Monday, July 8, 2024
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नेपाल के जनकपुर का नौलखा मंदिर! टीकमगढ़ की महारानी से क्या है इसका कनेक्शन?


टीकमगढ़. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमाओं में बंटे बुंदेलखंड इलाके से भगवान राम के वनवास के समय के कई ऐतिहासिक प्रसंग जुड़े हैं. चंदेल और बुंदेला राजाओं के वर्चस्व वाली बुंदेलखंड की रियासतों में राजाओं की वीरता के किस्से जितने चर्चित हैं, उतने ही उनके धार्मिक होने की निशानियां भी बिखरी पड़ी हैं. ओरछा टीकमगढ़ राजवंश इन्हीं में से एक है जो मुगलकाल से अंग्रेजों की गुलामी के समय भी अपनी संस्कृति और धर्म की पताका को ऊंचा किए रहा. इस राजपरिवार की एक रानी ने अयोध्या के राजा राम को ही ओरछा आने पर विवश किया, तो दूसरी रानी ने माता सीता के मायके पड़ोसी देश नेपाल के जनकपुर में भव्य नौलखा मंदिर का निर्माण कराया. यह मंदिर नेपाल के सबसे खूबसूरत और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है.

टीकमगढ़ राजवंश की भगवान राम में गहरी आस्था रही है. इन्होंने अयोध्या, ओरछा और जनकपुर में भव्य मंदिरों का निर्माण कराया. इतिहासकार बताते हैं कि त्रेता युगकालीन जनकपुर का वेद पुराणों में जिक्र मिलता है, लेकिन इस जगह की पहचान होना काफी मुश्किल था. करीब 400 साल पहले महात्मा सूरकिशोर दास ने राजा जनक के जनकपुर का पता लगाया, जो सीता के बचपन और स्वयंवर का साक्षी रहा है.

टीकमगढ़ क्षत्रिय सभा के अध्यक्ष और इतिहास में गहरी रुचि रखने वाले पुष्पेंद्र सिंह चौहान कहते हैं, 16वीं सदी शताब्दी में ओरछा के शासक मधुकरशाह की महारानी गणेश कुंवर अयोध्या से रामलला को ओरछा ले आईं. इसके 200 साल बाद जनकपुर में जानकी मंदिर बनवाने का जिम्मा टीकमगढ़ राजपरिवार में अगली पीढ़ी की महारानी ने संभाल लिया. 1896 से टीकमगढ़ की महारानी सवाई महेन्द्र प्रताप सिंह बुंदेला की पत्नी वृषभानु कुमारी ने नेपाल के जनकपुर में मंदिर निर्माण शुरू करा दिया, जिसके नौलखा नाम से पहचाने जाने की भी कहानी रोचक है.

पुत्र प्राप्ति की कामना से महारानी ने कराया मंदिर निर्माण
पुष्पेंद्र सिंह चौहान कहते हैं, ‘टीकमगढ़ महाराज महेन्द्र प्रताप सिंह और महारानी वृषभानु कुमारी के संतान नहीं थी. पुत्र प्राप्ति की कामना करते हुए महारानी वृषभानु कुमारी ने अयोध्या में ‘कनक भवन मंदिर’ का निर्माण करवाया था, लेकिन पुत्र प्राप्त न होने पर अपने गुरु की आज्ञा से 1896 में उन्होंने देवी सीता का मंदिर जनकपुर में बनवाने का संकल्प लिया. 1896 ई. में जानकी मंदिर का निर्माण करवाना शुरू कर दिया और इसके एक वर्ष में ही उनको पुत्र की प्राप्ति हो गई.’

कैसे पड़ा मंदिर का नौलखा नाम?
वृषभानु कुमारी के वंशज और रिश्ते में उनके नाती विश्वजीत सिंह कहते हैं, भगवान राम की अर्धांगिनी देवी सीता के जनकपुरी में बन रहे मंदिर का निर्माण कराने के लिए टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी ने नौ लाख रुपए खर्च करने का संकल्प लिया था. इसके लिए पहले जनकपुर गांव को बसाया गया, क्योंकि वह वीरान क्षेत्र था. फिर वहां मंदिर का निर्माण शुरू कराया. नौ लाख खर्च करने के संकल्प पर इस मंदिर का नाम भी ‘नौलखा’ पड़ गया. विश्वजीत सिंह बुंदेला कहते हैं, लेकिन इसके निर्माण पर 18 लाख से भी अधिक की धनराशि खर्च हुई थी और इसका निर्माण भी कई साल चलता रहा.’

मंदिर के अधूरे निर्माण के बीच ही चल-बसीं महारानी
इतिहास में गहरी रुचि रखने वाले पुष्पेंद्र सिंह बताते हैं, ‘जानकी मंदिर के निर्माण काल में ही वृषभानु कुमारी का निधन हो गया था. उनके निधन के बाद वृषभानु कुमारी की बहन नरेंद्र कुमारी ने मंदिर का निर्माण कार्य पूरा करवाया. बाद में महाराज प्रताप सिंह ने नरेंद्र कुमारी से विवाह कर लिया. जानकी मंदिर 1911 में पूरी तरह बनकर तैयार हो गया. इसमें मूर्ति स्थापना पहले ही कर पूजा प्रारंभ कर दी गई थी.’

मंदिर का खर्च उठाने नेपाल में खरीदी गई जमीन
इतिहासकार कहते हैं कि जनकपुर में जानकी जी का भव्य मंदिर तो बनकर खड़ा हो गया था, लेकिन इतने विशाल मंदिर का प्रबंधन बनाए रखना आसान नहीं था. जब मंदिर के खर्च की बात सामने आई तो टीकमगढ़ महाराज ने नेपाल में मंदिर के नाम पर काफी जमीन दे दी और यही जमीन मंदिर की आमदनी का प्रमुख स्रोत बनी रही. अब यहां लाखों श्रद्धालु पहुंचने लगे हैं.

हिन्दू-राजपूत वास्तुकला की बेहतरीन धरोहर है नौलखा
नेपाल स्थित जानकी मंदिर एक ऐतिहासिक स्थल होने के साथ हिंदुओं की आस्था का प्रतीक है. यह हिन्दू देवी सीता को समर्पित है. मंदिर का निर्माण हिन्दू-राजपूत वास्तुकला पर आधारित है. यह नेपाल में सबसे महत्वपूर्ण राजपूत स्थापत्यशैली का उदाहरण है, जो जनकपुर धाम के नाम से भी जाना जाता है. यह मंदिर 4860 वर्ग फुट क्षेत्र में निर्मित है. मन्दिर परिसर और उसके आसपास 115 सरोवर और कुंड हैं, जिनमें गंगासागर, परशुराम कुंड एवं धनुष-सागर अत्याधिक पवित्र स्थल माने जाते हैं.

Tags: Bundelkhand, Hindu Temple, History of India, Nepal Temple



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