौर्य, सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट, फोर्टिस हॉस्पिटल, दिल्ली

-डॉ. रमन कुमार, अध्यक्ष, फैमिली फिजिशियंस ऑफ इंडिया, दिल्ली

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