भोजपुरी की कहावत है.. ‘न खेलब, न खेले देब, खेलिए बिगाड़ब’। इस कहावत का जिक्र पीएम मोदी ने संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान कांग्रेस को निशाने पर लेने के लिए भी किया था। इसका मतलब है न खेलेंगे, न खेलने देंगे, खेल बिगाड़ेंगे। कुछ ऐसा ही आने वाले लोकसभा चुनाव में बसपा प्रमुख मायावती की रणनीति लगती है। विपक्ष में होने के बाद भी मायावती मोदी सरकार के खिलाफ बने इंडिया गठबंधन में शामिल नहीं हुईं और अकेले ही चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। इस बीच पिछले तीन दिनों में उन्होंने पांच प्रत्याशियों का ऐलान किया है। इन पांच में से चार मुस्लिम प्रत्याशी हैं।
हर चुनाव में मुस्लिम वोट भाजपा के खिलाफ एकमुश्त पड़ते रहे हैं। अगर किसी दल से कोई मुस्लिम प्रत्याशी नहीं है तो यह वोट सीधे सपा को ही जाता रहा है। जहां भी बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारा है उसका खामियाजा सपा को ही भुगतना पड़ा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में देखने को मिला था। यहां भाजपा प्रत्याशी ने सपा को केवल डेढ़ लाख मतों से हराया था। जबकि बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी को ढाई लाख से ज्यादा वोट मिल गए थे।
विधानसभा चुनाव में भी बसपा की इसी रणनीति का असर दिखाई दिया था। बसपा भले ही 403 में से केवल एक सीट जीत सकी थी लेकिन सपा को हराने में अहम हो गई थी। इस बार भी कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है। बसपा ने इसी औसत से मुस्लिम प्रत्याशियों को उतारा तो सपा-भाजपा के बीच दिख रही सीधी टक्कर त्रिकोणीय हो जाएगी और बसपा भले न जीते लेकिन सपा की हार तय कर सकती है।
बसपा ने कन्नौज से पूर्व सपा नेता अकील अहमद, पीलीभीत से पूर्व मंत्री अनील अहमद खां फूल बाबू, अमरोहा से मुजाहिद हुसैन और मुरादाबाद से इरफान सैफी को मैदान में उतारा है। सभी मुस्लिम प्रत्याशी उतारने को मायावती की अखिलेश यादव के लिए न खेलब न खेले देब वाली रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
बताया जा रहा है कि बसपा ने यूपी की सभी सीटों पर उम्मीदवारों की सूची लगभग फाइनल कर ली है। अधिकतर मंडल प्रभारियों को इनकी सूची भी सौंप दी गई है। कांशीराम की जयंती पर 15 मार्च से मंडल स्तर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम में इनको बतौर लोकसभा प्रभारी घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही उन्हें चुनावी तैयारियों में जुटा दिया जाएगा। पहले चरण में सभी सीटों के लिए प्रभारी बनाए जाएंगे उसके बाद प्रदेश स्तर से उम्मीदवारों की सूची विधिवत जारी की जाएगी।
बसपा वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव सपा के साथ गठंधन पर लड़ी थी। सपा के साथ गठबंधन पर उसके हिस्से में 38 सीटें आई थीं। इनमें से वह 10 सीटों अंबेडकरनगर, अमरोहा, बिजनौर, गाजीपुर, घोसी, जौनपुर, लालगंज, नगीना, सहारनपुर और श्रावस्ती जीती थी। इनमें से 27 सीटों पर वह नंबर दो पर रही और एक सीट फतेहपुर सीकरी में नंबर तीन पर रही है। जातीय समीकरण, वोटों की गणित और परफार्मेंस के आधार पर उम्मीदवार चयन का मानक रखा गया था। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसके आधार पर उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप दिया है।
बसपा सुप्रीमो ने इस बार कांशीराम की जयंती मंडल स्तर पर बनाने का निर्देश दिया है। मंडल प्रभारियों को जिम्मेदारी दी गई है कि इसमें कॉडर के सभी नेताओं को बुलाया जाएगा और उनके समाने ही लोकसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के नाम बतौर प्रभारी घोषित किए जाएंगे। इसके साथ ही मंडल के सहायक प्रभारियों को लोकसभा प्रभारी के साथ गांव-गांव कॉडर कैंप करने का निर्देश दिया जाएगा। इसका मकसद बसपा प्रभारियों को गांव-गांव तक अपने दलित विरादरी के लोगों तक पहुंच बनाना है, जिससे चुनाव के दौरान उन्हें वोट मांगने में किसी तरह की कोई असुविधा न होने पाए।
घर वापसी लोगों को भी टिकट
पार्टी सूत्रों का कहना है कि बसपा छोड़ कर गैर दलों में जाने वाले कुछ नेताओं ने घर वापसी की है। इनमें से कई पूर्व मंत्री भी हैं। बसपा घर वापसी करने वालों को भी लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बना रही है। इनमें से अधिकतर नेता दलित, ओबीसी और मुस्लिम हैं। ये ऐसे नेता हैं जिनका अपने-अपने क्षेत्रों में जनाधार है। बसपा छोड़कर अन्य दलों में इसलिए गए थे कि कुछ होगा, लेकिन अच्छा न होने पर घर वापसी कर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की स्वयं भी इच्छा जताई है।