कर्नाटक के नए सीएम पर संभवत: फैसला हो चुका है लेकिन आधिकारिक रूप से उसका ऐलान होना अभी बाकी है। सूत्रों के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया सीएम पद की रेस में डीके शिवकुमार से बाजी मार ले गए हैं। सूत्रों के मुताबिक सिद्धारमैया का शपथ ग्रहण समारोह गुरुवार को होगा। वह 2013 से 2018 तक भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। माना जा रहा है कि डीके शिवकुमार उप मुख्यनमंत्री बनाए जाएंगे।
दरअसल, कांग्रेस के संकटमोचक रहे डीके शिवकुमार के सीएम बनने का सपना तीन साल पहले तब बुना गया था, जब तिहाड़ जेल में उनसे मिलने सोनिया गांधी पहुंची थीं। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी जुलाई 2020 में मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद डीके शिवकुमार से मिलने तिहाड़ जेल पहुंचीं थीं। गांधी के साथ कर्नाटक के तत्कालीन पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल भी थे। कहा जा रहा है कि तभी सोनिया गांधी ने शिवकुमार से कह दिया था कि कर्नाटक कांग्रेस की जिम्मेदारी अब उनके ही कंधों पर होगी। इसके बाद शिवकुमार ने राज्य में खूब काम किए।
राहुल के साथ बैठक में उम्मीदों पर फिरा पानी:
पिछले साल जब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कर्नाटक पहुंची तो सिद्धारमैया के साथ डीके की पुरानी सियासी दुश्मनी भी खत्म होती दिखी और उन्हें लगने लगा था कि अगर पार्टी विधानसभा चुनावों में जीतती है तो वह मुख्यमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार हो सकते हैं। हालांकि, राहुल गांधी के साथ दिल्ली में हुई बैठक में आज उनका वह सपना चकनाचूर होता नजर आया।
राहुल का हाथ सिद्धा के साथ:
डीके शिवकुमार को सोनिया गांधी का करीबी माना जाता है लेकिन बाजी सिद्धारमैया मार ले गए। इसके पीछे की वजह राहुल गांधी हैं। मुख्यमंत्री के रूप में राहुल गांधी की पहली पसंद सिद्धारमैया ही थे। इसके पीछे सिद्धारमैया का व्यक्तित्व और अनुभव है। वह पहले भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा वह दो बार उप मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। सिद्धा की छवि ईमानदार और जननायक नेता के रूप में रही है। इसके अलावा वह बुजुर्ग हैं, जबकि डीके शिवकुमार अभी युवा है। डीके के लिए भविष्य में भी मौके बन सकते हैं।
2024 का लोकसभा चुनाव अहम:
सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने राज्य में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए मानक सेट कर दिए हैं। राज्य में कुल 28 लोकसभा सीटें हैं। इनमें से 25 पर पिलहाल बीजेपी का कब्जा है। सिद्धा को सीएम बनाने से जनता के बीच ईमानदार, अनुभवी और पिछड़ों के हिमायती होने का संदेश जाएगा। पार्टी लिंगायत, वोक्कालिगा के अलावा दलित वोटों पर सबसे ज्यादा उम्मीद लगाए हुए है, जिसका साथ हालिया चुनावों में मिला भी है। इस लिहाज से सिद्धारमैया को सबसे सटीक कैंडिडेट मानते हुए उन्हें फिर से सीएम बनाने का फैसला किया गया है।
इसके अलावा, सिद्धारमैया कुरुबा समुदाय से आते हैं,जो कर्नाटक में पूरी आबादी की तीसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाली जाति मानी जाती है। सिद्धारमैया खुद को पिछड़ा वर्ग के नेता के तौर पर पेश करते रहे, जिसका फायदा कांग्रेस को मिलता रहा है।
कई विधायक सिद्धा के साथ:
सीएम पद पर फैसला होने से पहले दोनों (शिवकुमार और सिद्धारमैया) अपने-अपने समर्थक विधायकों को लेकर पहुंचे थे। लेकिन माना जा रहा है कि 135 विधायकों में से अधिकांश सिद्धारमैया को ही मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाह रहे थे।
दागी छवि और भाजपा के नकारात्मक प्रचार का भय:
डीके शिवकुमार के खिलाफ सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स के कई मामले दर्ज हैं। इस बात की अटकलें लगाई जा रही थीं कि आपराधिक मामलों की वजह से डीके शिवकुमार शायद सीएम पद की रेस से बाहर हो जाएं लेकिन ऐसा होता नहीं दिखा। अंतत: पार्टी ने उनकी उम्मीदवारी और आसन्न खतरों को भांपते हुए उन्हें सीएम पद नहीं सौंपने का फैसला किया है।
पार्टी को इस बात का अंदेशा रहा है कि अगर शिवकुमार को सीएम बनाया गया तो लोकसभा चुनावों से ऐन पहले मुख्य विपक्षी भाजपा राज्य में कांग्रेस को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेर सकती है और डीके पर भी केंद्रीय एजेंसियों के जरिए शिकंजा कस सकती है। इस लिहाज से पार्टी ने सरकार और डीके दोनों को राहत पहुंचाने के इरादे से सिद्धा को फिर से सीएम बनाने के फैसला किया है। बता दें कि डीके शिवकुमार पर 19 मामले दर्ज हैं।