Effects of Pregnancy: मां बनना महिलाओं के लिए सुखद अनुभव होता है, लेकिन इसके लिए उन्हें काफी तकलीफों और शारीरिक व मानसिक बदलावों से गुजरना पड़ता है. इस दौरान शरीर के साथ ही उनके दिमाग में भी कई बदलाव होते हैं. ये बदलाव बच्चे के जन्म के दो साल या लंबे समय तक जस के तस बने रह सकते हैं. एक अध्ययन की रिपोर्ट कहती है कि गर्भवती महिलाओं के मस्तिष्क की संरचना भी बदलती है. इन्हीं बदलावों के कारण महिलाएं अपने बच्चे से जुड़ाव महसूस करती हैं और ज्यादा देखभाल करती हैं. यह शोध महिलाओं के ब्रेन के स्कैंस के आधार पर किया गया है.
शोध में पाया गया कि गर्भवती महिलाओं के दिमाग में कई जगह ग्रे मैटर की मात्रा कम हो जाती है. ग्रे मैटर की ये कमी दो साल तक बनी रहती है. लैडन यूनिवर्सिटी के शोध के मुताबिक, यही बदलाव मां को नवजात बच्चे की जरूरतों को समझने में मदद करते हैं. शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि दिमाग में दिमाग की संरचना में होने वाले ये बदलाव हर महिला में पाया जाता है. शोधकर्ताओं ने बताया कि इन्हीं बदलावों के कारण कंप्यूटर खुद ही गर्भवती महिलाओं की पहचान कर ले रहा था. शोध में एमआरआई की मदद से पहली बार मां बनने जा रही 20 से ज्यादा महिलाओं के मां बनने से पहले और बाद के मस्तिष्क की संरचना की तुलना की गई. फिर स्कैंस की उन महिलाओं से तुलना की गई, जो मां नहीं बनी थीं.
नई मां की याददाश्त क्यों होने लगती है कम?
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के एक शोध के मुताबिक, मां बनने के बाद एक महिलाओं के मस्तिष्क में काफी बदलाव होते हैं. खासतौर पर सोचने-समझने और महसूस करने की शक्ति पर मां बनने के बाद बहुत असर पड़ता है. नेचर न्यूरो साइंस में प्रकाशित एक अध्ययन कहता है कि गर्भावस्था और मां बनने के बाद महिलाओं के मस्तिष्क में कई जगह ग्रे मैटर की मात्रा कम हो जाती है. इनके अलावा मां बनने के बाद महिलाओं के मस्तिष्क में होने वाले बदलावों को लेकर कई शोध व अध्ययन किए गए हैं. इन अध्ययनों के आधार पर एक नया शब्द ‘मॉमी ब्रेन’ गढ़ा गया. ये शब्द मां के मस्तिष्क में होने वाले बदलावों को व्यक्त करता है.
क्या होता है दिमाग में पाया जाने वाला ग्रे मैटर
अब सवाल ये उठता है कि दिमाग में पाया जाने वाला ये ग्रे मैटर क्या होता है? दरअसल, ग्रे मैटर हमारे मस्तिष्क के सेंट्रल नर्वस सिस्टम का अहम हिस्सा होता है. ये मांसपेशियों को नियंत्रित करने, देखने, सुनने, याददाश्त के लिए जिम्मेदार होता है. जब मस्तिष्क में ग्रे मैटर कम हो जाता है, तब लोगों को भूलने की समस्या होने लगती है. इसकी कमी से लोगों को किसी एक चीज पर ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत होने लगती है. यही नहीं, तेज मूड स्विंग होने लगते हैं. इसकी कमी से नींद ना आने की समस्या भी होने लगती है. इसी की वजह से नई मां बच्चे की देखभाल बिना सोए कर पाती हैं.
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कैसे चलन में आया नया शब्द ‘मॉमनीसिया’
गर्भावस्था और मां बनने के बाद महिलाओं की याददाश्त में कमी आम बात है. वैसे तो मेडिकल साइंस में यादाश्त की कमी को एमनीसिया कहा जाता है. लेकिन, मां की यादाश्त कमजोर होने को ‘मॉमनीसिया’ कहते हैं. ये एक प्रकार का न्यूरो बायोलॉजिकल बदलाव होता है, जो महिलाओं के दिमाग में मां बनने के दौरान होता है. इससे जहां याददाश्त पर असर पड़ता है, वहीं बच्चे से जुड़ाव में मददगार होता है. नई मां ज्यादा इमोशनल होती हैं. वे हर छोटी बात पर रोते और बच्चे को लेकर ज्यादा परेशान होती देखी जाती हैं. ये सबकुछ ‘मॉमी ब्रेन’ के कारण ही होता है. इस तरह की प्रतिक्रियाओं से परेशान होने की जरूरत नहीं है. ये सामान्य प्रतिक्रिया होती है.
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पोस्टपार्टम डिप्रेशन से ‘मॉमी ब्रेन’ कैसे अलग
अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक, हर चार में एक महिला बच्चे को जन्म देने के बाद तनाव का शिकार होती है. इसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहा जाता है. इसमें नई मां के हार्मोंस में होने वाले बदलाव के कारण व्यवहार से लेकर सोचने-समझने के तरीकों में परिवर्तन होता है. इस दौरान अगर मां डिप्रेशन की शिकार हो जाती है, तो पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहा जाता है. वहीं, मॉमी ब्रेन में बच्चे को लेकर जरूरत से ज्यादा केयर, याददाश्त की कमी जैसी समस्याएं होती हैं.
भारत में 22% मांओं को होता है डिप्रेशन
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की 2018 में जारी हुई एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की 22 फीसदी से ज्यादा मां बनने वाली महिलाएं पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार होती हैं. डब्ल्यूएचओ का कहना था कि इससे निपटने के लिए भारत को मातृ स्वास्थ्य देखभाल को लेकर ज्यादा सतर्क होने की जरूरत है. ऐसी समस्याओं को नजरअंदाज करने से मां और बच्चे दोनों की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है. शोध के दौरान 20,043 महिलाओं पर 38 अध्ययन किए गए थे.
कैसे करें मां के मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल?
मां बच्चे की देखभाल में पूरा दिन व्यस्त रहती हैं. उनके लिए अपनी दिनचर्या को पूरा करने के लिए समय निकालना चुनौती बन जाता है. बेहतर होगा कि सिर्फ और सिर्फ अपने लिए कम से कम दिन में 15 मिनट जरूर निकालें. अगर भूलने की समस्या ज्यादा हो रही है, तो जरूरी बातों को लिखना शुरू कर दें. दिनचर्या को नियमित करें और रात में नींद पूरी नहीं होने पर दिन में सोएं. खुली हवा में सैर या योगा करें तो तनाव कम होगा. खुलकर परिवार से सहयोग मांगें.
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FIRST PUBLISHED : October 26, 2023, 13:33 IST