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पिछले चार चुनावों में वोटर्स ने दमदार प्रत्याशियों को चखाया हार का स्वाद

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पिछले चार चुनावों में वोटर्स ने दमदार प्रत्याशियों को चखाया हार का स्वाद

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हाइलाइट्स

राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023
सूबे की कई सीटों का है अलग मिजाज
इन सीटों पर फेल हो जाती है बीजेपी-कांग्रेस की रणनीति

एच. मलिक

जयपुर.  राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस (Congress) दोनों के लिए कुछ सीटें नाकों चने चबाने जैसी हैं. इन सीटों पर दोनों राजनीतिक दलों के थिंक टैंक की तमाम रणनीतियां, लुभावनी योजनाएं, प्रभावी चेहरे और वोटों का अंकगणित फेल हो जाता है. दोनों दलों के प्रत्याशी इन पर दो दशक से जीत का स्वाद नहीं चख पाए हैं. यही वजह है कि राजस्थान (Rajasthan) की कुछ सीटों पर पिछले दो दशक में बहुत चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं और ये बड़े दलों के लिए चुनौती बनी हुई हैं.

राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी विधानसभा चुनाव को लेकर सभी सीटों पर प्रत्याशी तय करने में जुटी हुई हैं. मजबूत सीटों पर प्रत्याशी लगभग तय हैं, लेकिन ये दल अपनी कमजोर कड़ियों के लिए मजबूत चेहरे तलाशने में जुटे हैं. इन सीटों पर दोनों पार्टियों ही जलवा नहीं दिखा पाती हैं. इसके पीछे कई सियासी समीकरण जिम्मेदार हैं.

बीजेपी के लिए ये सीटें बनी हुई हैं चुनौती

कोटपूतली : दो दशक से हार का कलंक- पिछले चार विधानसभा चुनावों से इस सीट पर बीजेपी को जीत नसीब नहीं हुई है. 2003 में भी निर्दलीय सुभाष चंद्रा ने यहां से जीत दर्ज की. 2008 में रामस्वरूप कसाना यहां से जीते, राजेंद्र यादव दूसरे नंबर पर रहे. पिछले दो चुनाव 2013 और 2018 से मंत्री राजेंद्र यादव यहां कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज कर रहे हैं.

नवलगढ़ : बीजेपी पिछले चारों चुनाव हारी- दो दशक पहले 2003 में प्रतिभा सिंह यहां से निर्दलीय चुनाव जीती थीं. इससे बाद 2008 और 2013 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़कर दूसरे स्थान पर रहीं. 2008 में यहां से राजकुमार शर्मा बीएसपी के टिकट पर जीते. 2013 में शर्मा का टिकट कटा तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते. 2018 में कांग्रेस के टिकट पर ही शर्मा चुनाव जीते.

राजगढ़-लक्ष्मणगढ़: परमीमन के बाद नहीं जीती बीजेपी- इस सीट से पिछले चुनाव में कांग्रेस से जौहरीलाल ने जीत दर्ज की. 2013 में एनपीइपी से गोलमा देवी जीतीं. कांग्रेस चौथे पर खिसक गई. 2008 में मतदाताओं ने फिर मानस बदला और समाजवादी पार्टी से सूरजभान को जिताया तब बीजेपी पांचवें स्थान पर रही. परिसीमन के बाद बीजेपी यह सीट नहीं जीत पाई. इससे पहले राजगढ़ अलग सीट थी, तब 2003 में बीजेपी से समर्थलाल 2003 में जीते थे.

भरतपुर : चार में से 2 चुनाव जीती बीजेपी- ब्रज क्षेत्र की इस महत्वपूर्ण सीट पर भरतपुर के मतदाताओं का मिजाज बदलता रहा है. यहां पार्टियों से ज्यादा मायने चेहरे के रहे हैं. 2003 में जब वसुंधरा राजे की लहर में बीजेपी की सरकार बनी थी, तब यहां वोटर्स ने इंडियन नेशनल लोकदल से बीजेपी के बागी प्रत्याशी विजय बंसल को जिताया था. बाद में विजय बंसल यहां 2008 और 2013 में बीजेपी के टिकट पर जीते. 2018 में आरएलडी से डॉ. सुभाष गर्ग को मतदाताओं ने जिताया.

