अंजलि सिंह राजपूत/लखनऊः अगर आपको भी बात-बात पर फुल बॉडी चैकअप करने की आदत है. या शरीर में थोड़े से भी बदलाव पर आप जांच कराने के लिए डॉक्टर के पास पहुंच जाते हैं. तो जरा रुकिए यह तरीका आपको मानसिक रूप से बीमार बना सकता है. यह कहना है किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के फिजियोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड प्रोफेसर नरसिंह वर्मा का.
उन्होंने बताया कि आजकल निजी पैथोलॉजी लोगों के लिए पैकेज निकालती है कि सिर्फ 2500 रुपए में फुल बॉडी चैकअप कराएं या 1500 रुपए में फुल बॉडी चैकअप कराएं, यह तरीका सिर्फ कमर्शियल है और पैसा कमाने का जरिया है. लोग इसके चक्कर में आकर पैथोलॉजी पहुंच जाते हैं और जांच कराने लग जाते हैं.
दिमाग में बैठ जाता है डर
ऐसे में कंप्यूटर कोई एक कमी को हाईलाइट कर देता है और लोगों के दिमाग में यह बैठ जाता है कि उनका जिंक बढ़ा हुआ है या कैल्शियम कम हो गया है या विटामिन डी की कमी है और कई बार लिवर में थोड़ी सी भी कमी आती है तो लोगों को लगता है कि उनका लिवर खराब हो गया. ऐसे में दिमाग में डर बैठ जाता है. बीमारी बैठ जाती है और लोग झूठा बीमारियों का आवरण ओढ़ कर इलाज शुरू कर देते हैं, जो उनको और बीमार बना देता है. क्योंकि हमारे शरीर में रोज बदलाव होते रहते हैं, ऐसे में लोग इस बात को नहीं समझ पाते हैं और इसे बीमारी समझ लेते हैं.
डायबिटीज और ब्लड प्रेशर जांच जरूरी
उन्होंने बताया कि साल में सिर्फ डायबिटीज की जांच ऐसी है, जो 6 महीने या साल में एक बार करा लेनी चाहिए. इससे शरीर में ब्लड शुगर का स्तर पर पता चल जाता है और सही समय पर इलाज शुरू हो जाता है. इसके अलावा ब्लड प्रेशर की जांच भी 6 महीने या साल में एक बार कराई जा सकती है. यह देखने के लिए की ब्लड प्रेशर कितना है. इसके अलावा अगर आपको अपने वजन को नापने की आदत है तो वो भी कर सकते हैं, लेकिन बात-बात पर फुल बॉडी चेकअप कराना, खून को निकलवाना यह बेहद गलत है.
बेवजह की जांच होनी चाहिए बंद
उन्होंने कहा कि डॉक्टर मरीज को हाथ लगाकर उसके कई अंगों के जरिए उसकी बीमारी का पता लगा सकते हैं, लेकिन कोविड के बाद से डॉक्टरों ने मरीजों को हाथ लगाना बंद कर दिया है. सिर्फ मशीनों पर निर्भर हो गए हैं. तमाम तरह की जांचे लिख रहे हैं. यह तरीका भी बंद होना चाहिए.
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FIRST PUBLISHED : October 19, 2023, 12:53 IST