जुगल कलाल/डूंगरपुर. डूंगरपुर में 15 सालों से भीलवाड़ा के दो भाईयों ने अपने समोसे व कचौड़ी से यहां के लोगों को दीवाना बना रखा है. जब भी डूंगरपुर के लोगों को सुबह उठकर समोसा और कचौड़ी खाने का मन करता है तो उनके जहन में सबसे पहला नाम आता वो है भीलवाड़ा के इन दो भाईयों का. इनकी कचौड़ी और समोसे का नाम सुनते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है. वहीं, इनके पोहे की भी जबरदस्त डिमांड है.
वर्ष 2007 भीलवाड़ा के गोविंद जोशी और गोपाल जोशी डूंगरपुर आए और अपने साथ समोसे और कचौड़ी का जायका लेकर पहुंचे और साबेला बाई पास एक छोटी लॉरी लगाकर कचौड़ी और समोसा बेचना शुरू किया. वहीं, सुबह 6 बजे 9 बजे तक पोहे. धीरे-धीरे उनका समोसे-कचौड़ी का स्वाद लोगों की जुबां पर चढ़ता चला गया. आज आलम ये है कि इनके समोसे-कचौड़ी खाने के लिए लोगों की भीड़ लगती है.
रोजाना बिकते 350 से ज्यादा समोसे -कचौड़ी
गोपाल जोशी बताते है कि, जब उन्होंने डूंगरपुर में समोसे और कचौड़ी बचने की शुरुआत की तो दिन की मुश्किल से 10 से 15 बिकती थी. धीरे-धीरे बिक्री में भी तेजी आने लगी. आज आलम ये है कि रोजाना करीब 350 समोसा और कचौड़ी निकल जाती है. आगे गोपाल बताते है की वैसे तो समोसे कचौड़ी ख़ास कुछ स्पेशल तो नहीं है. लेकिन मूंग दाल को उबालने के बाद बेसन, मालवी लाल मिर्च और घर में तैयार गरम मसाले डालकर घर पर ही कचौड़ी का मसाला तैयार किया जाता है. कचौड़ी को मूंगफली के तेल में मध्यम आंच पर तल कर तैयार किया जाता है. इसमें कोई खास मसाला नहीं है. बस डूंगरपुर वासियों के प्यार ने कचौड़ी को खास बना दिया है.
समोसे-कचौड़ी खाने के लिए आना होगा यहां
अगर आप भी भीलवाड़ा के इन दो भाइयों के हाथ कि समोसा-कचौड़ीखाना चाहते है. तो आपको साबेला बाईपास के रोटरी क्लब के पास होना होगा. यहां पर आपको 12 रुपये समोसा कचौड़ी और पोहा मिलेगा. वहीं, इनकी लॉरी सुबह 5 बजे से शाम की 5 बजे तक खुली रहती है.
.
FIRST PUBLISHED : July 07, 2023, 13:00 IST