कांग्रेस को इन सीटों पर मतदाताओं ने नकारा

नदबई : दो दशक से नहीं जीत पाई कांग्रेस- भरतपुर संभाग की इस सीट पर कृष्णेंद्र कौर दीपा प्रमुख चेहरा रहीं हैं. वे 2003 में निर्दलीय चुनाव जीती थीं, फिर 2008 और 2013 में बीजेपी के टिकट पर विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की. 2018 में बीएसपी से जोगिंदर सिंह अवाना जीते. कांग्रेस पिछले 4 में से एक भी चुनाव यहां नहीं जीत पाई.

खींवसर : पार्टियों के बजाय चेहरे का कब्जा- इस सीट पर पार्टियों के बजाय चेहरे का कब्जा रहा है. कांग्रेस काफी कमजोर रही है. यहां 2008 में बीजेपी के टिकट से तो 2013 में निर्दलीय और 2018 में आरएलपी के टिकट पर हनुमान बेनीवाल जीते. वहीं, 2019 में हनुमान बेनीवाल के सांसद बनने के बाद आरएलपी के ही टिकट से उपचुनाव में नारायण बेनीवाल जीत गए.

गंगानगर : चार चुनाव में हर बार कांग्रेस हारी- 2003 में बीजेपी से ही सुरेंद्र सिंह ने जीत दर्ज की. 2008 में बीजेपी से राधेश्याम जीते. 2013 में नई-नवेली बनी जमींदारा पार्टी से कामिनी जिंदल जीत गईं. 2018 में निर्दलीय राजकुमार गौड़ जीते. यह वो सीट है, जहां से पिछले 4 बार से हर बार नया चेहरा ही चुनाव जीत रहा है, लेकिन कांग्रेस नहीं जीत पाई है.

कुशलगढ़ : 20 साल से जीत को तरस रही कांग्रेस- आदिवासी मतदाताओं के प्रभाव वाली इस सीट पर स्थानीय चेहरों का वर्चस्व ज्यादा रहा है. 2003 और 2008 में जेडीयू के टिकट पर फतेहसिंह यहां से चुनाव जीते. 2013 में बीजेपी के टिकट पर भीमा भाई ने जीत दर्ज की. यहां भीमा भाई के साथ-साथ हुर्तिंग खड़िया बड़ा चेहरा रहे. 2003 और 2013 में उन्हें कांग्रेस ने टिकट दिया मगर वह नहीं जीत पाए. 2018 में कांग्रेस ने टिकट काटा तो उनकी पत्नी रमीला खड़िया निर्दलीय चुनाव जीत गईं.

थानागाजी : कांग्रेस को वोटर्स ने बुरी तरह नकारा- 2018 में कांति प्रसाद निर्दलीय जीते, बीजेपी तीसरे और कांग्रेस चौथे पर रही. 2013 और 2008 में बीजेपी से हेमसिंह भडाना जीते. कांग्रेस तीसरे पर रही. 2003 में कांति जीते, बीजेपी दूसरे और कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही.

महुआ : कांग्रेस को लगातार 4 हार मिली- यहां भी पिछले 4 चुनावों से कांग्रेस नहीं जीत सकी है. 2018 में यहां से ओम प्रकाश हुड़ला निर्दलीय जीते. वहीं 2013 में बीजेपी से यहां जीती थी. 2008 में निर्दलीय गोलमा देवी जीती तो 2003 में बीजेपी से हरिज्ञान सिंह जीते. यहां पिछले चार चुनाव में दो बार निर्दलीय और दो बार बीजेपी को जीत मिली है.

