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गीजगढ़ का अभय दुर्ग दौसा जिले के सिकराय में है. यह किला अपने सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन देखरेख के अभाव में जीर्ण-शीर्ण हो रहा है. इसका निर्माण 900 वर्ष पूर्व हुआ था.
दौसा के गीजगगीज कस्बे में बना पहाड़ी पर दुर्ग
दौसा. दौसा जिले के सिकराय उपखंड की ग्राम पंचायत गीजगढ़ में स्थित अरावली पर्वत शृंखला के पहाड़ों पर अलवर-गंगापुर मेगा हाइवे के पास गीजगढ़ का अभय दुर्ग प्रकृति की गोद में बसा हुआ है। यह किला अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन देखरेख के अभाव में यह किला जीर्ण-शीर्ण होता जा रहा है। अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो इसका अस्तित्व ही समाप्त हो सकता है। इसके बावजूद, बड़ी संख्या में लोग इस किले को देखने आते हैं। किले के ऊपर किसी भी प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं है, हालांकि यह क्षेत्र का सबसे ऊंचा और सबसे बड़ा किला है।
गीजगढ़ किले का इतिहास गीजगढ़ के तत्कालीन सरपंच रामजीलाल सैनी और श्याम सिंह भाटी ने बताया कि इस दुर्ग का निर्माण करीब 900 वर्ष पूर्व हुआ था। सदियों पहले गीजगढ़ ग्राम चौहान राजपूतों के अधीन था। वर्ष 1755 में राजा पृथ्वीसिंह ने पोकरण के ठाकुर और राठौड़ वंश की चांपावत शाखा के सरदार ठाकुर श्याम सिंह को जागीर में दिया। 1793 में उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी उम्मेदसिंह गीजगढ़ के शासक बने। इस वंश के अंतिम शासक कुशाल भगतसिंह 1901 में गीजगढ़ की गद्दी पर बैठे और 1960 तक रहे। सुदान सिंह को भी यहां की जागीर दी गई। कान सिंह भी यहां शासक बने। रियासत काल में कुशाल सिंह अनेक प्रशासनिक पदों पर रहने के बाद वर्ष 1947 में निर्माण मंत्री भी रहे। इसके बाद किले की जिम्मेदारी मानदाता सिंह ने 2009 तक संभाली। उनके बाद योगेश्वर सिंह ने किले की व्यवस्था संभाली। वर्तमान में माधो सिंह द्वारा दुर्ग की व्यवस्थाएं संभाली जा रही हैं। गांव का दुर्ग पहाड़ की करीब डेढ़ एकड़ जमीन पर बसा हुआ है।
देखरेख के अभाव में किले की दीवारें जीर्ण-शीर्ण हो चुकी हैं स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि अब गीजगढ़ दुर्ग की देखरेख सही तरीके से नहीं की जा रही है, जिससे यहां की दीवारें क्षतिग्रस्त होने लगी हैं। किले में आने और जाने के लिए उत्तर और पूर्व दिशा के दरवाजे भी खराब हो चुके हैं। योगेश्वर ने किले में जाने के पूर्वी द्वार की तरफ 221 और उत्तरी द्वार की तरफ 125 सीढ़ियों का निर्माण भी कराया है। किले के अंदर माता का मंदिर, शिवालय और रामदेवरा धार्मिक स्थलों पर ग्रामीण रोजाना दर्शन के लिए आते हैं।
किले की सुरक्षा के लिए गांव में बने थे चार बड़े दरवाजे किले की सुरक्षा के लिए गांव में चार बड़े दरवाजे बने हुए थे, लेकिन एक दरवाजे का तो नामोनिशान ही मिट गया है। बाकी तीन दरवाजे देखरेख के अभाव में क्षतिग्रस्त हो गए हैं।
गांव का दृश्य लगता है मनोरम किले से देखने पर इसके दक्षिण-पूर्व में दौसा जिले का सबसे बड़ा बांध मांधोसागर का दृश्य, पूर्व में रेत के टीले और गांव की हरियाली का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। किले में पुराने समय में पानी के लिए दो बावड़ियां बनी हुई हैं।
किले में रखी थी तोपें ग्रामीणों ने बताया कि दुर्ग में पहले चार तोपें रखी थीं, लेकिन कुछ वर्ष पूर्व चोर एक तोप को ले गए। वह तोप आज सिकराय के मानपुर थाने में रखी हुई है। एक तोप अभी भी किले के बाहर रखी है।
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