हाइलाइट्स
केवल हाईकोर्ट में 60 लाख 62 हजार 953 मामले लंबित हैं. जबकि सुप्रीम कोर्ट में 69,766 मामले पेंडिंग.
जिला और अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों की कुल संख्या 4 करोड़ 41 लाख 35 हजार 357 हैं.
नई दिल्ली. देश में न्याय वितरण प्रणाली ठप्प पड़ी हुई है और अदालतों में लंबित मामलों की संख्या 14 जुलाई को पांच करोड़ के आंकड़े को पार कर गई है. न्यायपालिका के सभी तीन स्तर अधीनस्थ/जिला अदालतें, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मामलों के निपटारों की संख्या अपेक्षा से कम रहा है. गुरुवार को राज्यसभा में जानकारी दी गई कि देश के अलग-अलग अदालतों में लंबित मामले पांच करोड़ का आंकड़ा पार कर गए हैं. लिखित उत्तर में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि 5.02 करोड़ से अधिक मामले अलग-अलदालतों में हैं. जिनमें सुप्रीम कोर्ट, 25 हाई कोर्ट और अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित हैं.
सुप्रीम कोर्ट में 69 हजार से अधिक मामले पेंडिंग
उन्होंने बताया किभारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इंटीग्रेटेड केस मैनेजमेंट से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक 1 जुलाई तक सुप्रीम कोर्ट में 69,766 मामले लंबित हैं. वहीं राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) की बात करें तो 14 जुलाई तक हाईकोर्ट में 60 लाख 62 हजार 953 मामले लंबित हैं. इसके अलावा जिला और अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों की कुल संख्या 4 करोड़ 41 लाख 35 हजार 357 हैं. सुप्रीम कोर्ट में 69,766 मामले लंबित हैं.
निचली अदालतों में न्यायिक अधिकारियों के 5,388 पद खाली
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक राज्यसभा में केंद्रीय मंत्री ने लंबित मामलों के कारणों को बताते हुए कहा कि मामलों के निपटान के लिए कोई निर्धारित समय-सीमा नहीं है. क्योंकि अदालतें वकीलों की अनुपस्थिति और बार-बार स्थगन का शिकार होती रहती हैं. केंद्र ने न्यायपालिका पर बोझ पर संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए गुरुवार को इन बढ़ती लंबित मामलों के पीछे कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया, जिनमें अदालतों के लिए मामलों के निपटान के लिए समय सीमा की कमी, भौतिक बुनियादी ढांचे की कमी और न्यायाधीशों की रिक्तियां शामिल हैं. निचली अदालतों में न्यायिक अधिकारियों के 5,388 से अधिक और उच्च न्यायालयों में 330 से अधिक पद रिक्त हैं.
केंद्रीय मंत्री ने बताए लंबित मामलों के वजह
इसके अलावा केंद्रीय मंत्री ने अदालतों में मामलों के लंबित होने के लिए कई कारकों जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिनमें पर्याप्त संख्या में न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों की अनुपलब्धता, सहायक अदालत के कर्मचारियों और भौतिक बुनियादी ढांचे, शामिल तथ्यों की जटिलता, साक्ष्य की प्रकृति, बार, जांच एजेंसियों, गवाहों और वादियों जैसे हितधारकों का सहयोग शामिल है.
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Tags: Rajyasabha, Supreme Court
FIRST PUBLISHED : July 21, 2023, 06:30 IST