Thursday, February 6, 2025
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पंडित नेहरू के पदचिह्नों पर PM मोदी, दोहराएंगे 1947 की कहानी, जानें- ‘सेंगोल’ का सफर


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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को नई संसद भवन का उद्घाटन करने वाले हैं। इस पर कांग्रेस समेत 19 विपक्षी दलों ने रार ठान रखी है और उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार का ऐलान किया है। विपक्षी दलों की मांग है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से नई संसद भवन का उद्घाटन कराया जाय। इस बीच पीएम मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के पदचिह्नों पर चलते हुए 1947 जैसी रस्म पूरी करेंगे। वह नई संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर एक सुनहरा राजदंड (तमिल में ‘सेंगोल’) ग्रहण करेंगे।

1947 में सत्ता हस्तांतरण को चिह्नित करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने तिरुवदुथुरै के ‘अधिनम’ के उप-पादरी से ‘सेन्गोल’ प्राप्त किया था। इस बार, 20 ‘अधिनम’ (तमिलनाडु में गैर-ब्राह्मण शैव मठ) के पुजारी उस अनुष्ठान को संपन्न करेंगे। ये पुजारी 20 मिनट के ‘होमम’ या ‘हवन’ के बाद सुबह 7.20 बजे पीएम मोदी को ‘सेन्गोल’ सौंपेंगे। इसके बाद प्रधानमंत्री इसे स्पीकर के आसन के दाईं ओर एक आसन पर स्थापित करेंगे।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “‘सेन्गोल’ निष्पक्ष और न्यायसंगत शासन के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है। यह लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास ‘अमृत काल’ के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में चमकेगा, एक ऐसा युग जो नए भारत को दुनिया में अपना सही स्थान लेते हुए देखेगा।” शाह ने कहा, “सेंगोल को संग्रहालय में रखना ठीक नहीं है। यह अंग्रेजी हुकूमत से सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक है। यह अमृतकाल का प्रतिबिम्ब होगा।”

1947 में भारत के अंतिम गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी की सलाह पर ‘सेंगोल’ बनाया गया था, जब नेहरू ने अपने मंत्रिमंडल से पूछा था कि अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण को कैसे चिह्नित किया जाना चाहिए। तब राजाजी ने राजा के राज्याभिषेक पर राजा को राजदंड सौंपने की ‘राजगुरु’ की प्राचीन चोल प्रथा का उल्लेख किया था। इसके बाद मद्रास के जौहरी वुम्मुदी बंगारू चेट्टी को चार सप्ताह में ‘सेन्गोल’ बनाने का काम सौंपा गया था। मूल राजदंड के निर्माण में शामिल रहे दो व्यक्तियों- वुम्मिदी एथिराजुलु (96) और वुम्मिदी सुधाकर (88) के भी नई संसद भवन के उद्घाटन समारोह में शामिल होने की उम्मीद है।

14 अगस्त 1947 को वायसराय माउंटबेटन ने राजदंड को तमिल पंडितों को सौंप दिया था, जिन्होंने इसे शुद्ध किया और 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि में जब ऐतिहासिक “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” भाषण देने के लिए प्रधान मंत्री नेहरू संसद भवन के लिए रवाना होने वाले थे तो उससे ठीक पहले उन्हें उनके घर पर सेंगोल सौंप दिया गया था। दशकों तक, उस राजदंड को भुला दिया गया। यह इलाहाबाद संग्रहालय में एक धूल भरे बक्से में पड़ा था, जिस पर गलत तरीके से नेहरू को उपहार में दी गई सोने की छड़ी के रूप में लेबल किया गया था।

अगस्त 1947 में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिया गया रस्मी राजदंड (सेंगोल) इलाहाबाद संग्रहालय की नेहरू दीर्घा में रखा गया था और इसे संसद के नये भवन में स्थापित करने के लिए दिल्ली लाया गया है। चांदी से निर्मित और सोने की परत वाले इस ऐतिहासिक राजदंड को 28 मई को लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के पास स्थापित किया जाएगा। 

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि राजदंड अंग्रेजों से भारत को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक है, ठीक वैसे ही जैसे तमिलनाडु में चोल वंश के दौरान मूल रूप से इसका इस्तेमाल एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता हस्तांतरण के लिए किया जाता था। शाह ने बाद में एक वेबसाइट भी लॉन्च की, जिसमें लघु वृत्तचित्रों के साथ-साथ राजदंड के महत्व से संबंधित पृष्ठभूमि की जानकारी है। 

जब प्रधानमंत्री विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए आसन पर राजदंड स्थापित करेंगे, तब तिरुवदुथुरै ‘अधीनम’ श्री ला श्री अंबालावन देसिका परमाचार्य स्वामीगल सहित कई गणमान्य व्यक्ति और मठ प्रमुख सदन के आसन पर खड़े होंगे। ‘अधिनाम’ के कम से कम 31 सदस्य चार्टर्ड उड़ानों से दो जत्थों में नई दिल्ली के लिए चेन्नई से रवाना होंगे। 28 मई को होने वाले समारोह से पहले मोदी 7 लोक कल्याण मार्ग स्थित अपने आवास पर उन्हें सम्मानित भी करेंगे।



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