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Late Night Sleeping Side Effects: यदि आपको देर रात सोने की आदत हैं तो संभल जाएं. एक नई रिसर्च में दावा किया गया है कि जो लोग देर रात सोते हैं उनकी बौद्धिकता भी कमजोर हो जाती है.

नींद में कमी से दिमाग पर असर.
हाइलाइट्स
- देर रात सोने से मानसिक क्षमता में गिरावट होती है.
- रिसर्च में 23,800 लोगों का 10 वर्षों तक अध्ययन किया गया.
- स्मोकिंग और खराब नींद मानसिक गिरावट के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं.
Late Night Sleeping Side Effects: क्या आप देर रात तक जागने वालों में से हैं. यदि हां तो अभी से संभल जाए क्योंकि आदत आपकी मानसिक सेहत से को नुकसान पहुंचा सकती है. एक नई स्टडी में यह बात सामने आई है कि जो लोग रात में देर तक जागते हैं और सुबह देर से उठते हैं, यानी ‘नाइट आउल’ होते हैं, उन्हें उम्र बढ़ने के साथ मानसिक क्षमताओं में तेजी से गिरावट आने का खतरा ज्यादा होता है. यह शोध नीदरलैंड्स के यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर ग्रोनिंगन की शोधकर्ता अना वेन्ज़लर और उनकी टीम ने किया है. रिसर्च में लगभग 23,800 लोगों की मानसिक क्षमता का मूल्यांकन 10 वर्षों तक किया गया. अध्ययन में पाया गया कि जो लोग देर रात तक जागते हैं, उनकी सोचने और याद रखने की क्षमता में मॉर्निंग पर्सन यानी सुबह जल्दी उठने वालों की तुलना में तेज गिरावट देखी गई.
स्मोकिंग और खराब नींद
डेली टेलीग्राफ में छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक शरीर की जैविक घड़ी, जिसे क्रोनोटाइप कहा जाता है, यह तय करती है कि कोई व्यक्ति कब सोता है और कब जागता है. नाइट आउल यानी देर रात तक जागने वाले व्यक्ति में सोने और जागने का चक्र खराब हो जाता है. अध्ययन के मुताबिक देर रात तक जागने वालों में स्मोकिंग, शराब और अनहेल्दी खानपान जैसी आदतें अधिक पाई गई. शोधकर्ता अना वेन्ज़लर ने बताया कि ऐसे व्यवहार उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं. रिसर्च में यह भी पाया गया कि स्मोकिंग और खराब नींद मिलाकर 25 प्रतिशत मानसिक गिरावट के लिए ज़िम्मेदार हो सकते हैं. अध्ययन में यह भी देखा गया कि जो लोग उच्च शिक्षा प्राप्त हैं उनमें सोने और जागने के समय में सिर्फ एक घंटे की देरी से भी अगले 10 वर्षों में मानसिक क्षमता में 0.8 अंकों की गिरावट हो सकती है.
नींद की कमी के दिमाग को आराम नहीं
देर रात तक जागने वालों को सुबह जल्दी उठकर काम पर जाना होता है, जिससे उनकी नींद अधूरी रह जाती है. नींद की कमी के कारण दिमाग को पूरा आराम नहीं मिल पाता और इससे सोचने-समझने की क्षमता पर असर पड़ सकता है. अना वेन्ज़लर कहती हैं कि लोगों की जैविक घड़ी उम्र के साथ बदलती है. बच्चे आमतौर पर जल्दी उठने वाले होते हैं लेकिन किशोरावस्था में अधिकतर लोग देर रात सोने लगते हैं. 20 की उम्र के बाद धीरे-धीरे फिर से सुबह उठने की प्रवृत्ति लौटने लगती है और चालीस की उम्र तक अधिकतर लोग ‘मॉर्निंग पर्सन’ बन जाते हैं.
गलत आदतों को बढ़ावा देता
हालांकि, सभी के साथ ऐसा नहीं होता. कई लोग जीवनभर देर रात तक जागने की आदत नहीं छोड़ पाते और यही आदत सामान्य जीवन चक्र से अलग हो जाती है. वेन्ज़लर मानती हैं कि ऐसे लोगों को अपनी जैविक घड़ी के खिलाफ काम करने से बचना चाहिए. वे कहती हैं कि आप कोशिश तो कर सकते हैं कि जल्दी सो जाएं लेकिन अगर उस समय आपके शरीर में मेलाटोनिन (नींद का हार्मोन) नहीं बन रहा है, तो आपको नींद नहीं आएगी. अगर शरीर की जैविक घड़ी के विरुद्ध काम करना मजबूरी बन जाए तो यह मस्तिष्क को पूरा आराम नहीं लेने देता और गलत आदतों को बढ़ावा देता है. वेन्ज़लर का सुझाव है कि देर रात जागने वालों को सुबह के बजाय थोड़ी देर से काम शुरू करने की सुविधा दी जानी चाहिए ताकि वे बेहतर नींद ले सकें और मानसिक सेहत बनाए रख सकें.
Excelled with colors in media industry, enriched more than 16 years of professional experience. Lakshmi Narayan contributed to all genres viz print, television and digital media. he professed his contribution i…और पढ़ें
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