भारतीय हॉकी टीम को विश्व कप की प्रबल दावेदार बताते हुए पाकिस्तान के ओलंपिक और विश्व कप विजेता महान सेंटर फॉरवर्ड हसन सरदार ने कहा कि भारत को घरेलू मैदान पर खेलने का अतिरिक्त फायदा मिलेगा। विश्व कप 13 से 29 जनवरी तक भुवनेश्वर और राउरकेला में खेला जाएगा, जिसमें भारत को ग्रुप डी में इंग्लैंड, स्पेन और वेल्स के साथ रखा गया है।
सरदार ने पाकिस्तान से भाषा से बातचीत में कहा, ”मैने टोक्यो ओलंपिक से पहले भी कहा था कि यह भारतीय टीम पदक जीत सकती है। उन्होंने कांस्य पदक जीता, लेकिन शीर्ष चार टीमों में बहुत ज्यादा फर्क नहीं होता।” मुंबई विश्व कप 1982 में 11 गोल करके पाकिस्तान की खिताबी जीत के सूत्रधार और ‘प्लेयर आफ द टूर्नामेंट’ रहे सरदार लॉस एंजिलिस ओलंपिक 1984 में भी पाकिस्तान को स्वर्ण पदक दिलाने वाले नायकों में से थे।
दिल्ली में 1982 एशियाई खेलों के फाइनल में भारत को हराने में उनकी हैट्रिक की अहम भूमिका थी। उन्होंने कहा, ”भारतीय टीम के पास फोकस है और घरेलू मैदान पर खेलने का उसे फायदा भी मिलेगा। मैने ओडिशा में हॉकी देखी है और वहां खेलने का अलग ही माहौल होता है। मैं ओडिशा के मुख्यमंत्री (नवीन पटनायक) को खास तौर पर बधाई देना चाहता हूं।”
सरदार ने माना कि भारत के पास हरमनप्रीत सिंह के रूप में शानदार ड्रैग फ्लिकर है और फॉरवर्ड लाइन भी मजबूत है। उन्होंने कहा, ”हॉकी में सबसे अहम है गोल स्कोर करना। भारत का मजबूत पक्ष है उसका पेनल्टी कॉर्नर और फॉरवर्ड लाइन। भारतीय टीम में गोल करने की क्षमता है।” विश्व कप की सबसे कामयाब टीमों में से एक चार बार की चैम्पियन पाकिस्तान टूर्नामेंट के लिये क्वालीफाई नहीं कर सकी और यह उन्हें खलता है।
पाकिस्तान के कोच और मुख्य चयनकर्ता रहे सरदार ने कहा, ”निश्चित तौर पर विश्व कप और ओलंपिक जीत चुके खिलाड़ियों को दुख तो होगा ही । टीम भले ही जीतती नहीं लेकिन विश्व कप में भागीदारी तो होनी चाहिये थी।” उन्होंने कहा, ”एक समय में भारतीय हॉकी काफी पीछे चली गई थी, लेकिन भारत ने जिस तरीके से हॉकी को पुनर्जीवित किया, वह काबिले तारीफ है। पाकिस्तान को भी ऐसा ही कुछ करना होगा।”
समीउल्लाह खान, कलीमुल्लाह, सोहेल अब्बास, शकील अब्बासी जैसे अजीमोशान खिलाड़ी देने वाले पाकिस्तान में हॉकी के पतन पर निराशा जताते हुए उन्होंने कहा कि प्रतिभा की कमी नहीं है, लेकिन उनके लिये प्लेटफॉर्म नहीं है। सरदार बोले, ”पाकिस्तान में स्कूल और कॉलेजों में अब हॉकी खेली नहीं जा रही। लोगों ने हॉकी देखना बंद कर दिया है, क्योंकि वे टीम को हारते हुए नहीं देखना चाहते। उनके सामने हॉकी के नये हीरो भी नहीं हैं, क्योंकि जीतने पर ही हीरो बनते हैं। सुविधाओं का भी अभाव है और प्रतिभाओं के लिये प्लेटफॉर्म नहीं है।”