Tuesday, December 17, 2024
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नीतीश कुमार के पालाबदल के बाद अब इन दलों से भी डरी कांग्रेस, साथ छोड़ने की सता रही चिंता


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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने डेढ़ साल के अंतराल में फिर से पाला बदल लिया है। विपक्ष के INDIA अलायंस के गठन में अहम भूमिका निभाने के बाद भी जिस तरह नीतीश कुमार ने रातोंरात पाला बदला है, उससे कांग्रेस जैसे दलों की नींद उड़ गई है। कांग्रेस, आरजेडी समेत INDIA अलायंस के बड़े दलों को लगता था कि बिहार, महाराष्ट्र और बंगाल जैसे राज्यों में विपक्ष मजबूत रहेगा। लेकिन 2024 की लड़ाई शुरू होने से पहले ही इन राज्यों से बुरे संकेत मिलने लगे हैं। हिंदी पट्टी में भाजपा पहले से ही बेहद मजबूत है। इसमें एकमात्र राज्य बिहार था, जहां से एक चुनौती मिल सकती थी।

अब नीतीश कुमार के पालाबदल से भाजपा सीधे तौर पर फायदे की स्थिति में है। यही नहीं अब महाराष्ट्र को लेकर भी संकट की स्थिति है। यहां उद्धव गुट की शिवसेना और कांग्रेस में सीटों को लेकर मतभेद है। यहां तक कि दक्षिण मुंबई सीट पर दावेदारी ऐसी है कि अंत में मिलिंद देवड़ा जैसे नेता ने कांग्रेस को ही छोड़ दिया और शिंदे गुट में चले गए। अब कांग्रेस के आगे चैलेंज यह है कि कैसे वह उद्धव गुट को इलेक्शन के बाद भी साधे रहे। इसके अलावा बहुजन विकास अघाड़ी भी कठिन बारगेनिंग कर रही है, जो प्रकाश आंबेडकर की पार्टी है। 

दरअसल कांग्रेस के रणनीतिकारों में यह चर्चा भी है कि उद्धव ठाकरे का खेमा कभी भी भाजपा के संग जा सकता है। ऐसी स्थिति कांग्रेस को असहज करने वाली होगी। यही नहीं कांग्रेस के लिए बंगाल में भी स्थिति बेहद कठिन हो गई है। यहां टीएमसी ने कांग्रेस से अलग ही चुनाव लड़ने की बात कही है। इसके अलावा वामदलों से भी अब तक सहमति नहीं बन पाई है। पंजाब में आम आदमी पार्टी अलग ही लड़ेगी और यूपी में भी अखिलेश यादव बेहद सख्त लाइन ले चुके हैं। ऐसे में कोई हैरानी की बात नहीं होगी यदि अगले कुछ समय में जेडीयू के अलावा कुछ और दल INDIA अलायंस ही छोड़कर चले जाएं।

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प्रकाश आंबेडकर को तो रामदास आठवले खुला ऑफर भी दे चुके हैं। उन्होंने पिछले दिनों कहा था कि यदि आंबेडकर INDIA अलायंस में आते हैं तो उन्हें अकोला सीट दी जा सकती है। यही नहीं उनके स्वागत में तो मैं अपना मंत्री पद भी दे सकता हूं। हालांकि प्रकाश आंबेडकर भाजपा के तीखे आलोचक रह चुके हैं। फिर भी महाराष्ट्र में कांग्रेस के लिए स्थिति मुश्किल है। इसकी एक वजह यह भी है कि एनसीपी बंटी हुई है। शरद पवार गुट सीटें तो ज्यादा चाहता है, लेकिन उसके पास ताकत कम है। शरद पवार के भतीजे अजित पवार भाजपा के संग हैं।



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