भादरा : कांग्रेस मुकाबले में ही नहीं आ पाई- इस सीट पर पिछले 4 में से 3 चुनाव में गैर बीजपी-कांग्रेस शासित प्रत्याशी जीता है. कांग्रेस एक बार भी नहीं जीत सकी और टॉप-3 की रेस से आगे नहीं बढ़ी. 2003 में यहां से डॉ. सुरेंद्र चौधरी निर्दलीय लड़े और जीते. 2008 के चुनाव में जयदीप यहां से निर्दलीय चुनाव लड़े. 2013 में बीजेपी से संजीव कुमार जीते, सीपीएम दूसरे और कांग्रेस पांचवें पर रही. पिछले विधानसभा चुनाव में 2018 में सीपीएम से बलवान पूनिया ने जीत हासिल की.

बीजेपी न कांग्रेस, इन सीटों के अलग ही तेवर

उदयपुरवाटी : 3 में 2 चुनाव बीएसपी जीती- कांग्रेस से बर्खास्त होने के बाद हाल ही में शिव सेना में शामिल हुए विधायक राजेंद्र गुढ़ा 2018 में यहां से बीएसपी से जीते. तब बीजेपी से शुभकरण चौधरी दूसरे स्थान पर रहे, कांग्रेस तीसरे पर रही. 2013 में बीजेपी से शुभकरण जीत गए और कांग्रेस के टिकट पर लड़ने वाले गुढ़ा तीसरे पर रहे. इससे पहले 2008 में गुढ़ा बीएसपी के टिकट पर जीते थे. कांग्रेस दूसरे और बीजेपी चौथे स्थान पर रही थी.

बस्सी : चार में 3 बार निर्दलीय प्रत्याशी ही जीते- बस्सी विधानसभा सीट पर आखिरी बार टू पार्टी इलेक्शन 2003 में हुआ था. तब यहां बीजेपी जीती थी. इसके बाद तीन चुनावों में निर्दलीयों को बोलबाला रहा. 2008 में निर्दलीय अंजू देवी जीतीं, कांग्रेस तीसरे और बीजेपी चौथे पर रही. 2013 में भी निर्दलीय अंजू देवी जीतीं. 2018 में निर्दलीय लक्ष्मण मीणा जीते. बीजेपी दूसरे और कांग्रेस चौथे स्थान पर रही.

धोद : सीपीएम दो बार जीतने में रही सफल- 2003 में सीपीएम से अमराराम तो 2008 में सीपीएम से ही पेमाराम यहां से जीते. 2013 में बीजेपी और 2018 में कांग्रेस यहां से जीतने में सफल रही. दोनों बार पेमाराम दूसरे स्थान पर रहे. यहां त्रिकोणीय संघर्ष के कारण प्रत्याशियों को नुकसान हुआ.

करौली : सत्ताधारी पार्टी को यहां पर जीत नसीब नहीं- यहां अजब संयोग है कि प्रदेश में जिस पार्टी की सरकार आती है, उसका विधायक इस सीट से नहीं जीत पाता. पिछले चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन यहां से बीएसपी लखन सिंह जीते. 2013 में बीजेपी की सरकार बनने के बावजूद कांग्रेस के टिकट पर दर्शन सिंह जीते. 2008 में कांग्रेस की सरकार बनी मगर बीजेपी से रोहिणी कुमारी जीत गई. 2003 में यहां बीएसपी से सुरेश मीणा जीते. तब बीजेपी की सरकार बनी थी. पिछले 4 चुनाव में यहां कांग्रेस-बीजेपी से ज्यादा बीएसपी जीती है.

गंगापुर: चुनाव में बदलता रहा है मतदाताओं का दिल –पिछले चार विधानसभा चुनावों में मतदाताओं का दिल बदलता रहा है. उन्होंने 2018 में निर्दलीय प्रत्याशी रामकेश मीणा को जिताया. लेकिन 2013 में पार्टी को तवज्जो दी और यहां से बीजेपी के मानसिंह जीते. 2008 में रामकेश बीएसपी के टिकट पर चुनाव जीतने में सफल रहे थे. 2003 में यहां से कांग्रेस से दुर्गाप्रसाद चुनाव जीते.

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