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UP Nikay Chunav 2023: यूपी निकाय चुनाव 2023 में मुस्लिम वोटों को लुभाने के लिए इस बार हर राजनीतिक दल पूरी कोशिश कर रहा है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने 17 में से 11 मेयर सीटों के लिए मुस्लिम प्रत्याशी देकर इस मामले में लीड लेने की कोशिश की है। वहीं मुस्लिम समाज को अपना आधार वोट बैंक मानने वाली समाजवादी पार्टी इस ओर से खुद को निश्चिंत दिखाने की कोशिश कर रही है।
हालांकि राजनीति के जानकारों का कहना है कि निकाय चुनाव के नतीजों में यह देखना दिलचस्प होगा कि मुस्लिम वोटों को लेकर किसकी दावेदारी में ज्यादा दम है। मुस्लिम समाज किस पर अपना ज्यादा भरोसा दिखाता है। ज्यादातर मुस्लिम उम्मीदवार देने वाली बसपा के प्रति या फिर परम्परागत रूप से मुस्लिम समाज को अपना आधार वोटर मानने वाली समाजवादी पार्टी के प्रति। वहीं पसमांदा मुसलमानों की पॉलिटिक्स शुरू कर और पाषर्दी के चुनाव में कई मुस्लिम उम्मीदवार खड़े कर बीजेपी ने भी इस मोर्चे पर कम्पटीशन बढ़ा दिया है।
मुसलमानों वोटों को अपने पाले में करने की सबसे बड़ी कोशिश बसपा सुप्रीमो मायावती की ओर से दिखती है। पिछले विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद ही मायावती ने अपने पहले संदेश में मुस्लिम वोटरों के एकतरफा समाजवादी पार्टी की ओर जाने को हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण और बीजेपी की जीत की वजह बताया था। मायावती तभी से कह रही है कि यूपी में बीजेपी को हराने की ताकत उन्हीं के पास है।
वेस्ट से ईस्ट यूपी तक मुस्लिम समाज के नेताओं को पार्टी से जोड़कर वह मुसलमानों को बीएसपी में आने के लिए प्रेरित करती दिख रही हैं। वहीं नगर निगम चुनाव में ज्यादा मुसलमानों को टिकट देकर भी उन्होंने इस कोशिश को आगे बढ़ाया है। दरअसल, मायावती निकाय चुनाव के बहाने यूपी में दलित-मुस्लिम समीकरणों की नई सोशल इंजीनियरिंग की परख कर रही हैं। यह दांव यदि सफल होता है तो वह आगामी लोकसभा चुनाव में और अधिक संख्या में मुस्लिम नेताओं को टिकट दे सकती हैं।
वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में भी मुसलमानों के ज्यादातर वोट अपनी झोली में करने में सफल रही सपा अभी तक अपने एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण को लेकर आत्मविश्वास से भरी दिखती है लेकिन बदलते हालात में उसे मुस्लिम वोटों को सहेजने के लिए कब कड़ी मश्क्कत करनी पड़ जाए कहा नहीं जा सकता।
सपा को भी इस बात का अहसास है। सूबे के राजनीतिक हालात को नजदीक से समझने वालों का मानना है कि विधानसभा चुनाव में भले सपा को अल्पसंख्यकों का व्यापक समर्थन मिला लेकिन लोकसभा चुनाव में हालात दूसरे बन रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ कांग्रेस अच्छी सक्रियता दिखा रही है तो राज्य में बसपा मुस्लिम वोटरों पर फोकस कर रही है।
मुस्लिम वोटर के मन में क्या है
फिलहाल जानकार मान रहे हैं कि मुस्लिम मतदाता अभी मौजूदा हालात को लेकर असमंजस में हैं। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 20 से 21 प्रतिशत तक है। कहा जाता है कि लोकसभा की 20 सीटों पर वोटर जीत-हार में मुस्लिम वोटों की बड़ी भूमिका होती है। यही वजह है कि सूबे की सभी लोस सीटें जीतने के लक्ष्य का ऐलान कर चुकी बीजेपी भी इस बार मुस्लिमों को रिझाने में जुटी है।
पार्टी पसमांदा (पिछड़े) मुसलमानों को अपने पक्ष में लाने की कवायद कर रही है। कुल मिलाकर मुस्लिम वोटरों के सामने निकाय से लेकर लोकसभा चुनाव तक हर राजनीतिक दल खुद को बेहतर विकल्प के पेश करने की कोशिश करेगा। अब वोटर किस पर भरोसा जताता है, यह देखने वाली बात होगी।