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धूप की भाषा-सी
खिड़की में मत खड़ी होओ प्रिया!
शॉल-सा
कंधों पर पड़ा यह फाल्गुन
चैत्र-सा तपने लगेगा!
केश सुखा लेने के बाद
ढीला जूड़ा बना
तुम तो लौट जाओगी,
परंतु तुम्हें क्या पता, कि
तुम—
इस गवाक्ष आकाश और
बालुकणों जैसे रिसते
इस नि:शब्द समय से कहीं अधिक
मुझमें एक मर्म
एक प्रसंग बन कर लिखी जा चुकी हो
प्रिया!
इस प्रकार लिखा जाना ही पुरालेख होता है
हवा, तुम्हारा आंचल
मुझमें मलमली भाव से टांक गई है
जैसे कि पहली बार
मेरे आकाश को मंदाकिनी मिली हो
भले ही अब यहां कुछ भी न हो
फिर भी
तुम्हारी वह चीनांशुक-पताका
कैसी आकुल पुकार-सी लगती है
जैसे कि उस पुकार पर जाना
इतिहास में जाना है—
जहां प्रत्येक पत्थर पर
अधूरे पात्र
और आकुल घटनाएं
अपनी भाषा की तलाश में कब से थरथरा रही हैं
इससे पूर्व, कि
यह उजाड़ रूपमती महल लगे
समेट लो अपनी यह वैभव-मुद्रा
इसलिए धूप की भाषा-सी
खिड़की में मत खड़ी होओ प्रिया!
इतिहास में जाकर फिर लौटना नहीं होता!
(हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार नरेश मेहता का जन्म 15 फरवरी, 1922 को मध्य प्रदेश के शाजापुर में हुआ था. नरेश मेहता ने साहित्य की सभी विधाओं में कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, संस्मरण और अनुवाद आदि में रचनात्मक सहयोग किया है. ‘आखिर समुद्र से तात्पर्य’, ‘पिछले दिनों नंगे पैर’, ‘देखना एक दिन’ और ‘तुम मेरा मौन हो’ नरेश मेहता के चर्चित काव्य संग्रह हैं. साहित्य में विशेष योगदान के लिए नरेश मेहता को साहित्य अकादमी पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 22 नवंबर, 2000 को नरेश मेहता इन दुनिया को अलविदा कर गए.)
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Tags: Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Literature, Poem
FIRST PUBLISHED : April 01, 2023, 18:31 IST
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