Benefits of Stubble: राजधानी दिल्ली-एनसीआर की हवा फिर से बिगड़ गई है. दिल्ली में एक दिन की राहत के बाद बुधवार को वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई फिर 200 के पार जाते हुए 243 पर पहुंच गया. हालांकि, हवा की रफ्तार ज्यादा रहने के कारण एक्यूआई ‘बहुत खराब’ की श्रेणी में नहीं पहुंच पाया. वहीं, बृहस्पतिवार यानी आज दिल्ली की हवा आज कुछ और खराब होते हुए एक्यूआई 256 पर पहुंच गया. हर साल अक्टूबर -नवंबर में दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के लिए त्योहारों पर होने वाली आतिशबाजी के साथ ही हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में जलाई जाने वाली पराली को को जिम्मेदार माना जाता है.
दिल्ली के लिए वायु गुणवत्ता प्रारंभिक चेतावनी सिस्टम के मुताबिक, अगले दो दिन यानी 28 अक्टूबर तक वायु गुणवत्ता सूचकांक के ‘खराब’ श्रेणी में ही रहने की आशंका है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के जुटाए आंकड़ों के मुताबिक, बुधवार को पंजाब में पराली जलाने की 398, हरियाणा में 58 व उत्तर प्रदेश में 30 घटनाएं हुईं. वहीं, मंगलवार को हरियाणा में 70 और उत्तर प्रदेश में धान के अवशेष जलाने की 38 घटनाएं हुई हैं. हर साल सर्दी के मौसम की शुरुआत में पराली जलाना दिल्ली-एनसीआर समेत कई बड़े शहरों के लिए मुसीबत बना हुआ है. ऐसे में कई राज्यों की सरकारें पराली जलाने पर पाबंदी लगाने की बात कर रही हैं. वहीं, कई देश ऐसे भी हैं, जो पराली को अपने लिए फायदे में तब्दील कर चुके हैं.
दर्जनों देश ले रहे हैं पराली के फायदे
भारत में जो पराली मुसीबत बनी हुई है, वही जापान और चीन समेत दुनिया के 62 देशों के लिए फायदे का सौदा साबित हो चुकी है. इन देशों के पराली से फायदा लेने के तरीकों के बारे में जानने से पहले समझते हैं कि पराली है क्या? दरअसल, धान की फसल की कटाई के दौरान किसान जड़ से ऊपर का कुछ हिस्सा छोड़ देते हैं. जड़ समेत धान के छूटे हुए इसी हिस्से को पराली कहा जाता है. किसान नई फसल के लिए खाली खेत तैयार करने के लिए पराली में आग लगा देते हैं. इससे खेत जल्दी खाली हो जाता है और कोई खर्चा भी नहीं होता है. लेकिन, इससे वायु प्रदूषण बढ़ जाता है.
एक टन पराली को जलाने पर करीब 1,500 किग्रा कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है.
कितना खतरनाक है पराली का धुंआ
किसान जिस पराली को थोड़ी सी बचत और जल्दी के लिए यूं ही खेतों में जला देते हैं, उससे भयंकर प्रदूषण फैलता है, जो लोगों के लिए घातक साबित हो सकता है. विशेषज्ञों के मुताबिक, एक टन पराली को जलाने पर करीब 1,500 किग्रा कार्बन डाइऑक्साइड, तीन किग्रा पार्टिकुलेट मैटर, 60 किग्रा कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन होता है. इन गैसों के कारण लोगों को सबसे ज्यादा फेफड़ों, दिल और आंखों से जुड़ी समस्याएं होती हैं. इसकी वजह से साइनस ट्रिगर होना, अस्थमा का बढ़ना समेत कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां तक हो सकती हैं.
भारत के पड़ोसी देश कैसे ले रहे फायदा?
भारत ही नहीं, हमारे पड़ोसी देश चीन व बांग्लादेश और इंडोनेशिया भी चावल की खेती जमकर करते हैं. इसके अलावा जापान, थाइलैंड और मलेशिया समेत दुनिया के दर्जनों देश चावल पैदा करते हैं. अब सवाल ये उठता है कि ये सभी देश पराली की समस्या से कैसे निपट रहे हैं क्योंकि भारत और पाकिस्तान को छोड़कर बाकी किसी देश से इससे प्रदूषण की शिकायतें सुनने में नहीं आती हैं. दरअसल, दुनिया के 62 चावल उत्पादक देशों ने पराली के दूसरे उपयोगों पर जोर दिया और समस्या से छुटकारा पा लिया. चीन ने करीब 20 साल पहले पराली जलाने पर सख्त रुख अपना लिया था. अब वहां पराली को खत्म करने के प्राकृतिक तरीकों को अपनाया जा चुका है. वहीं, चीन के कई प्रांतों में इससे बिजली बनाई जा रही है. जापान में पराली को जानवरों के लिए चारे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.
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बायो फ्यूल बनाने से लेकर मशरूम की पैदावार
पराली से कई देशों में खाद बनाकर कृषि भूमि की उत्पादकता बढ़ाई जा रही है. कुछ देशों में पराली से पेट्रोल का विकल्प बायो इथेनॉल बनाकर बीएमडब्ल्यू और मर्सिडीज जैसे तमाम वाहनों में इस्तेमाल किया जा रहा है. इंडोनेशिया, थाइलैंड, मलेशिया समेत कई देशों में सेहत के लिए फायदेमंद और चेहरे पर रौनक लाने वाली मशरूम पराली पर ही उगाई जा रही है. कई देशों में पराली की रीसाइक्लिंग भी की जा रही है.

पराली से कई देशों में खाद बनाकर कृषि भूमि की उत्पादकता बढ़ाई जा रही है.
भारत भी बेहतर इस्तेमाल पर कर रहा काम
भारत में भी अब पराली की समस्या से निपटने के उपायों और दूसरे इस्तेमालों पर तेजी से काम किया जा रहा है. धीरे-धीरे प्लास्टिक से बनी स्ट्रॉ की जगह पराली की स्ट्रॉ ले रही हैं. वहीं, कुछ कंपनियों ने पराली को रीसाइकिल कर फर्नीचर बनाना भी शुरू कर दिया है. इसके अलावा पराली को एंजाइम्स के जरिये खत्म करने का एक प्रयोग साल 2021 में किया जा चुका है. इसके नतीजे काफी अच्छे निकले थे. इस प्रयोग में पंजाब और हरियाणा के हजारों किसानों ने हिस्सा लिया था. प्रयोग के तहत पराली पर खास एंजाइम्स का छिड़काव किया गया. इससे पराली 20 से 25 दिन के भीतर खाद में तब्दील हो जाती है.
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FIRST PUBLISHED : October 26, 2023, 10:20 IST